अरुण जेटली के जगह वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल रहे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को पहली बार संसद में देश का बज़ट पेश किया तो उनका उत्साह देखने लायक था।
गोयल भले ही अंतरिम बज़ट पेश कर रहे थे लेकिन उनका जोश-खरोश ऐसा था जैसे वो लोक सभा चुनाव 2019 के लिए नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का घोषणा-पत्र पढ़ रहे हों।
गोयल ने का जोश पर्यवेक्षकों का अंदाजा भर नहीं है। उनमें कितना जोश है यह जाहिर करने के लिए गोयल ने संसद में सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी विक्की कौशल की फिर उरी का जिक्र किया और कहा कि उन्हें फिल्म देखकर मज़ा आ गया। इस फ़िल्म का एक डॉयलॉग "हाउज़ द जोश" सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है।
ये पंक्तियां मशहूर हिन्दी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता "मुझे कदम कदम पर" का अंश हैं। गोयल संसद में ग़लती से मुक्तिबोध को मराठी कवि बता बैठे। मुक्तिबोध के पूर्वज भले ही महाराष्ट्र के रहे हों लेकिन वो मूलतः मध्य प्रदेश के रहने वाले थे। मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को मध्य प्रदेश में हुआ था। मुक्तिबोध को हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों, लेखकों और आलोचकों में शुमार किया जाता है। मुक्तिबोध आजीवन मार्क्सवाद से जुड़े रहे। मुक्तिबोध की मृत्यु 11 सितम्बर 1964 को हुई।
नीचे पढ़ें वो मुक्तिबोध की वो कविता जिसकी दो पंक्तियां पीयूष गोयल ने संसद में उद्धृत कीं-
मुझे कदम-कदम परचौराहे मिलते हैंबाँहे फैलाए !!
एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतींव मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँबहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपनेसब सच्चे लगते हैंअजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती हैमैं कुछ गहरे मे उतरना चाहता हूँजाने क्या मिल जाए !!
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर मेंचमकता हीरा हैहर-एक छाती में आत्मा अधीरा हैप्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा हैमुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी मेंमहाकाव्य-पीड़ा हैपलभर मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँप्रत्येक उर में से तिर आना चाहता हूँइस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँअजीब है जिंदगी !!बेवकूफ बनने की खतिर हीसब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँऔर यह देख-देख बड़ा मजा आता हैकि मैं ठगा जाता हूँहृदय में मेरे ही प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा हैहँस-हँसकर अश्रुपूर्ण,मत्त हुआ जाता हैकि जगत्..... स्वायत्त हुआ जाता है।
कहानियाँ लेकर औरमुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलतेजहाँ जरा खड़े होकरबातें कुछ करता हूँ......उपन्यास मिल जाते।
दुख की कथाएँ, तरह तरह की शिकायतेंअहंकार विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान,जमाने के जानदार सूरे व आयतेंसुनने को मिलती हैं !
कविताएँ मुसकरा लाग- डाँट करती हैंप्यार बात करती हैं।मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियांश्रद्धाएँ चढ़ी हैं !!
घबराए प्रतीक और मुसकाते रूप- चित्रलेकर मैं घर पर जब लौटता.....उपमाएँ द्वार पर आते ही कहती हैं किसौ बरस और तुम्हेंजीना ही चाहिए।
घर पर भी,पग-पग पर चौराहे मिलते हैंबाँहे फैलाए रोज मिलती है सौ राहेंशाखाएँ-प्रशाखाएँ निकलती रहती हैंनव-नवीन रूप-दृश्यवाले सौ-सौ विषयरोज-रोज मिलते हैं....और,मैं सोच रहा किजीवन में आज के लेखक की कठिनाई यह नहीं किकमी है विषयों कीवरन् यह कि आधिक्य उनका हीउसको सताता हैऔर वह ठीक चुनाव कर नहीं पाता है !!