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संपत्ति की एकमात्र और पूर्ण स्वामी महिला, पति की सहायक मानकर पत्नी की स्वायत्त स्थिति को कमतर करना अभिशाप, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 7, 2023 15:30 IST

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने एक महिला की वह अर्जी स्वीकार कर ली, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी के राजौरी गार्डन इलाके में स्थित एक संपत्ति में किसी भी तीसरे पक्ष को अधिकार देने से उसे और उसके पति को रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की खातिर दायर याचिका खारिज करने का अनुरोध किया गया है।

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ठळक मुद्देमहिला के पक्ष में पंजीकृत मार्च 1992 के बिक्री विलेख को रद्द कर दिया जाना चाहिए।संपत्ति की एकमात्र या पूर्ण स्वामी नहीं हैं और यह 'साझेदारी वाली संपत्ति' है। संपत्ति साझेदारी वाली एक कंपनी की है, जिसमें वे भागीदार थे।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला को संपत्ति की एकमात्र और पूर्ण स्वामी करार देते हुए कहा कि इस दौर में किसी महिला को केवल उसके पति की सहायक मानकर उसकी स्वायत्त स्थिति को कमतर करना अभिशाप है।

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने एक महिला की वह अर्जी स्वीकार कर ली, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी के राजौरी गार्डन इलाके में स्थित एक संपत्ति में किसी भी तीसरे पक्ष को अधिकार देने से उसे और उसके पति को रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की खातिर दायर याचिका खारिज करने का अनुरोध किया गया है।

वादी ने दावा किया कि यह उनकी 'संयुक्त संपत्ति' थी। वादी ने दलील दी कि महिला के पक्ष में पंजीकृत मार्च 1992 के बिक्री विलेख को रद्द कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह संपत्ति की एकमात्र या पूर्ण स्वामी नहीं हैं और यह 'साझेदारी वाली संपत्ति' है। उन्होंने कहा कि यह संपत्ति साझेदारी वाली एक कंपनी की है, जिसमें वे भागीदार थे।

याचिका में दावा किया गया है कि साझेदारी वाली उनकी कंपनी के धन का उपयोग संपत्ति खरीदने के लिए किया गया था और महिला की अपनी कोई आय नहीं थी और संपत्ति उनके पास इसलिए थी क्योंकि उनके पति कंपनी में हिस्सेदार थे। लेकिन प्रतिवादी महिला ने दलील दी कि संपत्ति उसके नाम पर खरीदी गई थी और वह संपत्ति की एकमात्र एवं पूर्ण स्वामी है।

महिला ने जोर दिया कि उसने संपत्ति खुद अर्जित की थी। अदालत ने कहा कि संपत्ति महिला के नाम पर है और वह पूर्ण मालिक है। उसने याचिका खारिज कर दी और कहा, “वास्तव में, इस युग में किसी महिला को उसके पति की सहायक मानकर उसकी स्वायत्त स्थिति को कमतर करना अभिशाप है।’’ 

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