सहमति से यौन संबंध बनाने का दावा पॉक्सो मामलों में मुकदमे के लिए अप्रासंगिक?, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 10, 2025 21:39 IST2025-02-10T21:38:46+5:302025-02-10T21:39:24+5:30

पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है और अगर पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, तो कानून का यह मानना है कि वह वैध सहमति नहीं दे सकती।

Delhi High Court says Claim of consensual sex irrelevant to trial in POCSO cases | सहमति से यौन संबंध बनाने का दावा पॉक्सो मामलों में मुकदमे के लिए अप्रासंगिक?, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा

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Highlightsसहमति की प्रकृति, पॉक्सो अधिनियम के तहत मुकदमे में प्रथम दृष्टया अप्रासंगिक है।16 वर्षीय पड़ोसन का यौन उत्पीड़न करने और गर्भपात के लिए दवाइयां देने का भी आरोप है।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक पॉक्सो(यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून) मामले में कहा है कि सहमति से यौन संबंध बनाने के दावे से जुड़ी याचिका कानूनन अप्रासंगिक है क्योंकि पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप में मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति द्वारा सहमति से यौन संबंध बनाने की दलील कानूनन अप्रासंगिक है, क्योंकि पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है। अदालत ने कहा, ‘‘सहमति से यौन संबंध बनाने की यह दलील कानूनन अप्रासंगिक है। पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है और अगर पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, तो कानून का यह मानना है कि वह वैध सहमति नहीं दे सकती।’’

न्यायाधीश ने तीन फरवरी के आदेश में कहा, ‘‘इसलिए, संबंध की कथित सहमति की प्रकृति, पॉक्सो अधिनियम के तहत मुकदमे में प्रथम दृष्टया अप्रासंगिक है।’’ इसलिए अदालत ने 26 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर 2024 में अपनी 16 वर्षीय पड़ोसन का यौन उत्पीड़न करने और गर्भपात के लिए दवाइयां देने का भी आरोप है।

व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और उसकी एक बेटी भी है। उसने कहा कि पीड़िता 18 वर्ष की थी और उनका संबंध सहमतिपूर्ण था। उच्च न्यायालय ने कहा कि बयान के प्रभाव की पड़ताल मुकदमे के दौरान की जाएगी, जब पक्षकार साक्ष्य प्रस्तुत कर देंगे। अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, इस समय, अदालत स्कूल रिकॉर्ड की अनदेखी नहीं कर सकती, जिसमें पीड़िता की जन्म तिथि तीन अगस्त 2008 स्पष्ट रूप से अंकित है।’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि अपराध की प्रकृति, पीड़िता और आरोपी के बीच आयु का अंतर और यह तथ्य कि मुकदमा अभी चल रहा है।

तथा प्रमुख सरकारी गवाहों से जिरह अभी होनी है, ऐसे कारक हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा, ‘‘अपराध की गंभीरता, गवाह को प्रभावित करने की संभावना और मुकदमे की कार्यवाही के चरण को देखते हुए, अदालत याचिकाकर्ता को जमानत देने की इच्छुक नहीं है।’

Web Title: Delhi High Court says Claim of consensual sex irrelevant to trial in POCSO cases

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