CAA, NRC पर सेना प्रमुख बिपिन रावत की टिप्पणी को लेकर विवाद, विपक्ष ने साधा निशाना

By भाषा | Published: December 27, 2019 05:39 AM2019-12-27T05:39:57+5:302019-12-27T05:39:57+5:30

पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास ने जनरल रावत के बयान को ‘गलत’ बताया। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल के लोगों को राजनीतिक ताकतों के बजाय देश की सेवा करने के दशकों पुराने सिद्धांत का पालन करना चाहिए।

Dispute over Army Chief Bipin Rawat's comment on CAA, NRC, Opposition targeted | CAA, NRC पर सेना प्रमुख बिपिन रावत की टिप्पणी को लेकर विवाद, विपक्ष ने साधा निशाना

CAA, NRC पर सेना प्रमुख बिपिन रावत की टिप्पणी को लेकर विवाद, विपक्ष ने साधा निशाना

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत नये नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले लोगों की सार्वजनिक आलोचना करके गुरुवार को विवादों में घिर गए। उन्होंने कहा कि यदि नेता हमारे शहरों में आगजनी और हिंसा के लिए विश्वविद्यालयों और कॉलेज के छात्रों सहित जनता को उकसाते हैं, तो यह नेतृत्व नहीं है।

जनरल बिपिन रावत की टिप्पणी पर विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पूर्व सैन्यकर्मियों ने कड़ी प्रतिक्रिया जतायी, जिन्होंने उन पर राजनीतिक टिप्पणी करने और ऐसा करके राजनीतिक मामलों में नहीं पड़ने की सेना में लंबे समय से कायम परंपरा से समझौता करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, “नेता वे नहीं हैं जो अनुचित दिशाओं में लोगों का नेतृत्व करते हैं, जैसा कि हम बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों को देख रहे हैं, जिस तरह वे शहरों और कस्बों में आगजनी और हिंसा करने में भीड़ की अगुवाई कर रहे हैं। यह नेतृत्व नहीं है।’’ उन्होंने कहा, “नेता वह है जो आपको सही दिशा में ले जाता है, आपको सही सलाह देता है और यह सुनिश्चित करता है कि वह जिनका नेतृत्व कर रहा है, उनकी परवाह करता है।”

जनरल रावत 31 दिसम्बर को सेना प्रमुख पद से सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उन्हें देश का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनाये जाने की संभावना है। जनरल रावत ने सेना प्रमुख के तौर पर अपने तीन वर्ष के कार्यकाल के दौरान राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं रहने के आरोपों का सामना किया। संसद के दोनों सदनों द्वारा इस महीने के शुरू में संशोधित नागरिकता कानून को मंजूरी देने के बाद से इसके खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए हैं जो कभी-कभी हिंसक भी हुए हैं।

इन प्रदर्शनों के दौरान कई प्रदर्शनकारी मारे गए हैं, विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में। रावत ने अपने भाषण में कहा, “नेतृत्व यदि सिर्फ लोगों की अगुवाई करने के बारे में है, तो फिर इसमें जटिलता क्या है। क्योंकि जब आप आगे बढ़ते हैं, तो सभी आपका अनुसरण करते हैं। यह इतना सरल नहीं है। यह सरल भले ही लगता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है।’’ उन्होंने कहा, “आप भीड़ के बीच किसी नेता को उभरता हुआ पा सकते हैं। लेकिन नेता वह होता है, जो लोगों को सही दिशा में ले जाए। नेता वे नहीं हैं जो अनुचित दिशाओं में लोगों का नेतृत्व करते हैं।” यद्यपि जनरल रावत की इस टिप्पणी पर एक बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया।

पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास ने जनरल रावत के बयान को ‘गलत’ बताया। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल के लोगों को राजनीतिक ताकतों के बजाय देश की सेवा करने के दशकों पुराने सिद्धांत का पालन करना चाहिए। रामदास ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘नियम बहुत स्पष्ट है कि हम देश की सेवा करते हैं, न कि राजनीतिक ताकतों की और कोई राजनीतिक विचार व्यक्त करना जैसा कि हमने आज सुना है...किसी भी सेवारत कर्मी के लिए गलत बात है, चाहे वह शीर्ष पद पर हो या निचले स्तर पर।’’ सैन्य कानून की धारा 21 के तहत सैन्यकर्मियों के किसी भी राजनीतिक या अन्य मकसद से किसी के भी द्वारा आयोजित किसी भी प्रदर्शन या बैठक में हिस्सा लेने पर पाबंदी है।

