नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के अंदर आने वाले सभी विभागों में उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना किसी भी सलाहकार, फेलो और स्पेशलिस्ट की नियुक्ति पर रोक लगने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी नाराजगी जाहिर की है।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार कोएक ट्वीट के जरिए उपराज्यपाल पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल के एक नए आदेश से दिल्ली सरकार की सेवाएं और कार्यप्रणाली "पूरी तरह से बाधित" हो जाएगी, जिसमें उनकी मंजूरी के बिना सैकड़ों सलाहकारों और सहयोगियों की नियुक्ति पर रोक लगा दी गई है।
इस फैसले को लेकर केजरीवाल ने कहा, "एलजी पूरी तरह से सरकार और उनकी सेवाओं का गला घोंट देंगे। मुझे नहीं पता कि यह सब करके एलजी को क्या मिलेगा? मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे तुरंत रद्द कर देगा।
गौरतलब है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने अलग-अलग विभागों से जुड़े बोर्ड, आयोग और कमेटियों में 437 लोगों को फेलो, एसोसिएट फेलो, एडवाइजर, डिप्टी एडवाइजर, सीनियर रिसर्च अधिकारी आदि पदों पर नियुक्ति की गई थी।
पद के हिसाब से इन लोगों को 60 हजार से 2 लाख 65 रुपये प्रति माह के हिसाब से वेतन दिया जाना था। हालांकि, एलजी के आदेश के बाद इन सभी सेवाओं को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया।
इन लोगों की सेवा समाप्त होने से सीधा असर दिल्ली सरकार को हुआ। इसी कारण भड़के सीएम केजरीवाल ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना के इस फैसले को दिल्ली सरकार का गला घोंटने वाला करार दिया है।
जानकारी के अनुसार, बुधवार को सेवा विभाग जो उपराज्यपाल को रिपोर्ट करता है, ने दिल्ली सरकार के तहत सभी विभागों, बोर्डों, आयोगों और स्वायत्त निकायों को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि वे उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना व्यक्तियों को फेलो और सलाहकार के रूप में शामिल करना बंद करें।
यह पत्र उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा भर्ती में कथित अनियमितताओं का हवाला देते हुए केजरीवाल सरकार द्वारा विभिन्न विभागों में नियुक्त लगभग 400 ''विशेषज्ञों'' की सेवाओं को समाप्त करने के कुछ दिनों बाद आया है। इस फैसले को आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने "असंवैधानिक" करार दिया, जो इसे अदालत में चुनौती देने की योजना बना रही है।
पत्र में यह भी कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना ऐसे जनशक्ति को नियुक्त करने या संलग्न करने में सक्षम नहीं है।
सेवा विभाग ने वित्त विभाग से उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना लगे लोगों के लिए वेतन जारी नहीं करने के लिए कहा, और अन्य विभागों को अपने मामलों को उचित औचित्य के साथ उपराज्यपाल के पास विचार के लिए भेजने का निर्देश दिया।
उपराज्यपाल कार्यालय ने पहले कहा था कि नियुक्तियों में संविधान द्वारा निर्धारित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए अनिवार्य आरक्षण नीति का भी पालन नहीं किया गया है।