बिहार के गया स्थित मंदिरों में लगाया गया प्रवेश शुल्क, लोगों ने ’जजिया कर’से की तुलना
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 3, 2022 06:33 PM2022-01-03T18:33:49+5:302022-01-03T22:01:55+5:30
गया के अक्षयबट वेदी व सीता कुण्ड वेदी पर गया नगर निगम ने प्रवेश शुल्क लगा दिया है जिससे तीर्थ यात्रियों और गयावाल पण्डो में आक्रोश व्याप्त है।
पटना:बिहार के गया स्थित मंदिरों में प्रवेश के लिए अब शुल्क अदा करना पड़ रहा है। ऐसे में लोगों का कहना है कि देश से भले ही मुगलों का शासन समाप्त हो गया है, लेकिन गया के नगर निगम ने एक बार फिर से मुगल युग की वापसी करवा दी है। यही कारण है कि हिंदुओं के धार्मिक स्थानों पर दर्शन करने के लिए मुगल कालीन "जजिया कर" लिया जाना शुरू कर दिया गया है।
इस तरह से अब गया के प्रमुख धार्मिक स्थलों में जाने के लिए भक्तों को शुल्क देना होगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार गया के अक्षयबट वेदी व सीता कुण्ड वेदी पर गया नगर निगम ने प्रवेश शुल्क लगा दिया है। जिससे तीर्थ यात्रियों और गयावाल पण्डो में आक्रोश व्याप्त है। तीर्थ यात्रियों का भी कहना है कि देश के किसी भी धार्मिक स्थल पर इस तरह का कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगता है तो गयाजी में इस तरह शुल्क मुगलों के जजिया कर जैसा है।
ऐसे में निगम अपना निर्णय व शुल्क वसूलना वापस ले। लोगों का कहना है कि आर्टिकल 26 में सभी धर्म के लोगों को अपने धार्मिक स्थलों पर जाने की छूट दी गई है। जबकि गया के प्राचीन पिंडवेदी सीताकुंड और अक्षयवट का सुंदरीकरण केंद्र सरकार की हृदय योजना से पूरा किया गया है। दोनों पिंडवेदियों का लूक बदल गया है। तीर्थयात्रियों की भी संख्या बढने लगी है।
बताया जाता है कि गया नगर निगम ने तीर्थयात्रियों के प्रवेश पर पांच रुपये प्रति यात्री शुल्क निर्धारित की है, लेकिन वसूलीकर्ताओं के द्वारा 10 रुपये प्रति यात्री वसूल की जा रही है। वहीं गया के पंडा लोगों के द्वारा भी इसका विरोध किया जाने लगा है। उनका कहना है कि यहां किस बात की प्रवेश शुल्क लिया जा रहा है, जो कृत्य किया जा रहा है, वह किसी भी तरह से उचित नहीं है।
गयावाल माखन बाबा ने कहा कि 70 सालों में आज तक इस तरह का कोई भी शुल्क किसी पदाधिकारी एवं नेताओं के द्वारा नही लगाया गया था, तो आज फिर नगर निगम इस तरह का शुल्क लेकर गयाजी की छवि को धूमिल कर रही है। एक तो कोरोना के कारण ऐसे भी तीर्थ यात्रियों का आना जाना कम है, ऊपर से इस तरह का शुल्क लगाकर हिन्दू धर्म के आस्था को धूमिल किया जा रहा है।
पंडों और तीर्थ यात्रियों ने ननि के फैसले की तुलना मुगलों के जजिया कर से की है। पंडों और तीर्थयात्रियों ने मांग की है नगर निगम को तत्काल प्रभाव से अपना फैसला वापस लेना होगा। पंडों ने कहा देश का कानून भी इस बात का इजाजत नहीं देता है कि किसी भी धार्मिक स्थल पर आने जाने के लिए शुल्क लिया जाए।