बिहार में 'लाल बालू' की 'काली कमाई' में माफियाओं के साथ नक्सलियों ने भी लगाया जोर, करोड़ों-अरबों के हो रहे वारे-न्यारे 

By एस पी सिन्हा | Updated: July 18, 2021 16:16 IST2021-07-18T16:01:30+5:302021-07-18T16:16:28+5:30

खुफिया एजेंसियों को पहले से यह शक था कि कहीं न कहीं नक्सलियों का हांथ भी बालू के खेल में लग चुका है, पर अब यह यकीन में बदल चुका है। खुफिया एजेंसियों को कई प्रमाण हाथ लग चुके हैं।

Bihar Naxalites also joined in illegal sand mining, doing things worth crores | बिहार में 'लाल बालू' की 'काली कमाई' में माफियाओं के साथ नक्सलियों ने भी लगाया जोर, करोड़ों-अरबों के हो रहे वारे-न्यारे 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlightsखुफिया एजेंसियों के हाथ ऐसे सबूत लगे हैं जिनसे साबित होता है कि नक्सली बालू के खेल में लगे हैं। बेखौफ बालू माफियाओं के साथ अब नसक्ली भी रोजाना सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। बालू की अच्छी क्वालिटी की वजह से इसकी मांग बिहार के बाहर उत्तर प्रदेश तक होती है। 

पटनाःबिहार और झारखंड का जब बंटवारा हुआ था तो कहा जाता था कि सारे खनिज और कल-कारखाने झारखंड में चले गए। बिहार में केवल बालू और आलू बचे हैं। अब उसमें भी लूट है और माफिया दोनों हाथों से धन बटोर रहे हैं। पुलिस प्रशासन की मिलीभगत से अवैध खनन कर सरकारी खजाने में सेंध लगा रहे हैं और कालाबाजारी से भी मोटी कमाई कर रहे हैं। अब इसमें नक्सलियों के भी शामिल हो जाने की खबर है। इसका कारण है सोन नदी, जिसके बालू को पीला सोना भी कहते हैं।
 
बताया जाता है कि बालू की अच्छी क्वालिटी की वजह से इसकी मांग बिहार के बाहर उत्तर प्रदेश तक होती है। आम दिनों में भी सोन के बालू की कीमत अन्य नदियों से निकलनेवाले बालू से ज्यादा होती है। जब-जब बालू का संकट उत्पन्न होता है, इसका भाव आसमान छूने लगता है। अब इसी बालू पर नक्सलियों की नजर पड़ गई है। बेखौफ बालू माफियाओं के साथ अब नसक्ली भी रोजाना सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। हाल यह है कि ’लाल बालू’ की ’काली’ कमाई का ’खेल’ पूरे बिहार में चल रहा है। इस ’खेल’ में माफियाओं और नक्सलियों के साथ बडे़ लोगों के भी शामिल होने की चर्चा है, जिनके बारे में कोई कल्पना नहीं कर सकता। 

वैसे बालू की तस्करी के लिए औरंगाबाद जिला सबसे ज्यादा बदनाम है। यहां से बालू ज्यादातर यूपी के वाराणसी, गाजीपुर, फैजाबाद तथा अन्य निकटवर्ती जिले में जाता है। जिले में तीन नदियां सोन, पुनपुन और बटाने से बालू निकलता है। सोन में ज्यादा खनन होता है। इसके बाद भोजपुर में सबसे ज्यादा लूट है। सोन के बालू को उत्कृष्ट माना जाता है। इसीलिए यहां माफिया का बोलबाला है।

यहां बता दें कि रोहतास, भोजपुर, औरंगाबाद, अरवल और पटना जिले से गुजरनेवाली सोन नदी का अधिकांश इलाका नक्सल प्रभावित रहा है। पैठ वाले इलाकों की भौगोलिक स्थिति की वजह से नक्सली अफीम की खेती को बढ़ावा देते रहे हैं। उनकी कमाई का दूसरा स्रोत निर्माण एजेंसियों से लेवी वसूलना है। इन दो के अलावा अब नक्सलियों ने बालू के धंधे में पैर जमाना शुरू कर दिया है। खासकर सोन नदी के बालू पर उनकी नजर है। सोन नदी बिहार में जिन इलाकों से गुजरती है, उसका बड़ा हिस्सा नक्सल प्रभावित है।  इसका फायदा उठाते हुए नक्सली बालू के कारोबार में उतर चुके हैं। 

