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लड़की माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है और पति के साथ रहने का अधिकार है, भले ही 18 वर्ष से कम उम्र की हो, दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

By भाषा | Updated: August 23, 2022 17:48 IST

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने यह आदेश एक मुस्लिम पुरुष और एक मुस्लिम नाबालिग लड़की की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। दोनों ने फरार होने के बाद बिहार में धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार निकाह किया था।

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ठळक मुद्देसुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, जो साथ रहने के हकदार हैं और बच्चे के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं।घर पर उसके माता-पिता उसे नियमित रूप से पीटा करते थे।किसी और से शादी करने के लिए मजबूर कर रहे थे।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी रूप से विवाहित जोड़े को एक-दूसरे के साथ से वंचित नहीं किया जा सकता जोकि विवाह संस्था का सार है और राज्य जानबूझकर विवाहित जोड़े के निजी दायरे में प्रवेश नहीं कर सकता है और उन्हें अलग नहीं कर सकता है।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने यह आदेश एक मुस्लिम पुरुष और एक मुस्लिम नाबालिग लड़की की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। दोनों ने फरार होने के बाद बिहार में धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार निकाह किया था और अब अदालत से सुरक्षा के अनुरोध के साथ-साथ यह भी निर्देश देने का आग्रह किया है कि कोई उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं करे।

अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत, यौवनारंभ के बाद कोई लड़की अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है और उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है, भले ही वह 18 वर्ष से कम उम्र की हो। इसलिए अदालत ने संबंधित अधिकारियों को विवाहित जोड़े की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, जो साथ रहने के हकदार हैं और बच्चे के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

अदालत ने कहा कि राज्य का दंपत्ति के निजी दायरे में प्रवेश करना और उन्हें अलग करना, उनके निजी दायरे के अतिक्रमण के समान होगा और राज्य का उद्देश्य महिला याचिकाकर्ता के सर्वोत्तम हितों की रक्षा करना है जो विवाह के समय 15 वर्ष की थी और ऐसा बताया गया है कि घर पर उसके माता-पिता उसे नियमित रूप से पीटा करते थे तथा उसे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर कर रहे थे।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘कानूनन विवाहित याचिकाकर्ताओं को एक-दूसरे के साथ से इनकार नहीं किया जा सकता है जो कि विवाह जैसी संस्था का सार है। यदि याचिकाकर्ता अलग हो जाते हैं, तो इससे याचिकाकर्ता और उसके अजन्मे बच्चे को और अधिक आघात होगा। यहां राज्य का उद्देश्य याचिकाकर्ता के सर्वोत्तम हितों की रक्षा करना है।’’

अदालत ने 17 अगस्त के अपने आदेश में कहा, ‘‘यदि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर शादी के लिए सहमति दी है और वह खुश है, तो राज्य याचिकाकर्ता के निजी दायरे में प्रवेश करने और दंपति को अलग करने वाला कोई नहीं होता है। ऐसा करना राज्य द्वारा व्यक्तिगत दायरे के अतिक्रमण के समान होगा।’’ अदालत ने अपने आदेश में कहा कि वर्तमान मामला ‘‘शोषण’’ का नहीं है, बल्कि एक ऐसा मामला है जहां याचिकाकर्ता प्यार में थे और मुस्लिम कानूनों के अनुसार उन्होंने शादी कर ली।’’ 

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