चुनाव स्पेशल: कर्नाटक के ये दिग्गज क्यों लड़ रहे हैं दो सीटों से चुनाव!
By आदित्य द्विवेदी | Published: May 3, 2018 07:37 AM2018-05-03T07:37:36+5:302018-05-03T07:37:36+5:30
सिद्धारमैया ऐसे पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं जो दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। कर्नाटक में ये परंपरा 1985 में एचडी देवगौड़ा ने शुरू की थी।
बेंगलुरु, 02 मईः कर्नाटक की चन्नापटना विधानसभा सीट पर मुकाबला हाई-प्रोफाइल होने जा रहा है। यहां से बीजेपी के टिकट पर मजबूत क्षेत्रीय नेता सीपी योगेश्वर चुनाव लड़ रहे हैं। इस इलाके में वोक्कालिगा समुदाय की अच्छी आबादी है जो जेडीएस का परंपरागत वोट बैंक है। बावजूद इसके पिछले चुनाव में योगेश्वर ने पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारास्वामी की पत्नी अनीता को हराया था। योगेश्वर यहां से साल 1999 से लगातार जीतते रहे हैं। इसबार सीपी योगेश्वर को जनता दल (सेकुलर) के अध्यक्ष एचडी कुमारास्वामी खुद चुनौती दे रहे हैं। हालांकि किसी रिस्क से बचने के लिए कुमारास्वामी ने अपने गढ़ रामनगर से भी पर्चा दाखिल किया है। इसी तरह कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं- चामुंडेश्वरी और बादामी। कर्नाटक में दो सीटों से चुनाव लड़ने की परंपरा नई नहीं है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि कर्नाटक के चुनाव में कोई बड़ा नेता दो सीटों से चुनाव लड़ रहा हो। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में यह ट्रेंड जेडी(एस) सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा ने शुरू किया था।
साल 1985 की बात है। प्रदेश में पुट्टास्वामी और देवगौड़ा की जोड़ी साथ थी। लेकिन पुट्टास्वामी ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। देवगौड़ा को यह बात नागवार गुजरी कि उनके सहयोगी ने उनके चिर-प्रतिद्वंदी रामकृष्ण हेगड़े से हाथ मिला लिया है। ऐसे में देवगौड़ा ने तय किया कि वो पुट्टास्वामी को होलेनारसीपुरा सीटे से हराएंगे और इस तरह हसन जिले में उनका वर्चस्व बढ़ जाएगा।
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देवगौड़ा अच्छी तरह जानते थे कि होलेनारसीपुरा में पुट्टास्वामी का वोटबैंक खिसकने वाला नहीं है। ऐसे में उन्होंने कांग्रेस नेता केएच पाटिल के साथ एक सौदा किया। डील के मुताबिक कांग्रेस होलेनारसीपुरा से पुट्टास्वामी का टिकट काट देगी और कांग्रेस की तरफ से एक कमजोर प्रत्याशी खड़ा करेगी। बदले में गदग सीट से देवगौड़ा एक कमजोर प्रत्याशी खड़ा करेंगे। यह डील कारगर रही। देवगौड़ा ने दोनों सीटों से चुनाव जीत लिया। पुट्टास्वामी, जो एक निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़े थे वो दो हजार वोटों से हार गए। एचडी देवगौड़ा ने 1989 के चुनाव में भी दो सीटों से चुनाव लड़ा- होलेनारसीपुरा और कनकपुरा।
देवगौड़ा ने तीसरी बार 2004 लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़ा- कनकपुरा और हसन। उन्होंने हसन से जीत दर्ज की और कनकपुरा सीट से तेजस्वी गौड़ा ने उन्हें हरा दिया। कर्नाटक के एक पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ा था। उन्होंने 2004 विधानसभा चुनाव में शिकारीपुर और सोराब से चुनाव लड़ने का फैसला किया। उन्हें शिकारीपुर से बीएस येदियुरप्पा के हाथों हार का सामना करना पड़ा हालांकि सोराब सीट से उन्होंने जीत दर्ज की।
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इतिहास एकबार फिर दोहराया जा रहा है। 1985 में देवगौड़ा की तरह 2018 में कुमारास्वामी चन्नापटना सीट से अपने पुराने प्रतिद्वंदी सीपी योगेश्वर को हराना चाहते हैं। कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने यहां से कमजोर प्रत्याशी खड़ा किया है जिससे कुमारास्वामी जीत जाएं। बदले में जेडी(एस) कनकपुरा सीट से कमजोर प्रत्याशी उतारेगी जो डीके शिवकुमार का गढ़ माना जाता है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। पीएम मोदी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान उनकी दो सीटों से चुनाव लड़ने को लेकर तंज सका है। सिद्धारमैया की बात करें तो उनकी मंशा किसी को हराना नहीं बल्कि अपनी जीत सुनिश्चित करनी है। सूत्रों के मुताबिक, 'सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी की राजनीति से पिछले एक दशक से दूर हैं। वहां उनकी जीत और हार की संभावनाएँ बराबर हैं। हालांकि बादामी सीट से उनके जीत की संभावना ज्यादा है क्योंकि यहां कुरुबा जाति बड़ी संख्या में है। सिद्धारमैया कुरुबा जाति से ही ताल्लुक रखते हैं।'
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