सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के 7 ऐतिहासिक फैसले, आज था कामकाज का आखिरी दिन

By आदित्य द्विवेदी | Updated: October 1, 2018 20:28 IST2018-10-01T13:31:00+5:302018-10-01T20:28:23+5:30

CJI Dipak Misra: पिछले साल 28 अगस्त को उन्होंने बतौर चीफ जस्टिस कार्यभार ग्रहण किया था। अपने 13 महीने के कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए...

CJI Dipak Misra historical judgments before retirements, all you need to know | सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के 7 ऐतिहासिक फैसले, आज था कामकाज का आखिरी दिन

CJI दीपक मिश्रा के वो पांच ऐतिहासिक फैसले, जिससे मिली देश को दिशा

नई दिल्ली, 01 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा दो अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं। कार्यकाल के आखिरी दिनों में उनके ताबड़तोड़ ऐतिहासिक फैसलों ने देशभर में चर्चा खड़ी कर दी है। इतनी अधिक संवैधानिक पीठ का नेतृत्व करने वाले गिने-चुने सीजेआई में उनका शुमार होगा। दीपक मिश्रा को 10 अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था। पिछले साल 28 अगस्त को उन्होंने बतौर चीफ जस्टिस कार्यभार ग्रहण किया था।

उनके हालिया बड़े फैसलों ने देश की राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दिशा तय की है। जानें, मुख्य न्यायाधीश रहते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा के पांच ऐतिहासिक फैसले जिन्होंने एक मिशाल पेश की।

1. समलैंगिकता अपराध नहीं

जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने समलैंगिकों को अपराध बताने वाली धारा 377 को हटाने का फसला दिया। सालों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे एलजीबीटी समुदाय के लिए यह फैसला एक ऑक्सीजन सरीखा था। पीठ ने कहा कि आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा।

चीफ जस्टिस ने कहा कि जो भी जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। इस संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल थी।

2. विवाहेत्तर सम्बन्ध दण्डनीय अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विवाहेत्तर संबंधों को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 497 को समाप्त कर दिया है। इस पीठ का नेतृत्व भी चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे। उनके अलावा पीठ में जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थी। इस पीठ ने ही धारा 377 पर अपना अहम फैसला सुनाया था।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने महिलाओं के सम्मान और लोकतंत्र का हवाला देते हुए अंग्रेजों के जमाने के इस व्यभिचार कानून का खात्मा कर दिया। 

3. आधार है संवैधानिक

सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आधार कार्ड की वैधता पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आधार स्कीम की वैधता बरकरार रखा। साथ ही बैंक खातों, सिम कार्ड और प्राइवेट कंपनियों के लिए आधार की अनिवार्यता का खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 27 याचिकाकर्ताओं को सुनने के बाद 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तास्वामी की याचिका सहित कुल 31 याचिकाएं दायर की गयी थीं। इस संवैधानिक पीठ की नेतृत्व भी चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे।

4. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश

केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी है। इसमें चार लोगों ने बहुमत से फैसला सुनाया है जबकि इंदु मल्होत्रा की राय अलग रही। गौरतलब है कि महिलाओं की एंट्री पर बैन के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।

सीजेआई दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि महिलाएं किसी भी रूप में पुरुषों से कमतर नहीं है। एक तरफ तो महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है और दूसरी तरफ उनके प्रवेश पर रोक लगाया जाता है। ईश्वर से नाता शारीरिक विभेद के आधार पर नहीं हो सकता। 10 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। 

5. नमाज के लिए मस्जिद की अनिवार्यता नहीं

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाते हुए कहा कि इस्लाम में नमाज के लिए मस्जिद की अनिवार्यता नहीं है। 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इस फैसले के दोबारा परीक्षण के लिए मुस्लिम संगठनों ने याचिका दायर की थी।

इसे सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने भेजा जाए या नहीं इस पर फैसला किया जाना था। 2-1 के बहुमत ने बड़ी बेंच के पास भेजने से इंकार कर दिया। हालांकि इस मामले का संबंध रामजन्मभूमि के मुख्य विवाद से नहीं है। उसकी सुनवाई 2 अक्टूबर से शुरू की जाएगी।

6. सीजेआई दीपक मिश्रा ने पांच साल या उससे ज्यादा सजा के मामले में आरोप तय होने के बाद भी नेताओं के चुनाव लड़कने से रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके अलावा उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि एमएलए और एमपी को देश भर की अदालतों में बतौर वकील प्रैक्टिस करने से रोक लगाई जाए।

7. जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने एससी-एसटी से जुड़े लोगों को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण का रास्ता साफ कर दिया।

जस्टिस दीपक मिश्रा के अन्य चर्चिच फैसले

अपने 13 महीने के कार्यकाल में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने और भी कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं। हालांकि इससे पहले भी उनके कई फैसले थे जिन पर काफी विवाद भी मचा। इनमें से कुछ फैसले उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहते हुए सुनाए तो कुछ सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए।

- दिल्ली के निर्भया गैंगरेप के दोषियों को फांसी सजा बरकरार रखना और चाइल्ड पोर्नोग्राफी वाली वेबसाइट बैन करने का फैसला भी काफी चर्चित रहा है। 

- जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ही यह आदेश दिया था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद तमाम लोग खड़े होंगे। हालांकि 9 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने की बाध्यता समाप्त कर दी।

जस्टिस दीपक मिश्रा की पृष्ठभूमि-

दीपक मिश्रा का जन्म 1953 में हुआ था। उन्होंने 1977 में वकालत शुरू की लंबे समय तक उड़ीसा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की। 1996 में उन्हें उड़ीसा हाई कोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्ति मिली। 1997 में वो स्थायी जज बने। 23 दिसंबर 2009 को पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए और 24 मई को दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस का कार्यभार संभाला। 10 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति मिली।

English summary :
Supreme Court Chief Justice Dipak Misra is retiring on October 2. In the last days of Dipak Misra's tenure, his back to back judgements on historic decisions, like Aadhaar Validity, Ram Mandir Verdict, Adultery, SC/ST reservation in promotion, has raised a discussion in the country. Dipak Misra will be among the very few Chief Justice of India (CJI) leading so many constitutional bench. Chief Justice Dipak Misra was made the Judge of the Supreme Court on October 10, 2011. On August 28, last year, Dipak Misra took over as Chief Justice.


Web Title: CJI Dipak Misra historical judgments before retirements, all you need to know

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