नागरिकता संशोधन बिल के सोमवार को लोकसभा में पास होने के बाद से पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन जारी है। मंगलवार को इस प्रदर्शन के हिंसक होने से 20 लोग घायल हो गए।
इन प्रदर्शनों को देखते हुए त्रिपुर की बिप्लव देव सरकार ने मंगलवार को राज्य में अगले 48 घंटों तक मोबाइल इंटरनेट और एसएमएस सेवाओं पर रोक लगा दी।
असम में विरोध प्रदर्शन में कई घायल, कई जिलों में धारा 144 लागू
असम की राजधानी गुवाहाटी में पुलिस के साथ भिड़ंत में कम से कम छह प्रदर्शनकारी घायल हो गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और उन पर लाठीचार्ज किया। पुलिस के साथ झड़प में जोरहाट, गोलाघाट और नागांव में भी कुछ प्रदर्शनकारी घायल हो गए।
वहीं दूसरी ओर असम के तिनसुखिया, सोनितपुर और लक्ष्मीपुर जिलों में इन विरोध प्रदर्शनों को देकते हुए धारा 144 लागू कर दी गई है। गौहाटी यूनिवर्सिटी और डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी में परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं।
असम में इस बिल के संसद में पेश होने से पहले और लोकसभा में पास होने के बाद भी विरोध प्रदर्शन जारी है। हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं और हाथों में मशाल लिए इस बिल का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
पूर्वोत्तर के छात्र संगठनों ने इस बिल के विरोध में मंगलवार को 11 घंटे के बंद का आह्वन किया। इस बंद का कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने समर्थन किया।
क्यों हो रहा है पूर्वोत्तर में सीएबी का विरोध?
नागरिकता संशोधन विधेयक में भले ही इनर लाइन परमिट (आईएलपी) और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के इलाकों को विधेयक में छूट देने की बात कही गई है, लेकिन असली पेंच कटऑफ डेट पर फंसा हुआ है।
1985 के 'असम समझौते' के मुताबिक प्रवासियों को वैधता प्रदान करने की तारीख 25 मार्च 1971 है, लेकिन नागरिकता बिल में इसे 31 दिसंबर 2014 माना गया है। विरोध की वजह नई कटऑफ डेट है। विधेयक में नई कटऑफ डेट की वजह से उन लोगों के लिए भी मार्ग प्रशस्त हो जाएगा जो 31 दिसंबर 2014 तक असम में दाखिल हुए थे। इससे उन लोगों को भी नागरिकता मिल सकेगी, जिनके नाम एनआरसी प्रक्रिया के दौरान बाहर कर दिए गए थ।
साथ ही असम के लोगों को ये भी डर है कि बंगाली बोलने वाले मुस्लिमों और बंगाली बोलने वाले हिंदुओँ की तादाद बढ़ने से असमी भाषी लोग अल्पसंख्य हो जाएंगे।
इसके साथ ही सोशल मीडिया में फैलाए जा रहे कुछ भ्रामक तथ्य भी इस विरोध के लिए जिम्मेदार हैं, जिसेक मुताबिक इस बिल का फायदा उठाकर एक करोड़ से ज्यादा हिंदू प्रवासी भारत आ जाएंगे। हालांकि, इस बिल से केवल उन्हीं लोगों को फायदा होगा जो 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत आए हैं।