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लॉकडाउन के दौरान बिहार में टूट रही हैं परंपराएं, बेटे नहीं आ सके तो पत्नी ने दी पति को मुखाग्नि, किया दाहसंस्कार

By एस पी सिन्हा | Updated: April 29, 2020 16:21 IST

बरूआरी गांवे में 68 साल के लखन साह की मौत सोमवार रात को हो गई थी. इनके तीनों बेटे संजय साह, रामचंद्र साह और चंद्रकिशोर साह दिल्ली में मजदूरी करते हैं. लॉकडाउन के कारण ये घर नहीं आ सके. गांव के लोगों ने निर्णय लिया कि भतीजे से मुखाग्नि दिलवाई जाए.

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ठळक मुद्देबिहार में लॉकडाउन के दौरान परंपराएं टूट रही हैं.बेटों की मां और उस व्यक्ति की पत्नी ने अपने पति का अंतिम संस्कार किया.

पटना: बिहार में लॉकडाउन के दौरान परंपराएं टूट रही हैं. इस लॉकडाउन में बच्चों के घर से बाहर रहने के कारण अंत्येष्टी (अंतिम संस्कार) में भी बच्चों का भाग लेना अथवा मृतक का चेहरा भी देख पाना कईयों को नसीब नही हो रहा है. लॉकडाउन के बाद ऐसी कई खबरें सामने आ रही हैं जो दिलों को झकझोर कर रख देती हैं. अभी ताजा मामला सुपौल जिले से सामने आया है, जिसमें एक पिता के तीन बेटे लॉकडाउन में बाहर फंसे रह गये. बाद में उन बेटों की मां और उस व्यक्ति की पत्नी ने अपने पति का अंतिम संस्कार किया.

प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के सदर प्रखंड स्थित बरूआरी गांवे में 68 साल के लखन साह की मौत सोमवार रात को हो गई थी. इनके तीनों बेटे संजय साह, रामचंद्र साह और चंद्रकिशोर साह दिल्ली में मजदूरी करते हैं. लॉकडाउन के कारण ये घर नहीं आ सके. गांव के लोगों ने निर्णय लिया कि भतीजे से मुखाग्नि दिलवाई जाए. लेकिन भतीजे ने इससे इनकार कर दिया. इसके बाद जब कोई रास्ता नही बचा तो थक- हारकर लखन साह की पत्नी सुमित्रा देवी को उन्हें मुखाग्नि देनी पड़ी. लखन साह के बड़े बेटे संजय साह ने गांव के लोगों को बताया कि पिता के निधन की सूचना मिलने के बाद उन्होंने दिल्ली में कई अधिकारियों के पास फरियाद की. लेकिन कहीं से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. इस कारण वह घर नहीं पहुंच सके. इसके बाद उनकी मां को ही मुखाग्नि देनी पड़ी. गांव वालों ने भी इसे मजबूरी मानकर परंपरा को तोड़ने में उनकी मदद की.

उसीरतह लॉकडाउन के बीच देहरादून से सुपौल पहुंच कर एक बेटी ने पिता का अंतिम संस्कार किया और अब वो पूरा कर्मकांड निभा रही है. देहरादून में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही योग्यता डीएम से परमिशन लेकर लॉकडाउन के बीच घर पहुंची. बताया जा रहा है कि सुपौल के रहने वाले समाजसेवी अश्विनी कुमार सिन्हा के निधन के बाद उनकी पुत्री योग्यता ने पिता को मुखाग्नि दी और वे अब सारा कर्मकांड निभा रही हैं. कहा जा रहा है कि देहरादून में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही योग्यता को पिता के निधन की खबर मिली तो जैसे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई. योग्यता ने घर जाने के लिए वहां के डीएम से गुहार लगाई तो उसे अनुमति मिल गई. योग्यता हिम्मत बांध कर हजारों किलोमीटर दूर से अपने घर पहुंची. उसके बाद पिता का अंतिम संस्कार किया. 

बताया जाता है कि तीन बहनों में योग्यता सबसे बड़ी है. 17 अप्रैल को पिता के निधन के बाद  उनका घर आना जरूरी था. देहरादून के डीएम से गुहार लगाने के बाद उन्होंने गाड़ी और गार्ड की व्यवस्था कर दी गई. 18 अप्रैल की देर रात दो बजे वह घर पहुंची और 19 अप्रैल को अंतिम संस्कार हुआ. ऐसे में योग्यता ने कहा कि पापा का सपना पूरा करने की अब मेरी जिम्मेवारी बढ गई है. पापा चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं. मेरा फाइनल इयर चल रहा है. सबसे पहले मैं उनके सपने को पूरा करुंगी. यहां बता दें कि बिहार में ऐसी कोई पहली घटना नही है. ऐसी हीं घटना सारण जिले और भागलपुर में घट चुकी हैं, जहां पुत्रों के बाहर रहने के कारण अपने पति को मुखाग्नि पत्नी को ही देना पडा था. सबसे दुखद घटना तो तब हुआ जब एक युवक की मौत गुजरात में हो गई और पटना के पास मसौढी के रहने वाले उसके परिजन उसका मरा हुआ चेहरा भी देखने नही जा सके. बाद में वीडियो कालिंग के माध्यम से उसके दोस्त ने उसके चेहरे को दिखाया और वहीं पर अंतिम संस्कार कर दिया.

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