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पलायन के 31 साल बाद भी सपना है घर वापसी, लेकिन कश्मीर में कोई नहीं अपना

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: January 22, 2021 15:24 IST

लगभग तीन दशक पहले अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडित आज अपनी 'जमीं' पर वापस लौटने को बेताब हैं...

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31 साल पहले अपने घरों का त्याग करने वाले कश्मीरी पंडित समुदाय के लाखों लोगों में से चाहे कुछेक कश्मीर वापस लौटने के इच्छुक नहीं हों मगर यह सच्चाई है कि आज भी अधिकतर वापस लौटना चाहता है।

इन 31 सालों के निर्वासित जीवन यापन के बाद आज भी उन्हें अपने वतन की याद तो सता ही रही है साथ ही रोजी-रोटी तथा अपने भविष्य के लिए कश्मीर ही ठोस हल के रूप में दिख रहा है। लेकिन इस सपने के पूरा होने में सबसे बड़ा रोड़ा यही है कि कश्मीर में अब उनका कोई अपना नहीं है।

इतना जरूर है कि इक्का दुक्का कश्मीरी पंडित परिवारों का कश्मीर वापस लौटना भी जारी है। मगर उनमें से कुछेक कुछ ही दिनों या हफ्तों के बाद वापस इसलिए लौट आए क्योंकि अगर आतंकी उन्हें अपने हमलों का निशाना बनाने से नहीं छोड़ते वहीं कईयों को अपने ‘लालची’ पड़ौसियों के ‘अत्याचारों’ से तंग आकर भी भागना पड़ा था।

कुछ साल पहले कन्हैया लाल पंडित (नाम बदला गया है) का परिवार उधमपुर के एक शरणार्थी शिविर से कश्मीर वापस लौट था। इन सालों में वह रीलिफ कमीशनर के कार्यालय के चक्कर काटते-काटते थक गया था। वह कहता था:‘मात्र मुट्ठी भर मदद के लिए जितना कष्ट सहन करना पड़ता है उससे अच्छा है वह कश्मीर वापस लौट जाए।’

और उसने किया भी वैसा ही। बडगाम के एक गांव में वह वापस लौट गया। वापसी पर स्वागत भी हुआ। स्वागत करने वाले सरकारी अमले के नहीं थे बल्कि गांववासी ही थे। खुशी के साथ अभी एक पखवाड़ा ही बीता था कि उसके कष्टदायक दिन आरंभ हो गए। उसे ‘कष्ट’ देने वाले कोई और नहीं बल्कि उसी के वे पड़ौसी थे जिनके हवाले वह अपनी जमीन जायदाद को कर चुका था। असल में इतने सालों से खेतों व उद्यानों की कमाई को खा रहे पड़ौसी अब उन्हें वापस लौटाने को तैयार नहीं थे।

फिर क्या था। कन्हैया लाल को वापस सिर पर पांव रख कर जम्मू लौटना पड़ा। उसकी सम्पत्ति को हड़पने की खातिर पड़ौसियों ने कथित तौर पर ‘आतंकियों की मदद’ भी ले ली थी। कन्हैया लाल लगातार पांच दिनों तक डर के मारे घर से बाहर नहीं निकल पाया था और परिवार के अन्य सदस्य भी दहशत में थे।

कश्मीर वापस लौटने की इच्छा रखने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए यह सबसे अधिक कष्टदायक अनुभव था कि वे उस कश्मीर घाटी में लौटने की आस रख कर आंखों में सपना संजोए हुए हैं जहां अब उनका कोई अपना नहीं है। हालांकि यह बात अलग है कि राज्य सरकार सामूहिक आवास का प्रबंध कर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भिजवाने की तैयारियों में जुटी है।

इस पर पुरखू में रहने वाला शाम लाल धर कहता थाः ‘अगर सुरक्षा के साए में एक ही स्थान पर बंध कर रहना है तो उससे जम्मू बुरा नहीं है जहां कम से कम हम बिना सुरक्षा के कहीं भी कभी भी घूम तो सकते हैं।’

माना कि कन्हैया लाल पंडित का कश्मीर वापसी का अनुभव बुरा रहा हो या फिर शाम लाल धर जैसे लोग कश्मीर वापसी से इतराने लगे हों मगर यह सच्चाई है कि इन अनुभवों के बाद भी कई कश्मीरी पंडित परिवार आज भी कश्मीर वापसी का सपना आंखों में संजोए हुए हैं और वे ऐसे हादसों को नजरअंदाज इसलिए करने के इच्छुक हैं क्योंकि उनकी सोच है कि तिलतिल मरने से अच्छा है कि अपने वतन वापस लौट जाए।

टॅग्स :कश्मीरी पंडितजम्मू कश्मीर
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