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छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले बदले समीकरण, जोगी फैक्टर दिखा रहा है गहरा असर, मिसेज जोगी को लेकर सोनिया राहुल में दो राय

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: November 1, 2018 08:27 IST

सन 2008 के पहले तक रायपुर शहर में केवल 2 सीटें होती थी जो कि परिसीमन में बढ़कर 4 हो गई है। इसीलिए पिछले दो विधानसभा चुनावों से यहां जातीय समीकरण बिठाने की कोशिश होती है।

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अर्चनाअजीत जोगी फैक्टर के कारण छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की दर्जनभर सीटें कई दिनों तक रुकी रही हैं। वह तो अपनी नई पार्टी बना कर भावी मुख्यमंत्री के रूप में चुनावी मैदान में हैं, लेकिन उनकी पत्नी रेणु जोगी की इच्छा कोटा से कांग्रेस की निवर्तमान विधायक होने के नाते इस बार भी हाथ के निशान पर चुनाव लड़ने की बतायी जा रही है।

उनका सम्मान 19 वर्षों तक पार्टी की अध्यक्ष रही सोनिया गांधी भी करती हैं। इसी कारण जोगी परिवार को नापसंद करने वाले वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी भी एक ही झटके में उनकी टिकट नहीं काट पाए। आमतौर पर ब्राह्मण सीट मानी जाने वाली कोटा का उम्मीदवार लटके रहने के कारण सामाजिक संतुलन बिठाने के लिए बिलासपुर सहित कई अन्य सीटों को भी रोक लिया गया था। दूसरी ओर, भाजपा ने अपने सभी उम्मीदवार घोषित कर दिए, लेकिन रायपुर उत्तर की सीट उसके गले की हड्डी बन गई है।

पार्टी ने अब तक एक मंत्री रामशिला साहू सहित कुल 13 विधायकों की टिकट काट दी है, जबकि रायपुर उत्तर के विधायक श्रीचंद सुंदरानी की टिकट लंबित है। पिछली बार भाजपा ने राजधानी की इस सीट से सिंधी समुदाय को टिकट दी थी और अब यह समुदाय हमेशा के लिए यहां की दावेदारी कर रहा है।

पार्टी के अपने सर्वेक्षणों में सुंदरानी के जीत पाने की संभावना बहुत कम बताई गई। इस कारण उनकी टिकट काटने का दबाव बना। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह खुद वहां सिंधी समुदाय के सबसे बड़े धार्मिक नेता से मिले और उन्होंने सुंदरानी के ही नाम का समर्थन किया। इस कारण पार्टी मुश्किल में फंस गई।

अजित जोगी और सिंधि समाज

जोगी कांग्रेस ने इस सीट पर अमर गिडवानी को उतारकर भाजपा के सामने सिंधी समुदाय की नाराजगी मोल लेने का संकट बढ़ा दिया है। वैसे कांग्रेस में भी इसी समुदाय के अजीत कुकरेजा को टिकट देने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने काफी जोर लगाया है। सन 2008 के पहले तक रायपुर शहर में केवल 2 सीटें होती थी जो कि परिसीमन में बढ़कर 4 हो गई है। इसीलिए पिछले दो विधानसभा चुनावों से यहां जातीय समीकरण बिठाने की कोशिश होती है।

वर्ष 2013 में भाजपा ने अग्रवाल समुदाय के बृजमोहन अग्रवाल, जैन समुदाय के राजेश मूणत, सिंधी समुदाय के सुंदरानी और ओबीसी समुदाय के नंदे साहू को टिकट दी थी। दूसरी ओर कांग्रेस ने ब्राह्मण समुदाय के सत्य नारायण शर्मा और विकास उपाध्याय के साथ ही सिख समुदाय के कुलदीप सिंह जुनेजा व कुर्मी समुदाय की डॉक्टर किरणमयी नायक को मैदान में उतारा था।

सिंधी समाज का वर्चस्व

सिंधी समाज की रायपुर और बिलासपुर जैसे शहरों में उनकी अच्छी आबादी है। रायपुर में तो इस समुदाय की लगभग 25 हजार की आबादी बताई जाती है । शुरू से यह समुदाय भाजपा की ओर झुका रहा और जब तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी में प्रमुखता से रहे, तब तक यह लगाव समझ में भी आता था।

भाजपा इस बार मुश्किल में पड़ गई है, क्योंकि इसी सीट के लिए संघ की मदद से सच्चिदानंद उपासने 2008 की हार के बावजूद फिर से टिकट पाने में लगे हुए हैं। हालत यह है कि सिंधी समुदाय को कोई भी नाराज करना नहीं चाहता है। देखना होगा कि यह वोट अंतत: किस तरफ झुकता है?

(अर्चना, लोकमत समाचार के रायपुर ब्यूरो से जुड़ी हैं।)

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