Economic Survey: पढ़ाई पर कोरोना का प्रभाव जानने के लिए सरकार के पास आंकड़ों का अभाव, एनजीओ के आंकड़े पर जताया भरोसा

By विशाल कुमार | Published: February 1, 2022 09:00 AM2022-02-01T09:00:53+5:302022-02-01T09:02:50+5:30

सालाना सर्वे में आर्थिक मामलों के विभाग ने कहा कि नवीनतम आंकड़े 2019-20 से पहले के उपलब्ध होने के कारण शिक्षा क्षेत्र पर  बार-बार होने वाले लॉकडाउन के वास्तविक समय के प्रभाव का आकलन करना मुश्किल है।

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Economic Survey: पढ़ाई पर कोरोना का प्रभाव जानने के लिए सरकार के पास आंकड़ों का अभाव, एनजीओ के आंकड़े पर जताया भरोसा

Highlightsशिक्षा पर महामारी के प्रभाव के संबंध में सरकारी आंकड़ों में भारी कमी को स्वीकार किया है।नवीनतम आंकड़े 2019-20 से पहले के उपलब्ध होने के कारण आकलन करना मुश्किल है।एनजीओ प्रथम द्वारा किए शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (एएएसईआर) का उल्लेख किया गया है।

नई दिल्ली: बजट पेश किए जाने से पहले लोकसभा में रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने शिक्षा पर महामारी के प्रभाव के संबंध में सरकारी आंकड़ों में भारी कमी को स्वीकार किया है। इसमें खासकर उन 25 करोड़ स्कूली बच्चों के संबंध में आंकड़ों का अभाव है जिन्होंने लगभग दो वर्षों में कक्षा में प्रवेश नहीं किया है।

सालाना सर्वे में आर्थिक मामलों के विभाग ने कहा कि नवीनतम आंकड़े 2019-20 से पहले के उपलब्ध होने के कारण शिक्षा क्षेत्र पर बार-बार होने वाले लॉकडाउन के वास्तविक समय के प्रभाव का आकलन करना मुश्किल है।

इसके बजाय इसमें गैर सरकारी संगठन प्रथम द्वारा किए शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (एएएसईआर) का उल्लेख किया है जो लॉकडाउन ते दौरान छात्रों के प्रवेश और उनके सीखने के प्रभावित होने को दिखाया है।

एएसईआर की 2021 की रिपोर्ट से पता चला है कि स्कूल न जाने वाले 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या 2018 में 2.5 फीसदी से दोगुनी होकर 2021 में 4.6 फीसदी हो गई।

एएसईआर ने निजी के बजाय सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ने को भी दर्ज किया जो माता-पिता की वित्तीय बदहाली और उनके मुफ्त सुविधाओं की बढ़ने और वापस गांवों में लौटने को दिखाता है।

एएसईआर रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल डिवाइड ने शिक्षा तक पहुंच में असमानता को बढ़ा दिया है। स्मार्टफोन की अनुपलब्धता और कनेक्टिविटी के मुद्दों ने अधिकांश ग्रामीण छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंचने से रोक दिया। महामारी के दौरान लगभग 10 में से 6 ग्रामीण बच्चों को कोई शिक्षण सामग्री या गतिविधियां नहीं मिलीं।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस इन आंकड़ों की पुष्टि करने के लिए कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

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