सोन नदी में अवैध खनन करनेवाले यूपी से नावों से आए स्थानीय बदमाशों द्वारा लेवी भी वसूली जाती है। वहीं अवैध खनन करने वाली हर नाव पर असलहे के साथ एक व्यक्ति मौजूद होता है, जो हमेशा गोली चलाने के लिए तैयार रहता है। सरकार की ओर से जारी आदेश के अनुसार बालू की खनन और ब्रिकी बंद है, लेकिन यह तो सिर्फ सरकारी चिट्ठी में है। अब स्थानीय थाने की पुलिस ’बालू राजा’ बन गई है। बालू ट्रक को स्कॉट कर उसे अपने मुकाम तक पहुंचाने का ठेका लेती है, बस उसके लिए आपको बोली लगानी होगी। जितना ज्यादा बोली, उतनी आपकी ’सेवा’।

जानकारों के अनुसार खुफिया एजेंसियों को पहले से यह शक था कि कहीं न कहीं नक्सलियों का हांथ भी बालू के खेल में लग चुका है, पर अब यह यकीन में बदल चुका है। खुफिया एजेंसियों को कई प्रमाण हाथ लग चुके हैं। वहीं, पटना से लेकर औरंगाबाद और भोजपुर से लेकर छपरा तक पुलिस की मिलीभगत से बालू की कमाई पर महल खडा कर रहे हैं। सोन नदी में बालू की लूट मची है। लाखों-करोडों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। निर्माण कार्य में सोन के बालू की सबसे ज्यादा मांग है। सोन नदी का पाट भी काफी चौडा है और यहां बडे़ पैमाने पर बालू का खनन होता है। सूत्र बताते हैं खनन के वैध तरीके से जितनी कमाई होती है उतनी ही अवैध खनन से भी होती है। इसमें पर्दे के पीछे माफिया होते हैं, जबकि सामने स्थानीय लोगों को रखा जाता है। अब बालू के इसी अवैध खनन में नक्सली भी उतर चुके हैं। इसके पीछे उनकी मंशा पैसा कमाने की है। यदि नक्सली इसमें कामयाब होते हैं तो फिर उनके पास बडे़ आराम से करोड़ों रुपए पहुंच जाएंगे। ऐसे में बालू के अवैध धंधे में नक्सलियों की इंट्री को लेकर खुफिया एजेंसियों ने सरकार को सचेत कर दिया है।

हालांकि बालू के खेल का सियासी एंगल भी है। पांच साल पहले तक बिहार में बालू के सबसे बडे़ कारोबारी कहे जानेवाले सुभाष यादव का लालू परिवार से नजदीकी रिश्ता है। वैसे पांच साल पहले ही वह ब्रॉडसन कंपनी से अलग होने की बात बताते रहते हैं। सुभाष यादव कहते हैं कि उनका ब्रॉडसन कंपनी से कोई रिश्ता नहीं है। उन्होंने बताया कि ब्रॉडसन को डॉ. अशोक कुमार, जगनारायण सिंह, मिथिलेश कुमार सिंह, अशोक जिंदल और पुंज कुमार सिंह चलाते हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो ब्रॉडसन कंपनी को पर्दे के पीछे से सुभाष यादव ही चलाते हैं। झारखंड के चतरा से राजद की टिकट पर वह लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। यही नहीं उन्होंने कोडरमा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भी दाखिल किया था, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी के कारण उनका नामांकन रद्द हो गया था। इस तरह से बिहार में माफियाओं और अब नक्सलियों के बालू के खेल में शामिल हो जाने से सरकार को करोड़ों-अरबों का नुकसान हो रहा है।

 

Web Title: Bihar Naxalites also joined in illegal sand mining, doing things worth crores

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