नई दिल्लीः सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी राज्य बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के तहत हटाए गए मतदाताओं के नामों में सुधार के लिए राजनीतिक दलों द्वारा आगे न आने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के इस कथन पर संज्ञान लिया है कि बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान में 85,000 नए मतदाता सामने आए हैं और राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय एजेंटों द्वारा केवल दो आपत्तियाँ दर्ज की गई हैं। निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि बिहार में एसआईआर में 85 हजार नए मतदाताओं के नाम सामने आए।
राजनीतिक दलों के बूथ स्तरीय एजेंटों ने केवल दो आपत्तियां दर्ज कराईं। हम बिहार में एसआईआर के दौरान मतदाता सूची से हटाए गए उन लोगों को ऑनलाइन दावा दर्ज कराने की अनुमति देंगे, जिनके पास आधार कार्ड या कोई अन्य स्वीकार्य दस्तावेज है। एसआईआर की पूरी प्रक्रिया मतदाताओं के अनुकूल होनी चाहिए, राजनीतिक दल आगे आएं।
निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि विश्वास बनाए रखें। इस मामले की सुनवाई 15 सितंबर को होगी। हम दिखाएंगे कि किसी भी मतदाता को बाहर नहीं रखा गया है। उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को बिहार में मतदाता सूची से बाहर हुए मतदाताओं की सहायता करने और उनके दावे दर्ज कराने के लिए कहा है।
उच्चतम न्यायालय ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को अदालती कार्यवाही में राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाने और दावों के बारे में स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों के बूथ स्तरीय एजेंटों की ओर से प्रस्तुत दावों के बदले रसीद प्रदान करने का निर्देश दिया। सूची से बाहर हुए मतदाताओं को भौतिक और ऑनलाइन आवेदन करने की अनुमति दी।
उच्चतम न्यायालय ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान बाहर हुए व्यक्तियों को ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरीकों से अपने दावे दर्ज कराने की अनुमति देने का शुक्रवार को निर्देश दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने आधार कार्ड संख्या और एसआईआर में स्वीकार्य 11 दस्तावेजों में से किसी एक के साथ दावा प्रपत्र प्रस्तुत करने की अनुमति दी। शीर्ष अदालत ने 65 लाख व्यक्तियों के मतदाता सूची से बाहर होने से संबंधित मामले में आपत्तियां दर्ज कराने के लिए राजनीतिक दलों के आगे नहीं आने पर आश्चर्य व्यक्त किया।
न्यायालय ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को निर्देश दिया कि वह अदालती कार्यवाही में राजनीतिक दलों को भी पक्षकार बनाएं। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ सितंबर की तारीख तय करते हुए कहा, "सभी राजनीतिक दल अगली सुनवाई तक उस दावा प्रपत्र के बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेंगे, जिसे दाखिल करने में उन्होंने मतदाता सूची से बाहर हुए व्यक्तियों की मदद की थी।"
पीठ ने चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मतदाता सूची से बाहर हुए व्यक्तियों के दावा प्रपत्र भौतिक रूप से जमा कराने वाले राजनीतिक दलों के बूथ स्तर के एजेंटों को पावती रसीद उपलब्ध कराएं। चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने न्यायालय से आग्रह किया कि वह चुनाव आयोग को यह दिखाने के लिए 15 दिन का समय दे कि कोई भी नाम सूची से बाहर नहीं किया गया है। द्विवेदी ने कहा, "राजनीतिक दल शोर मचा रहे हैं। हालात खराब नहीं हैं। हम पर विश्वास रखें और हमें कुछ और समय दें। हम आपको दिखा देंगे कि कोई भी छूटा नहीं है।"
आयोग ने पीठ को बताया कि मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं किए गए लगभग 85,000 मतदाताओं ने अपने दावापत्र प्रस्तुत किए हैं और राज्य में एसआईआर के तहत दो लाख से अधिक नए व्यक्ति मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए आगे आए हैं।
शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण 19 अगस्त तक प्रकाशित करे। पीठ ने कहा था कि निर्वाचन आयोग को अपने ख़िलाफ़ "गढ़े जा रहे विमर्श" को खत्म करना चाहिए।
पीठ ने यह आदेश भी दिया था कि विवरण में मौजूदा एसआईआर प्रक्रिया के दौरान सूची से लोगों के नाम हटाने के कारण भी शामिल होने चाहिए। पीठ ने कहा था, "पारदर्शिता से मतदाताओं का विश्वास बढ़ेगा।" बिहार में 2003 में पहली बार मतदाता सूची का पुनरीक्षण हुआ था।
हालिया एसआईआर ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। एसआईआर के निष्कर्षों के अनुसार, बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या घटकर 7.24 करोड़ रह गई है जो इस प्रक्रिया से पहले 7.9 करोड़ थी।