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विदेश मंत्री जयशंकर ने पहली बार बताया कि वह राजनीति में क्यों आए, जानें मोदी सरकार के बारे में क्या कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 02, 2020 11:26 AM

उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, पांच साल में इस सरकार के अंदर ऐसा सिस्टम विकसित किया गया है जिससे भी दुनिया में कहीं भी अगर भारतीय परेशानी में हों तो उनकी तत्काल मदद की जा सके।

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ठळक मुद्देउन्होंने मोदी सरकार के बारे में कहा कि पहली बार, हमारे पास एक सरकार है जिसके लिए सुधार का मतलब है पोषण, लड़की की शिक्षा, मध्यवर्गीय सेवाएं।उन्होंने बताया कि मेरे राजनीति में शामिल होने का एक कारण यह है कि मैंने पहली बार एक सरकार को सुधारों के बारे में मन से बात करते देखा।

विदेश मंत्री डॉक्टर जयशंकर ने पहली बार सार्वजनिक मंच से खुलकर बताया कि वह राजनीति में क्यों आए हैं। एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि मेरे राजनीति में शामिल होने का एक कारण यह है कि मैंने पहली बार एक सरकार को सुधारों के बारे में मन से बात करते देखा।

इसके साथ ही उन्होंने मोदी सरकार के बारे में कहा कि पहली बार, हमारे पास एक सरकार है जिसके लिए सुधार का मतलब है पोषण, लड़की की शिक्षा, मध्यवर्गीय सेवाएं। यही वह वजह है कि जिससे मुझे लगने लगा कि मुझे भी राजनीति में आकर सुधार लाने में योगदान देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, पांच साल में इस सरकार के अंदर ऐसा सिस्टम विकसित किया गया है जिससे भी दुनिया में कहीं भी अगर भारतीय परेशानी में हों तो उनकी तत्काल मदद की जा सके।

बता दें कि देश व विदेश के मामले में जयशंकर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। काफी हद तक मोदी सरकार की सोच उनसे मिलती है, यही वजह है कि उन्होंने भाजपा की राजनीति में ज्वॉइन किया। पिछले माह विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अतीत में पाकिस्तान से निपटने के तौर तरीकों से कई प्रश्न खड़े होते हैं तथा 1972 के शिमला समझौते के फलस्वरूप पाकिस्तान प्रतिशोध की भावना में डूब गया और जम्मू कश्मीर में दिक्कतें होने लगीं।

जयशंकर ने पाकिस्तान से निपटने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘साहसिक कदमों’ की सराहना की थीं। विदेश मंत्री ने कहा था कि पाकिस्तान से निपटने के लिए निरंतर उस पर दबाव बनाये रखना बहुत जरूरी है, उसने ‘‘आतंक का उद्योग’’ खड़ा कर लिया है।

यही नहीं जयशंकर ने चौथे ‘रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान’ देते हुए एक ऐसी विदेश नीति की वकालत की थी जो यथास्थितिवादी नहीं बल्कि बदलाव की सराहना करती हो और उन्होंने इस संदर्भ में 1962 में चीन के साथ लड़ाई, शिमला समझौते, मुम्बई हमले के बाद प्रतिक्रिया नहीं जताने जैसे भारतीय इतिहास की अहम घटनाओं का जिक्र किया और उसकी तुलना में 2014 के बाद भारत के अधिक गतिशील रूख को पेश किया। 

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