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बिहार में कभी एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस को महागठबंधन में बने रहने के लिए बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी है!

By एस पी सिन्हा | Updated: March 23, 2019 20:47 IST

पिछले पांच लोकसभा चुनाव में परचम लहराने वाली कांग्रेस इमरजेंसी के दौरान सत्ता से बाहर हो गई. 1977 में हुए छठे लोकसभा चुनाव में इमरजेंसी के दौरान नेताओं पर हुए अत्याचार, नसबंदी व जनता में डर सहित अन्य मुद्दे को लेकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया गया.

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ठळक मुद्देदेश में 25 जून, 1975 से लेकर 21 मार्च, 1977 तक इमरजेंसी लगी रही.1977 में हुए छठे लोकसभा चुनाव में इमरजेंसी के दौरान नेताओं पर हुए अत्याचार, नसबंदी व जनता में डर सहित अन्य मुद्दे को लेकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया गया.

बिहार में कभी एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस को महागठबंधन में बने रहने के लिए बड़ी कुर्बानी देनी पड़ रही है. पार्टी को उम्मीद थी कि महागठबंधन में उसे सम्मानजनक सीटें हासिल होंगी. पर, आलम यह है कि उसे अपनी पारंपरिक सीटों से भी बेदखल होना पड़ा है. औरंगाबाद की सीट इसका उदाहरण है. यहां पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह के पुत्र पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार को टिकट देने की बजाय यह सीट जीतन राम मांझी की पार्टी को मिल गयी. नाराज निखिल कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत करने की बात कही है. 

इमरजेंसी ने कांग्रेस को किया था कमजोर 

यहां उल्लेखनीय है कि पिछले पांच लोकसभा चुनाव में परचम लहराने वाली कांग्रेस इमरजेंसी के दौरान सत्ता से बाहर हो गई. 1977 में हुए छठे लोकसभा चुनाव में इमरजेंसी के दौरान नेताओं पर हुए अत्याचार, नसबंदी व जनता में डर सहित अन्य मुद्दे को लेकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया गया. इस चुनाव में जहां लालू प्रसाद यादव छपरा से पहली बार सांसद बने, वहीं हाजीपुर सुरक्षित सीट से रामविलास पासवान रिकॉर्ड मतों से जीते. मुजफ्फरपुर से समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस ने अपना परचम फहराया था. 

देश में  25 जून, 1975 से लेकर 21 मार्च, 1977 तक इमरजेंसी लगी रही. इस दौरान 23 जनवरी, 1977 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अचानक देश में आम चुनाव की घोषणा की. मार्च महीने में चुनाव हुए और परिणाम भी आये. पहला मौका था जब कांग्रेस की करारी हार हुई. इस चुनाव में विपक्ष एक हो गया था. इस गठबंधन का नाम जनता पार्टी था. जिसमें कई छोटी पार्टियां भी शामिल थीं.

कांग्रेस के सभी उम्मीदवार हारे  चुनाव में संयुक्त बिहार में बड़े दल होने के बावजूद कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. चुनाव में उतरे पार्टी के सभी 54 उम्मीदवार हार गये. जनता पार्टी के नेताओं ने जनता को आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों और मानव अधिकारों के उल्लंघन की याद दिलाई. संयुक्त बिहार की 54 सीट में भारतीय लोक दल को 52 सीट, झारखंड पार्टी व निर्दलीय को एक-एक सीट पर सफलता मिली थी. सिंहभूम सुरक्षित से झारखंड पार्टी के बागून सुम्ब्रुई व धनबाद से निर्दलीय उम्मीदवार एके रॉय चुनाव जीतने में सफल रहे. 

लालू यादव और रामविलास पासवान का राजनीतिक उदय 

इस चुनाव में सीपीआइ 22, सीपीएम दो, मुस्लिम लीग दो, जेआरडी छह, झारखंड पार्टी एक, बिहार प्रांत हल झारखंड तीन, रिपब्लिकन ऑफ इंडिया एक, शोषित समाज दल छह, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया तीन और निर्दलीय 188 उम्मीदवार थे, लेकिन सभी सीटों पर जनता पार्टी के उम्मीदवारों की लहर थी. चुनाव में छपरा से पहली बार लालू प्रसाद यादव सांसद बने. हाजीपुर सुरक्षित से रामविलास पासवान पास रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल किये थे. 

रामविलास पासवान को चार लाख 69 हजार सात मत मिला था. समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस चुनाव के दौरान हाथ में हथकड़ी लगी तस्वीर के सहारे चुनाव फतह कर लिये थे. मुजफ्फरपुर की जनता ने उन्हें जीत का सेहरा बांधा था. 

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