CAA Protest: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, AMU में हिंसा की जांच मानवाधिकार आयोग करेगा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 7, 2020 16:10 IST2020-01-07T16:10:11+5:302020-01-07T16:10:11+5:30
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने छात्रों पर 15 दिसंबर, 2019 को पुलिस लाठी चार्ज का मुद्दा उठाने वाली एक जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की पीठ ने प्रयागराज के मोहम्मद अमन खान द्वारा दायर जनहित याचिका पर यह आदेश दिया।

इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख भी 17 फरवरी तय की है।
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उग्र प्रदर्शन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) तक पहुंचा था। विश्वविद्यालय में हुई हिंसा पर हाईकोर्ट ने सख्त रूप अपनाया। कोर्ट ने कहा कि हिंसा की जांच मानवाधिकार आयोग करेगा।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने छात्रों पर 15 दिसंबर, 2019 को पुलिस लाठी चार्ज का मुद्दा उठाने वाली एक जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की पीठ ने प्रयागराज के मोहम्मद अमन खान द्वारा दायर जनहित याचिका पर यह आदेश दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इसकी जांच सौंपी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविंद माथुर की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की है। कोर्ट ने आयोग को पांच हफ्ते में जांच रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। इसके साथ ही इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख भी 17 फरवरी तय की है।
इस याचिका में कहा गया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ 13 दिसंबर को शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। हालांकि, 15 दिसंबर को ये छात्र मौलाना आजाद पुस्तकालय के आस पास एकत्रित हुए और विश्वविद्यालय गेट की ओर मार्च किया।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि विश्वविद्यालय गेट पर पहुंचने पर वहां तैनात पुलिस ने छात्रों को उकसाना शुरू कर दिया, लेकिन छात्रों ने प्रतिक्रिया नहीं दी। कुछ समय बाद पुलिस ने इन छात्रों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने शुरू कर दिए और उन पर लाठियां बरसाईं जिसमें करीब 100 छात्र घायल हो गए।
याचिका में अदालत की निगरानी में पुलिस कार्रवाई की जांच कराने, पुलिस हिरासत से छात्रों की रिहा कराने और इस हिंसा में घायल सभी का इलाज कराने एवं मुआवजा दिलाने का अनुरोध किया गया है। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने इस मामले में राज्य सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल किया और पुलिस कार्रवाई का बचाव किया।
उन्होंने दलील दी कि विश्वविद्यालय का गेट छात्रों द्वारा तोड़ दिया गया था और विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुरोध पर पुलिस ने हिंसा में लिप्त विद्यार्थियों को काबू में करने के लिए विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश किया और इस कार्रवाई के दौरान कोई अतिरिक्त बल प्रयोग नहीं किया गया।