Dehra Bypoll 2024: हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की पत्नी कमलेश ठाकुर देहरा विधानसभा उपचुनाव लड़ रही हैं। मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर है। 10 जुलाई को उपचुनाव के लिए देहरा विधानसभा से कमलेश ठाकुर को कांग्रेस उम्मीदवार घोषित किया गया था। वह सीएम सुक्खू की पत्नी हैं। पहला चुनाव है, जो वह लड़ रही हैं। कमलेश ठाकुर एक स्कूल शिक्षक रही हैं। चंडीगढ़ में पढ़ी-लिखी और एक सैनिक परिवार से ताल्लुक रखने वाली कमलेश ने सुक्खू से शादी के बाद अपनी बेटियों की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। सीट पर पार्टी कभी नहीं जीती।
रचना गुप्ता ने कहा कि ना ढंग की सड़क, ना कोई बड़ा शिक्षण संस्थान और ना ही स्व रोज़गार के कोई रास्ते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का इलाका है। आज भी आज़ाद हवा में सांस लेने को तरस रहा है। यह इलाका इसलिए अहम बन गया, क्योंकि यहां विधानसभा उपचुनाव हो रहा है। निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस लेकर भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा ने फिर से होशियार सिंह पर दांव लगाया है। देहरा विधानसभा उपचुनाव में कमलेश ठाकुर के सामने होशियार सिंह हैं। कमलेश पहली दफ़ा चुनाव लड़ रहीं है और कांग्रेस ने चुनाव में भाजपा की तरह नया प्रयोग करते हुए मुख्यमंत्री की पत्नी पर दांव खेला है। जब से हिमाचल में कांग्रेस से सुखविंदर सिंह सुक्खू सीएम बने हैं। सीएम की चुनौतियाँ बढ़ी हैं।
कांग्रेस के भीतर विधायकों का बाग़ी होना। इस्तीफ़ा दे कर फिर उपचुनाव होना या सरकार गिराने का प्रयास। इस सभी के बीच उनकी पत्नी को टिकट दिया जाना भी कूटनीति का हिस्सा है। कमलेश ठाकुर को सीएम की पत्नी होने का सीधा लाभ दिखता है। कांग्रेस की मजबूरी है कि विश्वसनीय विधायकों की संख्या बढ़ाई जाए।
देहरा की सीट कई मायनों में अलग है और ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि देहरा की दहलीज़ तक भी काम नहीं हुआ है। दरअसल भाजपा में शांता और धूमल ख़ेमे ने देहरा से खुद को अलग किया है। बस इसी का फ़ायदा उठाया दो बार के स्वतंत्र विधायक बने होशियार ने। जो बड़े व्यापारी हैं। देश -विदेश में बड़ा कारोबार है। लेकिन किसी सरकार का हिस्सा नहीं रहे तो देहरा का काम नहीं हुआ।
हाँ, दुख -सुख, शादी -ब्याह के नाम पर होशियार जीतते रहे। अब कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ने स्वतंत्र विधायकों को ख़रीद लिया और भाजपा ने कार्यकर्ताओं को छोड़ कर एक “पराये” को कमल थमा दिया। यही नाराज़गी भाजपा को धरातल में देखनी पड़ रही है। ना वहाँ से नेता रवींद्र रवि (पूर्व प्रत्याशी और धूमल समर्थक),ना ही रमेश धवला ( पूर्व प्रत्याशी और शांता समर्थक ) बाहर निकले हैं।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव दिख रहे हैं। कुल मिला कर होशियार के शगुन को छोड़ दें तो भाजपा वहाँ विकास ना होने का कोई उत्तर नहीं दे पा रही। बस इसी बात का उत्तर सुखु के पास है। उन्होंने दो टूक जवाब दिया है कि अगर कांग्रेस नहीं तो अगले तीन साल विकास नहीं। यानी लोग समझ रहे हैं कि प्रदेश में सत्ता अभी सुक्खू के हाथ में है और उनकी पत्नी को जितना देहरा के हित में है।
हरिपुर गाँव में नेक राम कहते हैं कि “लोकी ताँ कंफ्यूज ए, इथी सुखु भी अन्दा कने बीजेपी वाले भी चलयो”। भाजपा का कार्यकर्ता यहां ही नहीं तीनों उपचुनावों में खफा हैं। तीनों सीटों पर भाजपा ने तीन निर्दलियों को ही टिकट दिया है। नालागढ़ और हमीरपुर में भी। प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसी स्थिति आई है कि स्थापित कांग्रेस सरकार अस्थापित की गई हो और बार बार चुनाव उपचुनाव में उलझी हो।
अब इन तीन नतीजों पर प्रदेश की अगली दिशा तय होगी। भाजपा की तमाम लीडरशिप ज़ोर लगा रही है और कांग्रेस में दारोमदार सीएम पर है। भाजपा का संकट है अपनो को परायों से ना मिला पाना। वहीं कांग्रेस को सत्ता सुख तो है ही वहीं बाग़ियों के ख़िलाफ़ जनता में रोष भी। कुल मिला कर देहरा का भाग्य कमलेश बदल सकती हैं। कमलेश के साथ भाजपा का आधा “कमल “है, सरकार का डबल इंजन भी।