SC ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग कानून की संवैधानिक वैधता रखी बरकरार
By भाषा | Published: January 6, 2020 02:30 PM2020-01-06T14:30:58+5:302020-01-06T14:30:58+5:30
इस कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं कलकत्ता उच्च न्यायालय में दाखिल की गई थी। इनमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों को आर्थिक मदद मुहैया करवाने वाली सरकार शिक्षकों की नियुक्ति के लिए दिशा-निर्देश तो बना सकती है लेकिन नियुक्ति नहीं कर सकती। उच्च न्यायालय ने कानून को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा था कि यह अनुच्छेद 30 का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन देखने का अधिकार है।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग कानून, 2008 की संवैधानिक वैधता की पुष्टि की और इसके साथ ही राज्य के मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति का रास्ता साफ कर दिया। इस अधिनियम के तहत गठित आयोग द्वारा की गई शिक्षकों की नियुक्ति को भी शीर्ष अदालत ने बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें इस कानून को असंवैधानिक करार दिया गया था। पीठ ने कहा कि मदरसा प्रबंध समिति की ओर से अब तक की गई नियुक्तियां व्यापक हितों को देखते हुए वैध रहेंगी। शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग कानून, 2008 की संवैधानिक वैधता भी बरकरार रखी है। यह कानून मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति आयोग द्वारा करने को अनिवार्य बनाता है।
इस कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं कलकत्ता उच्च न्यायालय में दाखिल की गई थी। इनमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों को आर्थिक मदद मुहैया करवाने वाली सरकार शिक्षकों की नियुक्ति के लिए दिशा-निर्देश तो बना सकती है लेकिन नियुक्ति नहीं कर सकती। उच्च न्यायालय ने कानून को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा था कि यह अनुच्छेद 30 का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन देखने का अधिकार है।
उच्च न्यायालय के फैसले को नए कानून के तहत नियुक्ति पाए शिक्षकों ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी। याचिकाओं को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अंतिम आदेश तक उन्हें नौकरियों से नहीं हटाया जाए। इसके बाद शीर्ष अदालत ने वर्ष 2018 में राज्य सरकार को रिक्त पदों पर नियुक्ति की अनुमति दी, हालांकि अदालत के अंतिम फैसले से यह प्रभावित हो सकता है।