छत्रपति संभाजी नगर में चिश्तिया चौक रोड का नाम बदलकर जवाहरलाल दर्डा मार्ग रखा गया
By रुस्तम राणा | Updated: July 7, 2024 18:47 IST2024-07-07T18:35:25+5:302024-07-07T18:47:50+5:30
'लोकमत' के संस्थापक बाबूजी जवाहरलालजी दर्डा की जन्मशती के उपलक्ष्य में छत्रपति संभाजीनगर जिले में चिश्तिया चौक रोड का नाम बदलकर जवाहरलाल दर्डा मार्ग कर दिया गया।

छत्रपति संभाजी नगर में चिश्तिया चौक रोड का नाम बदलकर जवाहरलाल दर्डा मार्ग रखा गया
औरंगाबाद: आज एक भावपूर्ण समारोह में वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व मंत्री और 'लोकमत' के संस्थापक बाबूजी जवाहरलालजी दर्डा की जन्मशती के उपलक्ष्य में छत्रपति संभाजीनगर जिले में चिश्तिया चौक रोड का नाम बदलकर जवाहरलाल दर्डा मार्ग कर दिया गया। इस कार्यक्रम में संरक्षक मंत्री एमपी संदीपन भुमरे, अल्पसंख्यक विकास मंत्री अब्दुल सत्तार, सहकारिता मंत्री अतुल सावे, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री डॉ. सहित गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
इसके अलावा भागवत कराड, सतीश चव्हाण, एमजीएम विश्वविद्यालय के चांसलर अंकुशराव कदम, पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे और इम्तियाज जलील, संभागीय आयुक्त दिलीप गावड़े, नगर निगम प्रशासक श्रीकांत, जिला कलेक्टर दिलीप स्वामी, जिला परिषद के सीईओ विकास मीणा, पूर्व महापौर नंदकुमार घोडेले, पूर्व उप महापौर प्रशांत देसरदा , सामाजिक कार्यकर्ता विनोद पाटिल, ऋषिकेश प्रदीप जयसवाल, लोकमत के कार्यकारी निदेशक करण दर्डा, लोकमत के प्रधान संपादक राजेंद्र दर्डा भी कार्यक्रम के साक्षी बने। ।
महात्मा गांधी से प्रेरित होकर बाबूजी ने 17 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। पहले ही सत्याग्रह में गिरफ्तार कर उन्हें जबलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। युवावस्था में एक खुशहाल जीवन का सपना देखने के बजाय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने की अपनी ‘विशिष्टता’ से उन्होंने बाद के जीवन में कई तूफानों और चुनौतियों का सामना किया। बाबूजी क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से भी प्रभावित थे. उन्होंने यवतमाल में आजाद हिंद सेना की एक शाखा भी स्थापित की।
बाबूजी ने राजनीति में अपनी पहचान बनाई, लेकिन असल में उनकी दिलचस्पी पत्रकारिता में थी! आज बाबूजी का नाम लेते ही ‘लोकमत’ समूह आंखों के सामने खड़ा हो जाता है। बाबूजी ने ‘लोकमत’ से पहले भी पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ प्रयोग किए थे। स्कूल में रहते हुए ही उनकी प्रबल इच्छा थी कि स्वतंत्रता संग्राम की घटनाएं आम लोगों तक पहुंचें। उसी इच्छा के चलते उनके स्कूली जीवन में ही हस्तलिखित ‘सिंहगर्जना’ अखबार का और उनके अंदर के पत्रकार का जन्म हुआ. उस समय तिलक युग समाप्त हो रहा था और गांधी युग का उदय हो रहा था।