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सुषमा स्वराज को दी गई अंतिम विदाई, फौलादी इरादों वाली, शालीन सुषमा की जिह्वा पर विराजती थी सरस्वती

By भाषा | Updated: August 7, 2019 19:37 IST

67 वर्षीय वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा के माथे पर हमेशा लाल बिंदी और मांग में सिंदूर रहता था। यह उनके व्यक्तित्व की गंभीरता ही थी जिसने भारतीय कूटनीति को एक मानवीय चेहरा दिया। सुषमा संसद के भीतर या बाहर जहां भी बोलने के लिए खड़ी होती थीं तो न केवल सत्ता पक्ष और उनके समर्थक बल्कि विपक्षी भी सांसें थामकर उनका भाषण सुनते थे।

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ठळक मुद्देसुषमा - एक ऐसी महिला राजनेता जिनकी कानून और संसदीय मामलों पर गहरी पकड़ थी।सुषमा भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित और दिग्गज महिला राजनेताओं में शुमार थीं।उनका व्यक्तित्व एक कड़े फैसले लेने वाली, ममतामयी और उच्च संस्कारों वाली भारतीय महिला राजनेता के गुणों का अद्भुत संगम था।

पूरे राजकीय सम्मान के साथ आज सर्वप्रिय नेता सुषमा स्वराज को अंतिम विदाई दी गयी। सुषमा - एक ऐसी महिला राजनेता जिनकी कानून और संसदीय मामलों पर गहरी पकड़ थी लेकिन उतनी ही गहरी ममता उनके दिल में वंचितों और पीड़ितों के लिए भी थी।

सुषमा भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित और दिग्गज महिला राजनेताओं में शुमार थीं जिनका मंगलवार की रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका बुधवार को अंतिम संस्कार किया गया। वह राजनीति की नब्ज पर गहरी पकड़ रखती थीं । उनका व्यक्तित्व एक कड़े फैसले लेने वाली, ममतामयी और उच्च संस्कारों वाली भारतीय महिला राजनेता के गुणों का अद्भुत संगम था।

67 वर्षीय वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा के माथे पर हमेशा लाल बिंदी और मांग में सिंदूर रहता था। यह उनके व्यक्तित्व की गंभीरता ही थी जिसने भारतीय कूटनीति को एक मानवीय चेहरा दिया। सुषमा संसद के भीतर या बाहर जहां भी बोलने के लिए खड़ी होती थीं तो न केवल सत्ता पक्ष और उनके समर्थक बल्कि विपक्षी भी सांसें थामकर उनका भाषण सुनते थे।

सुषमा स्वराज के घर के दरवाजे हमेशा सब के लिए खुले होते थे

सुषमा स्वराज के घर के दरवाजे हमेशा सब के लिए खुले होते थे। वह एक ऐसी नेता थीं जिन तक पहुंचना आम आदमी के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था। ये 1990 का उत्तरार्ध था और भाजपा राष्ट्रीय परिदृश्य पर छा जाने के लिए ब्याकुल थी।

उसी दौर में सुषमा स्वराज ने अपनी पार्टी को व्यापक फलक पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राजनीति में उनके सफर पर अगर नजर डालें तो वह मात्र 25 साल की ही थीं जब हरियाणा विधानसभा में विधायक बनकर पहुंची थीं।

बाद में वह प्रदेश की शिक्षा मंत्री भी बनीं । यह मंगलवार की शाम की बात है। काल का फांस क्षण क्षण करीब आ रहा था, शायद सुषमा को भी उसके कदमों की आहट महसूस हो चली थी। मृत्यु से कुछ घंटे पहले ही सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने वाला विधेयक पास होने पर बधाई दी थी । उन्होंने लिखा था, ‘‘ मैं अपने जीते जी यह दिन देखने के लिए इंतजार कर रही थी।’’ इसके कुछ ही समय बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ले जाया गया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। एम्स में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।

सुषमा नैतिक बल के साथ ही मानसिक बल की भी धनी थीं

सुषमा नैतिक बल के साथ ही मानसिक बल की भी धनी थीं। साल 2016 में उनका गुर्दा प्रत्यारोपण आपरेशन हुआ था । इसी के चलते उन्होंने इस साल लोकसभा चुनाव से खुद को अलग कर लिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बनी राजग की दूसरी सरकार में वह शामिल नहीं हुई थीं और उनकी जगह पर एस जयशंकर को विदेश मंत्रालय की कमान सौंपी गयी थी।

सुषमा को एक ऐसी नेता के रूप में याद किया जाएगा जिनके व्यक्तित्व में इतनी गर्मजोशी और अपनापन था कि जरूरत की घड़ी में लोग आसानी से उनसे मिलकर अपनी व्यथा साझा कर सकते थे। बतौर विदेश मंत्री उन्होंने सोशल मीडिया का बेहद क्रांतिकारी रूप से उपयोग किया और दुनिया के आतंकवाद प्रभावित देशों में फंसे सैंकड़ों भारतीयों की मदद की, उन्हें स्वदेश लाने में दिन रात एक कर दिया।

ना जाने कितने ही जरूरतमंद विदेशी नागरिकों को उन्होंने भारत में इलाज के लिए वीजा दिलवाने में सहायता की। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद वह दूसरी महिला विदेश मंत्री थीं। कई क्षेत्र ऐसे थे जिनमें पहला कदम सुषमा ने ही रखा था।

वह हरियाणा सरकार में सबसे छोटी उम्र की मंत्री, दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता थीं। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की और बाद में भाजपा में शामिल हो गयीं।

वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं

वह 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं और वाजपेयी सरकार के 1998 में सत्ता में आने पर उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया। सुषमा हमेशा चुनौतियों से दो दो हाथ करने को तैयार रहती थीं।

1999 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी से चुनाव लड़ा । हालांकि वह चुनाव हार गयीं लेकिन उनका कद बहुत बढ़ गया। लंबे समय तक उन्हें वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में काम करने का मौका मिला।

वह 2009 से 14 के बीच लोकसभा में विपक्ष की नेता के रूप में भी प्रभावी असर छोड़ने में सफल रहीं। आडवाणी ने उन्हें याद करते हुए कहा, ‘‘ अपने गर्मजोशीपूर्ण व्यवहार और ममतामयी स्वभाव से वह हर किसी के दिल को छू लेती थीं।

एक भी साल ऐसा नहीं गुजरा, जब वह मेरे जन्मदिन पर मेरा पसंदीदा चॉकलेट केक लानी भूली हों।’’ विधि स्नातक सुषमा उच्चतम न्यायालय में प्रैक्टिस करती थीं । वह सात बाद संसद सदस्य और तीन बार विधानसभा सदस्य रहीं। सुषमा का विवाह स्वराज कौशल से हुआ था जो खुद भी उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता थे। स्वराज कौशल 1990 से 1993 के बीच मिजोरम के राज्यपाल रहे और 1998 से 2004 तक संसद के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं ।

सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से सम्मानित सुषमा ने अपने कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान और भारत चीन संबंधों को नया आयाम दिया। भारत और चीन के बीच डोकलाम गतिरोध को सुलझाने में भी सुषमा ने अपने नेतृत्व कौशल का परिचय दिया था।

राजनीतिक गलियारों में उन्हें एक जुझारू नेता के रूप में देखा जाता था लेकिन वह एक ऐसा व्यक्तित्व थीं जिन्हें सभी दलों के नेता बेहद सम्मान के साथ देखते थे। 

टॅग्स :सुषमा स्वराजभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)दिल्लीनरेंद्र मोदी
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