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'ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज को मिला लें तो भी नालंदा की बराबरी नहीं हो सकती': उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

By एस पी सिन्हा | Updated: June 24, 2025 16:59 IST

इस मौके पर उपराष्ट्रपति ने बिहार की गौरवशाली ऐतिहासिक, बौद्धिक और संवैधानिक विरासत को स्मरण करते हुए कहा कि “यह केवल एक राज्य नहीं, यह भारत की आत्मा है, जहां बुद्ध और महावीर का बोध, चंपारण का प्रतिरोध और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का संविधान निर्माण, सब एक ही धरातल पर मिलते हैं।”

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पटना: बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एलएन मिश्रा मैनेजमेंट कॉलेज के 24वें स्थापना दिवस समारोह में मंगलवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लिया। इस मौके पर बिहार सरकार के मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता और नीतीश मिश्र ने उनका हार्दिक स्वागत किया। इस मौके पर उपराष्ट्रपति ने बिहार की गौरवशाली ऐतिहासिक, बौद्धिक और संवैधानिक विरासत को स्मरण करते हुए कहा कि “यह केवल एक राज्य नहीं, यह भारत की आत्मा है, जहां बुद्ध और महावीर का बोध, चंपारण का प्रतिरोध और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का संविधान निर्माण, सब एक ही धरातल पर मिलते हैं।”

राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बोलते हुए धनखड़ ने कहा कि हम अक्सर दिमाग की सुनते हैं, दिल की सुनते हैं, पर हमें आत्मा की भी सुननी चाहिए। और बिहार की भूमि इसके लिए प्रेरणा का स्त्रोत है, यह वही भूमि है जहां बुद्ध को ज्ञान मिला, यही भूमि है जहां महावीर को आत्मिक जागरण हुआ। यही भूमि भारत की दार्शनिक नींव का जन्मस्थल है। उन्होंने कहा कि बिहार वह भूमि है जहां प्राचीन ज्ञान, सामाजिक न्याय और आधुनिक आकांक्षाएं साथ-साथ चलती हैं। बिहार की कथा, भारत की कथा है और यही वह यात्रा है, जो भारत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाएगी। जब आज़ादी की बात होती है, तो चंपारण सत्याग्रह का उल्लेख अनिवार्य है, जो बिहार की पवित्र भूमि पर हुआ था। 1917 में महात्मा गांधी जी ने अपना पहला सत्याग्रह आंदोलन चंपारण में शुरू किया। 

उन्होंने किसान की समस्या को राष्ट्रहित का आंदोलन बना दिया। चंपारण ने केवल औपनिवेशिक अन्याय को चुनौती नहीं दी, बल्कि शासन की एक नई व्याकरण की शुरुआत की जो सत्य, गरिमा और निडर सेवा पर आधारित थी। धनखड़ ने कहा कि बिहार प्राचीन समय में वैश्विक शिक्षा का केंद्र था, नालंदा, विक्रमशिला और ओदांतपुरी। ये केवल विश्वविद्यालय नहीं थे, ये सभ्यता थे। पांचवीं शताब्दी में नालंदा एक रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी थी, जहां चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत और मध्य एशिया से लोग ज्ञान अर्जित करने आते थे। वहां 10,000 विद्यार्थी और 2,000 आचार्य रहते थे। यह तीनों संस्थान हमारे लिए हमेशा प्रेरणा रहेंगे कि हम कहां थे और हमें कहां पहुंचना है। आज भी ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज को मिला लें, तो नालंदा की बराबरी नहीं हो सकती। 

नालंदा विश्वविद्यालय पर विदेशी आक्रांताओं के बर्बर आक्रमण को ज्ञान की परंपरा पर प्रहार बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि 1192 के आसपास बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को जला दिया और वो महीनों तक जलती रही। पर ज्ञान की ज्योति बुझी नहीं, भारत आज भी विश्व का सबसे बड़ा ज्ञान भंडार है। विज्ञान में जो कुछ भी आज हो रहा है, उसकी जड़ें हमारी प्राचीन परंपरा में मौजूद हैं। हमारे देश में शिक्षा हमेशा मूल्य-आधारित रही है। किसी भी कालखंड में शिक्षा का न तो व्यवसायीकरण हुआ है और न ही इसे एक वस्तु के रूप में देखा गया है। हमारी जो शिक्षा प्रणाली है, वह चरित्र निर्माण करती है, हमें जीवन मूल्यों से जोड़ती है। मैं आज की थीम, 'भारतीय ज्ञान परंपरा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का दृष्टिकोण', की प्रशंसा करता हूं। यह विषय गंभीर महत्त्व का है, निर्णायक प्रभाव डालने वाला है और यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं विकास की दिशा को परिभाषित करेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य है। कुशल पेशेवरों, संतुष्ट नागरिकों, रोजगार उत्पन्न करने वालों, ज्ञानी मानवों को तैयार करना और एक ऐसा भारत बनाना जो वास्तव में हमारे सामूहिक सपनों का प्रतिबिंब हो। बिहार के सपूत डॉ राजेंद्र प्रसाद की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जब सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन हुआ, तो भारत के पहले राष्ट्रपति और इस भूमि के सपूत डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने विरोधों के बावजूद डटकर उसे संपन्न किया। जैसे वे संविधान सभा में डटे रहे, वैसे ही यहां भी  बिना विचलित हुए। संविधान सभा में बहस, संवाद, विमर्श और मनन हुआ। कभी व्यवधान उत्पन्न नहीं हुआ। यही लोकतंत्र है।” उन्होने कहा कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और डॉ. आंबेडकर ने मिलकर संविधान निर्माण में उच्चतम मानक स्थापित किए। आज जब देश की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु उसी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। यह बिहार की आत्मा की निरंतरता है। 

अपने भाषण में सामाजिक न्याय पर प्रकाश डालते हुए धनखड़ ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मैं उस समय केंद्र में मंत्री था जब मंडल आयोग लागू हुआ। और आज, जब मैं राज्यसभा का सभापति हूं, कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित होते देखना मेरे लिए गौरव की बात है। सामाजिक न्याय की नींव में बिहार का योगदान अमिट है। आपातकाल का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 25 जून यह दिन भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय है। संविधान की हत्या की गई। उस समय लोकतंत्र की ज्योति जलाने का कार्य किया बापू जयप्रकाश नारायण ने। सम्पूर्ण क्रांति केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, वह राष्ट्र के पुनर्जागरण की पुकार थी।”

वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के पटना पहुंचने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बुके भेंट कर आत्मीय स्वागत किया। इस दौरान उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री विजय कुमार चौधरी आदि ने भी स्वागत किया। उपराष्ट्रपति धनखड़ भारतीय वायु सेना के विमान से पटना पहुंचे, फिर वहां से वायुसेना के हेलीकॉप्टर से मुजफ्फरपुर के पताही एयरपोर्ट गए और फिर सड़क मार्ग से कॉलेज तक गए।

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