इसमें राजनीतिक विषय पर प्रेस से संवाद करने या राजनीतिक विषय से जुड़ी किताबों के प्रकाशन कराने पर भी मनाही है।’’ सेना प्रमुख की टिप्पणी पर नेताओं की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आयी। माकपा ने एक बयान में कहा कि सेना प्रमुख को अपने बयान के लिये देश से माफी मांगनी चाहिये। माकपा ने कहा कि उनकी टिप्पणी के देश के संवैधानिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव होंगे। पार्टी के पोलित ब्यूरो ने कहा कि सेना प्रमुख संशोधित नागरिकता कानून और पूरे भारत में प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक पंजी का विरोध करने वाले छात्र प्रदर्शनकारियों की निंदा करने में ‘‘सीधे तौर पर लिप्त’’ हुए हैं। इसमें कहा गया, ‘‘सेना प्रमुख का बयान यह रेखांकित करता है कि स्थिति मोदी सरकार में कितनी खराब हुई है, जिसमें वर्दी में किसी शीर्ष पद पर आसीन अधिकारी अपनी संस्थागत भूमिका की सीमाओं का इस तरह से उल्लंघन कर सकता है।

ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हम सेना का राजनीतिकरण करने के पाकिस्तान के रास्ते पर नहीं जा रहे हैं? लोकतांत्रिक आंदोलन के बारे में इससे पहले सेना के किसी शीर्ष अधिकारी द्वारा दिये गये ऐसे बयान का उदाहरण आजाद भारत के इतिहास में नहीं मिलता है।’’ कांग्रेस प्रवक्ता बृजेश कलप्पा ने भी बयान को लेकर जनरल रावत की आलोचना की । उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘सीएए प्रदर्शन के खिलाफ थल सेना प्रमुख बिपिन रावत का बोलना संवैधानिक लोकतंत्र के पूरी तरह खिलाफ है। अगर आज थल सेना प्रमुख को राजनीतिक मुद्दों पर बोलने की अनुमति मिलती है तो कल उन्हें सैन्य नियंत्रण के प्रयास की भी अनुमति होगी।’’ कांग्रेस के संवाददाता सम्मेलन में जब पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता अजय माकन से जब सेना प्रमुख के बयान को लेकर उत्पन्न विवाद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि रावत सेना प्रमुख हैं ‘‘हम उनके बयान पर कोई टिप्पणी करने से परहेज करेंगे।’’ सेना प्रमुख की टिप्पणी पर विवाद उत्पन्न होने पर सेना ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि सेना प्रमुख ने सीएए का उल्लेख नहीं किया है।

सेना ने बयान में कहा, ‘‘उन्होंने किसी राजनीतिक कार्यक्रम, व्यक्ति का उल्लेख नहीं किया है। वह भारत के भविष्य के नागरिकों को संबोधित कर रहे थे, जो छात्र हैं। छात्रों का मार्गदर्शन करना (उनका) सही कर्तव्य है जिन पर राष्ट्र का भविष्य निर्भर करेगा। कश्मीर घाटी में युवाओं को पहले उन लोगों द्वारा गुमराह किया गया था, जिनपर उन्होंने नेताओं के रूप में भरोसा किया था।’’ स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, ‘‘मैं उनसे सहमत हूं। हां, नेताओं को सही दिशा में (लोगों को) ले जाने के लिए नेतृत्व करना चाहिए।

मुझे पूरा विश्वास है, जब वह यह बात कर रहे होंगे, उनके मन में प्रधानमंत्री होंगे।’’ एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि किसी पद की सीमाओं को जानना ही नेतृत्व है। यह असैन्य सर्वोच्चता तथा जिस संस्था का आप नेतृत्व कर रहे हैं उसकी अखंडता को सुरक्षित रखने के विचार को समझने के बारे में है। भाजपा की सहयोगी पार्टी जद(यू) के नेता के सी त्यागी ने भी ‘‘राजनीतिक टिप्पणी’’ करने के लिए जनरल रावत की आलोचना की। 

Web Title: Dispute over Army Chief Bipin Rawat's comment on CAA, NRC, Opposition targeted

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