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दिल्ली चुनाव में अपनी हार का रंज नहीं, कांग्रेस भाजपा की पराजय से है गदगद

By शीलेष शर्मा | Updated: February 12, 2020 08:31 IST

दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस मन बना चुकी थी कि वह यह चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि भाजपा को रोकने के लिए लड़ रही है यही कारण था कि चुनावी अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव प्रचार में नहीं उतरीं और पूरा प्रचार अभियान स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया.

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ठळक मुद्देदिल्ली की सीटों में खाता नहीं खुलने के बावजूद कांग्रेस को अपनी पराजय का रंज नहीं हैचुनाव परिणाम आने से पहले ही कांग्रेस ने अपनी पराजय स्वीकर की

दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा में खाता नहीं खुलने के बावजूद कांग्रेस को अपनी पराजय का रंज नहीं है. उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस इस बात से खुश है कि वह अपनी पूर्व निर्धारित रणनीति के अनुसार दिल्ली में भाजपा को रोकने में कामयाब हो गई.

इसके साफ संकेत उस समय सामने आए जब दिल्ली के प्रभारी पी. सी. चाको ने कहा, ''हम खुश हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जो प्रचार किया उसे दिल्ली के लोगों ने पराजित कर दिया है.'' पार्टी के प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला का मानना था कि गृह मंत्री ने धर्म और संप्रदाय के नाम पर दिल्ली को बांटने की कोशिश की लेकिन दिल्ली की जनता ने उसे नकार दिया.

दरअसल दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस मन बना चुकी थी कि वह यह चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि भाजपा को रोकने के लिए लड़ रही है यही कारण था कि चुनावी अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव प्रचार में नहीं उतरीं और पूरा प्रचार अभियान स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया.

हालांकि राहुल गांधी ने कुछ चुनावी सभाएं की और दो में तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी उनके साथ थीं जो केवल महज एक औपचारिकता थी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी एक प्रचार सभा में जाकर रस्म अदायगी की. यह पूरी रस्म अदायगी इस रणनीति के तहत की जा रही थी कि कांग्रेस यदि दम-खम से चुनाव लड़ती है तो वह वोट काटने का काम ही कर पाएगी. उसे पता था कि दिल्ली में जीतना उसके लिए संभव नहीं है और इससे मतों का विभाजन होगा जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा. इसे रोकने के लिए कांग्रेस ने एक सोचीसमझी रणनीति के तहत अन्य राज्यों की भांंति दिल्ली को चुना.

पार्टी की रणनीति है कि भाजपा को कमजोर करने के लिए जहां क्षेत्रीय दल मजबूत है उन्हें आगे रखा जाए. झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, जैसे राज्यों के उदाहरण सामने हैं और वही प्रयोग कांग्रेस ने दिल्ली में दोहराया. कांग्रेस का साफ मानना है कि जिस राज्य में पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती उस राज्य में भाजपा को रोकने वाले दल को परोक्ष समर्थन दिया जाए ताकि 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को मनोवैज्ञानिक तरीके से इतना कमजोर कर दिया जाए जिसका लाभ सीधे-सीधे कांग्रेस को मिल सके. कांग्रेस की रणनीति का दूसरा हिस्सा गैर भाजपा दलों के साथ 2024 में चुनाव परिणामों के बाद तालमेल बैठाने का भी है.

आज विधानसभा चुनावों में इन दलों के लिए रास्ता खोलकर कांग्रेस आगे का रास्ता मजबूत कर लेना चाहती है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 9.7% मत प्राप्त हुए थे जो की घटकर 4.26% तक जा पहुंचे हालांकि अंतिम गणना होनी बाकी है. कांग्रेस को इस बात का कोई दु:ख नहीं कि वो चुनाव में शून्य पर पहुंच गई. वह मानती है कि एकता और अखंडता, धु्रवीकरण और नफरत की राजनीति को पराजित करने में वह कामयाब हुई है.

चुनाव परिणाम आने से पहले ही कांग्रेस ने अपनी पराजय स्वीकर की और इस बात पर खुशी जाहिर की कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने में वह कामयाब रही है. कांग्रेस ने अपने संसाधनों का भी कोई उपयोग इस चुनाव में नहीं किया नतीजा दिल्ली मे कहीं उसका प्रचार अभियान ही नजर नहीं आ रहा था क्योंकि उसकी निगाह 2024 के चुनाव पर है. इसी उदासीनता के कारण कांग्रेस के अनेक उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके.

टॅग्स :दिल्ली विधान सभा चुनाव 2020भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसआम आदमी पार्टीअरविन्द केजरीवाल
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