नई दिल्लीः निर्वाचन आयोग ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि चुनावी राज्य बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के तहत 7.24 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 99.5 प्रतिशत ने पात्रता दस्तावेज जमा कराए हैं। आयोग ने दावा किया कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के अलावा किसी अन्य राजनीतिक दल ने मतदाताओं को निर्धारित प्रारूप में दावे और आपत्तियां दाखिल करने में सहायता उपलब्ध नहीं कराई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ को चुनाव निकाय ने सूचित किया कि मतदाताओं ने अधिक ‘‘सतर्कता और सक्रियता’’ दिखाई है, क्योंकि उन्होंने मसौदा सूची में नाम शामिल करने के लिए 33,326 फॉर्म और नाम हटाने के लिए 2,07,565 फॉर्म जमा किए हैं।
आयोग ने बताया कि इसके अलावा पहली बार मतदाता बनने के लिए 15 लाख से अधिक आवेदन आए हैं। निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने एक नोट में कहा, ‘‘रिकॉर्ड के अनुसार, बिहार राज्य की मसौदा मतदाता सूची में शामिल लगभग 99.5 प्रतिशत मतदाताओं (7.24 करोड़ में से) ने एसआईआर प्रक्रिया से संबंधित अपने पात्रता दस्तावेज पहले ही जमा कर दिए हैं।’’
उन्होंने कहा कि दस्तावेज सत्यापन कार्य 24 जून के एसआईआर आदेश में दिए गए कार्यक्रम के अनुरूप 25 सितंबर तक पूरा कर लिया जाएगा। निर्वाचन आयोग ने कहा, ‘‘विशेष रूप से, यह प्रस्तुत किया जाता है कि भाकपा-माले और राजद के अलावा, अन्य किसी भी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल ने अपने पदाधिकारियों या वैध रूप से नियुक्त बीएलए के माध्यम से, लगभग 65 लाख मतदाताओं में से किसी भी मतदाता को, जिनके नाम मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं, घोषणा के साथ फॉर्म 6 जमा करने में सहायता नहीं की है।
अन्य किसी भी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल ने निर्धारित प्रारूप में दावे या आपत्तियां दाखिल करने की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है।’’ निर्वाचन आयोग ने 31 अगस्त के अपने बुलेटिन का हवाला देते हुए कहा कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों से प्राप्त अधिकतर फॉर्म मसौदा मतदाता सूची में शामिल नामों को बाहर करने के लिए थे।
इसने कहा, ‘‘राजनीतिक दलों से मसौदा सूची में प्राप्त कुल 128 फॉर्म में से 103 नाम हटाने (फॉर्म 7) के लिए हैं और केवल 25 नाम शामिल करने (फॉर्म 6) के लिए हैं। यह संख्या बिहार के कुल मतदाताओं की संख्या का एक छोटा सा अंश है।’’ आयोग ने कहा, ‘‘हालांकि व्यक्तिगत स्तर पर मतदाताओं ने अधिक सतर्कता और सक्रियता दिखाई है, फिर भी उन्होंने मसौदा सूची में नाम शामिल करने के लिए केवल 33,326 फॉर्म (फॉर्म 6) और नाम हटाने के लिए 2,07,565 फॉर्म (फॉर्म 7) जमा किए हैं।’’
चुनाव निकाय ने 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के नए पात्र नागरिकों के बारे में कहा कि मतदाता सूची में पहली बार शामिल होने के लिए कुल 15,32,438 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इसने कहा, ‘‘ये आवेदन अलग प्रकृति के हैं क्योंकि ये नए नामांकन से संबंधित हैं, न कि मौजूदा मतदाताओं से संबंधित दावों या आपत्तियों से।’’
निर्वाचन आयोग ने कहा कि मृत्यु, स्थायी स्थानांतरण या दोहराव के कारण एक अगस्त को प्रकाशित मसौदा सूची से बाहर रखे गए लगभग 65 लाख मतदाताओं के संबंध में केवल 33,351 दावे प्राप्त हुए हैं। इसने कहा, ‘‘इस न्यायालय के 22 अगस्त, 2025 के आदेश के बाद 30 अगस्त, 2025 तक, नाम शामिल करने के लिए केवल 22,723 दावे दायर किए गए हैं।
और नाम हटाने के लिए 1,34,738 आपत्तियां दायर की गई हैं।’’ दावे और आपत्तियां दाखिल करने की समयसीमा बढ़ाने के राजद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अनुरोध का विरोध करते हुए निर्वाचन आयोग ने कहा कि इसे एक सितंबर से आगे बढ़ाने से मतदाता सूची को अंतिम रूप देने का पूरा कार्यक्रम बाधित होगा।
इसने कहा, ‘‘दावों और आपत्तियों पर विचार करने के लिए एक सितंबर, 2025 से 25 सितंबर, 2025 के बीच की अवधि तय की गई है और इसमें संदिग्ध मामलों में नोटिस जारी करने और जवाब देने पर भी विचार किया जाएगा। इस प्रकार, समयसीमा में किसी भी तरह का विस्तार मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में व्यवधान पैदा करेगा।’’
हालांकि, निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि दावे या आपत्तियां या सुधार एक सितंबर की समयसीमा के बाद भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इसने कहा, ‘‘एक सितंबर, 2025 के बाद दावों, आपत्तियों या सुधारों के लिए प्रस्तुत आवेदनों पर मतदाता सूची को अंतिम रूप दिए जाने के बाद विचार किया जाएगा।
दावों और आपत्तियों पर विचार करने की प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तिथि तक जारी रहती है, और सभी समावेशन एवं बहिष्करण अंतिम सूची में एकीकृत किए जाते हैं।’’ पीठ ने राजनीतिक दलों से निर्वाचन आयोग के नोट पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने को कहा और मामले की सुनवाई आठ सितंबर के लिए स्थगित कर दी।
बिहार में वर्ष 2003 के बाद पहली बार हुए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। एसआईआर के निष्कर्षों के अनुसार, बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या, पुनरीक्षण से पहले 7.9 करोड़ थी, जो पुनरीक्षण के बाद घटकर 7.24 करोड़ रह गई है।