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Brij Bihari Prasad murder 1998: 26 साल बाद न्याय?, सूरजभान सिंह बरी?, ​​मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास की सजा, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 3, 2024 13:17 IST

Brij Bihari Prasad murder 1998: दोषी मंटू तिवारी और पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला को 15 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा।

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ठळक मुद्देBrij Bihari Prasad murder 1998: संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।Brij Bihari Prasad murder 1998: आरोपियों को बरी करने के उच्च न्यायालय के 2014 के आदेश को चुनौती दी थी।Brij Bihari Prasad murder 1998: भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत आरोप साबित हुए हैं।

Brij Bihari Prasad murder 1998: उच्चतम न्यायालय बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की 1998 में हुई हत्या के मामले में पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला समेत दो लोगों को बृहस्पतिवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने सभी आरोपियों को बरी करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया और दोषी मंटू तिवारी और पूर्व विधायक शुक्ला को 15 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह समेत छह अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए उन्हें बरी करने के उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ ​​मुन्ना शुक्ला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत आरोप साबित हुए हैं।

साथ ही पीठ ने उन्हें 15 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा। उच्च न्यायालय ने 24 जुलाई 2014 को कहा था कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों पर गौर करने के बाद सूरजभान सिंह उर्फ ​​सूरज सिंह, मुकेश सिंह, लल्लन सिंह, मंटू तिवारी, कैप्टन सुनील सिंह, राम निरंजन चौधरी, शशि कुमार राय, मुन्ना शुक्ला और राजन तिवारी संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।

इसने अधीनस्थ अदालत के 12 अगस्त 2009 के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया था और सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद एवं बृज बिहार प्रसाद की पत्नी रमा देवी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी करने के उच्च न्यायालय के 2014 के आदेश को चुनौती दी थी।

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