पटनाः बिहार में भाजपा का दबदबा बढ़ने से अब अपनी हिस्सेदारी के लिए तरह-तरह के नखरे दिखाने वाले एनडीए के अन्य घटक दल भी खामोश हो गए हैं। सीटें कम मिलने पर केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे की धमकी देने वाले हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संस्थापक जीतन राम मांझी के साथ लोजपा(रा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान भी फिलवक्त कुछ नहीं बोल रहे हैं। वहीं, रालोमो के नेता उपेंद्र कुशवाहा भी मुंह नहीं खोल रहे हैं। अगर इनमें कोई कुछ बोलता है तो उसकी बात एनडीए की एकजुटता तक ही सीमित रहती है। इससे यह पता चल रहा है कि भाजपा एनडीए के घटक दलों पर हावी हो चुकी है।
इस बीच जदयू में भी इस बात की चिंता सताने लगी है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अगर भाजपा ने पहले जैसी तवज्जो नहीं दी तो पार्टी का क्या होगा? इसी क्रम में नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की होली के बाद राजनीति में एंट्री की बात कही जा रही है। चर्चा है कि नीतीश कुमार सबसे पहले उन्हें जदयू की कमान सौंपेंगे।
यानी निशांत कुमार को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। वहीं, निशांत कुमार के हरनौत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की भी चर्चा है। संभव है कि जल्द ही इस बारे में कोई जानकारी सामने आ जाए। इस बीच सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या जदयू जिस तरह नीतीश कुमार के नेतृत्व में स्थापित हुआ है, वैसा नया नेतृत्व कर पाएगा?
कारण कि जदयू के भविष्य को लेकर कई बार अटकलों का बाजार गर्म होता रहा है। पिछली बार जब नीतीश कुमार ने राजद के साथ जाकर महागठबंधन की सरकार बनाई थी तो यह चर्चा होने लगी थी कि अब जदयू का राजद में जल्द विलय हो जाएगा। हालांकि कालांतर में नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मार कर एनडीए में आ गए हैं।
अब तो नीतीश कुमार यह कहते चल रहे हैं कि वह अब राजद के साथ जाने की गलती वे दोबारा नहीं करेंगे। लेकिन लोगों को उनकी बातों पर विश्वास नहीं बन पा रहा है। कयास यह भी लगाए जाते रहते हैं कि सीटों के बंटवारे में कही खटपट होने पर नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं। हालांकि इसकी संभावना अब कम ही दिखाई दे रही है। लेकिन नीतीश कुमार के पलटी मार सियासत के कारण कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।