Lok Sabha Elections: देश में इस समय लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। 19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग में 102 सीटों पर मतदान हुआ और उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई। हर चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा कई क्षेत्रीय दल भी हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में होते हैं जो स्वतंत्र उम्मीदवार होते हैं और किसी पार्टी के सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ते। भारत के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक हजारों निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन इनमें से बहुत कम को सफलता मिली है। यहां हम स्वतंत्र उम्मीदवारों से संबंधित कुछ आंकड़े आपको बता रहे हैं।
1951 से 2019 के बीच हुए 17 लोकसभा चुनावों में कुल 48,103 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन केवल 234 ही सदन में पहुंच पाए। कम से कम 47,163 ने अपनी जमानत गंवा दी। 1957 में चुनी गई दूसरी लोकसभा में सबसे अधिक संख्या में स्वतंत्र उम्मीदवार थे। तब इनकी संख्या 42 थी। 1951 में पहली लोकसभा में 37 स्वतंत्र उम्मीदवार सदन के लिए चुने गए थे। आखिरी बार निर्वाचित स्वतंत्र उम्मीदवारों की संख्या 1989 में दोहरे अंक में पहुंची थी।
1991 में केवल एक स्वतंत्र उम्मीदवार चुना गया जो अब तक का सबसे कम है। भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के आंकड़ों से पता चलता है कि 1991 के चुनावों के बाद से, स्वतंत्र उम्मीदवार एकल अंक( दस से कम) में जीत रहे हैं। विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि प्रत्येक लोकसभा चुनाव में, राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों ने 60 प्रतिशत से अधिक सीटें जीतीं, कुछ बार तो ऊपरी सीमा 90 प्रतिशत तक भी पहुंच गई।
18वीं लोकसभा के हले दो चरणों में, कुल 1,458 स्वतंत्र उम्मीदवार अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। पहले चरण में 889 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। 6 अप्रैल को दूसरे चरण में 569 स्वतंत्र उम्मीदवार मैदान में हैं।
बता दें कि भारत में कोई भी व्यक्ति लोकसभा चुनाव लड़ सकता है। उनकी आयु केवल 25 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और वह सजायाफ्ता नहीं होना चाहिए। भारत में एक वैध मतदाता असम, लक्षद्वीप और सिक्किम के स्वायत्त जिलों को छोड़कर किसी भी हिस्से से चुनाव लड़ सकता है। स्वतंत्र रूप से लड़ने के लिए एक उम्मीदवार को नामांकन के लिए कम से कम 10 प्रस्तावकों की जरूरत होती है। एक व्यक्ति लोकसभा में दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव नहीं लड़ सकता है।