नई शिक्षा नीति को लेकर कांग्रेस खेमों में बंटी, इस पर होने वाले खर्च को लेकर उठे सवाल
By शीलेष शर्मा | Published: August 4, 2020 05:48 AM2020-08-04T05:48:19+5:302020-08-04T05:48:19+5:30
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति पर देश में बहस जारी है। कांग्रेस में भी नई शिक्षा नीति को लेकर एक राय नहीं है। कांग्रेस के कई नेता इसे जरूरी बता रहे हैं तो वहीं कई सवाल भी उठा रहे हैं।
नई दिल्ली: केंद्र द्वारा घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर कांग्रेस शासित राज्य सरकारें मानती हैं कि केंद्र ने राज्यों से बिना चर्चा किये ,इससे राज्यों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का आंकलन किये बिना ही नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। जिस समय देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है ,स्कूल ,कॉलेज बंद पड़े हैं तब सरकार को इतनी जल्दी क्या थी कि नई नीति घोषित की जाये।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह का कहना था कि जब तक गहराई से नई नीति का अध्ययन नहीं कर लिया जाता तब तक कोई टिप्पणी करना उचित नहीं है। दरअसल कांग्रेस में भी नई शिक्षा नीति को लेकर एक राय नहीं है। पूर्व मानव संसाधन मंत्री शशि थरूर ने नई शिक्षा नीति का समर्थन किया है लेकिन उन्होंने इसके लिये ज़मीनी ढांचे और इस पर आने वाले खर्च को लेकर गंभीर सवाल उठाये हैं। उनका मानना है कि क्या वित्त मंत्रालय बजट में इसका प्रावधान करेगा।
कांग्रेस नेता पल्लम राजू ने कहा- नई शिक्षा नीति को अमल में लाने के लिए पैसे की आवश्यकता
कांग्रेस के ही दूसरे मंत्री पल्लम राजू कहते हैं स्कूल और उच्च शिक्षा में व्यापक बदलाव करने, परिवर्तनशील विचारों को लागू करने तथा बहुविषयी दृष्टिकोण को अमल में लाने के लिए पैसे की आवश्यकता है। शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की गई है।
इसके विपरीत मोदी सरकार में बजट के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर किया जाने वाला खर्च, 2014-15 में 4.14 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 3.2 प्रतिशत हो गया है। यहां तक कि चालू वर्ष में कोरोना महामारी के चलते इस बजट की राशि में भी लगभग 40 प्रतिशत की कटौती होगी, जिससे शिक्षा पर होने वाला खर्च कुल बजट के 2 प्रतिशत के बराबर ही रह जाएगा। यानि शिक्षा नीति 2020 में किए गए वादों एवं उस वादे को पूरा किए जाने के बीच जमीन आसमान का अंतर है।
कांग्रेस के मानना- नई शिक्षा नीति पर पहले संसद में बहस होती तो अच्छा होता
कांग्रेस मानती है कि इस नीति को राज्य सरकारों ,शिक्षाविदों ,और देश में व्यापक चर्चा के बाद लाना चाहिये था। संसद में पहले बहस होती तो बेहतर होता, क्योंकि मध्यम वर्ग व गरीब के लिए नया ‘‘डिजिटल डिवाईड’’शिक्षा नीति 2020 का मुख्य केंद्र ‘ऑनलाइन शिक्षा’ है।
ऑनलाइन शिक्षा के आधार पर पढ़ने वाले विद्यार्थियों का औसत भर्ती अनुपात मौजूदा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का दावा किया गया है। परंतु गरीब व मध्यम वर्ग परिवारों में कंप्यूटर/इंटरनेट न उपलब्ध होने के चलते गरीब और वंचित विद्यार्थी अलग थलग पड़ जाएंगे और देश में एक नया ‘डिजिटल डिवाईड’ पैदा होगा। हाशिए पर रहने वाले वर्गों के 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे पूरी तरह ऑनलाइन शिक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगे।