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'यह तुच्छ और जहरीला है', गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को केंद्र द्वारा रोके जाने पर बोले पी साईनाथ

By अनिल शर्मा | Updated: January 22, 2023 15:10 IST

विदेश मंत्रालय ने दो भागों वाले बीबीसी के इस डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का एक हिस्सा’ करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से झलकती है।

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ठळक मुद्देकेंद्र ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' का लिंक साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक कर दिया।पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के संस्थापक-संपादक पी साईनाथ ने इस कार्रवाई को तुच्छ और जहरीला बताया है।

जयपुरः केंद्र द्वारा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' का लिंक साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक किए जाने के कदम को पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के संस्थापक-संपादक साईनाथ ने जहरीला बताया है। पी साईनाथ ने कहा कि वे हर उस चीज का सफाया करने को तैयार हैं जो मोदी, उनकी सरकार या उनकी पार्टियों की आलोचना करती है।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के मौके पर द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में साईनाथ ने केंद्र की इस कार्रवाई को तुच्छ और जहरीला बताया। उन्होंने कहा कि "बड़ी संख्या में भारतीय अब इसे एक्सेस नहीं कर पाएंगे। लेकिन उस डॉक्यूमेंट्री के स्रोतों को देखें। पूर्व विदेश सचिव और यूके सरकार के मंत्री स्तर के लोग बोल रहे हैं ... और आप (सरकार) इसे मिटा दें?

 साईनाथ ने इस कदम के प्रति बड़े भारतीय मीडिया हाउस की प्रतिक्रियाओं के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ सेंसरशिप नहीं है। मीडिया में हम स्व-सेंसरशिप को बड़े पैमाने पर अपनाते हुए देख रहे हैं। उन्हें कुछ नहीं करने के लिए कहने की जरूरत नहीं है, वे ऐसी स्टोरी दिखा नहीं रहे हैं। यह बड़ी त्रासदी है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों विदेश मंत्रालय ने दो भागों वाले बीबीसी के इस डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का एक हिस्सा’ करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से झलकती है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने आईटी नियम, 2021 के तहत आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शुक्रवार को निर्देश जारी किए।

सूत्रों ने बताया कि विदेश, गृह मामलों और सूचना एवं प्रसारण सहित कई मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों ने वृत्तचित्र की पड़ताल की और पाया कि यह उच्चतम न्यायालय के अधिकार और विश्वसनीयता पर आक्षेप लगाने, विभिन्न भारतीय समुदायों के बीच विभाजन का बीज बोने का प्रयास है। हालांकि कांग्रेस और टीएमसी ने सरकार के इस कमद की आलोचना की। जबकि कई पूर्व नौकरशाहों, जजों ने डॉक्यूेंट्री की ‘‘हमारे नेता, एक भारतीय और देशभक्त के खिलाफ प्रेरित और पूर्वाग्रह पूर्ण आरोप-पत्र’’ की संज्ञा देकर आलोचना की।

पूर्व नौकरशाहों और अन्य लोगों ने एक बयान जारी करके दावा किया कि वृत्तचित्र भारत में आजादी से पूर्व के ब्रिटिश साम्राज्यवाद का एक पुराना तरीका है, जो हिंदू-मुस्लिम तनावों को फिर से उभारने के लिए खुद को न्यायाधीश और जूरी दोनों के रूप में स्थापित करता है, जो ‘बांटो और राज करो’ की ब्रिटिश नीति का ही रूप है।

बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, पूर्व गृह सचिव एल सी गोयल, पूर्व विदेश सचिव शशांक, रिसर्च एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के पूर्व निदेशक योगेश चंद्र मोदी शामिल हैं। बयान पर 13 पूर्व न्यायाधीशों, राजनयिकों सहित 133 पूर्व-नौकरशाहों और 156 दिग्गजों ने हस्ताक्षर किये हैं और कहा है कि यह वृत्तचित्र एक तटस्थ समालोचना नहीं है।

भाषा इनपुट के साथ

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