पटनाः नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड बनाया है वह भविष्य में शायद ही कोई तोड़ सके। दरअसल, इस विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने 2010 वाला कारनामा दोहरा दिया। इस चुनाव के बाद पूरे देश में नीतीश कुमार की चर्चा हो रही है। बता दें कि बिहार की सियासत में नीतीश कुमार पिछले 20 वर्षों से जमे हुए हैं। उन्हें जब भी कमजोर समझा गया, वह और दोगुनी ताकत के साथ सामने आए। एनडीए ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री की उम्र और सेहत को लेकर काफी बातें हो रही थीं।
महागठबंधन के साथ-साथ एनडीए के नेता भी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार का साथ छोड़ते हुए दिखाई दे रहे थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी उन नेताओं में थे, जो एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरे पर नीतीश कुमार का नाम स्पष्ट नहीं कर रहे थे। अमित शाह के गोलमोल जवाब देकर संशय की स्थिति उत्पन्न कर देते थे।
जब मामला ज्यादा तूल पकड़ने लगा तो पीएम मोदी को हस्तक्षेप करना पड़ा और पीएम मोदी की ओर से नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लगाई गई। अंततः एनडीए के सभी घटक दलों ने नीतीश कुमार के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। इस विधानसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 243 सीटों में से 202 पर जीत हासिल की, वहीं महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया।
5 सीटें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को मिलीं तो एक सीट पर मायावती की पार्टी बसपा के नाम रही। इस जीत ने साफ कर दिया है अनुभव, रणनीति और भरोसा। यह तीनों जब एक ही नेता में मिलते हैं तो नतीजे इतिहास में दर्ज होते हैं। उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार ने पहली बार 2000 में शपथ ली थी। उस वक्त, वे समता पार्टी का हिस्सा थे।
उनका कार्यकाल केवल सात दिनों तक चला था क्योंकि सरकार सत्ता में बने रहने के लिए पर्याप्त चुनावी संख्याबल नहीं जुटा पाई थी। 2005 के नवंबर में हुए चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने जदयू की स्थापना कर ली थी और भाजपा के साथ मिलकर चुनावी महासंग्राम में कूदे। इस बार जनता ने उनके गठबंधन पर भरोसा जताया और नीतीश कुमार को पहली बार पूरे 5 साल तक सरकार चलाने का मौका मिला।
नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही बिहार की कानून-व्यवस्था को सुधारने का काम किया। जिसके चलते उनकी छवि 'सुशासन बाबू' की बनी। 2010 में जनता ने उन्हें और अधिक मजबूती के साथ वापस सत्ता में बिठाया। इस चुनाव में राजद सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई थी। साल 2013 में भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया,
जिससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया और एनडीए सरकार गिर गई, लेकिन महागठबंधन के सहयोग से नीतीश कुमार सत्ता में काबिज रहे। जदयू ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा और बड़ा ही शर्मनाक प्रदर्शन किया। इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को कुर्सी सौंप दी।
हालांकि, एक साल बाद ही सत्ता की बागडोर वापस अपने हाथों में संभाल ली और 2015 का विधानसभा चुनाव महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ा। नीतीश कुमार के साथ मिलने से राजद पुनर्जीविक हुई और लालू यादव के दोनों बेटे (तेज प्रताप और तेजस्वी यादव) की सियासत में एंट्री हुई।
2017 में नीतीश कुमार को अपनी भूल का एहसास हो गया और उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए में वापसी कर ली। हालांकि, तब तक तेजस्वी यादव ने राजनीति के काफी दांवपेंच सीख लिए थे। लिहाजा, 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई और सिर्फ कुछ सीटों से ही एनडीए सरकार बची।
74 सीटें होने के कारण सत्ता में भाजपा की दखलअंदाजी ज्यादा हो गई, इससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने फिर से एनडीए छोड़ दिया और महागठबंधन के साथ जा मिले। यह सरकार भी मुश्किल से 17 महीने चल सकी और नीतीश कुमार ने फिर से एनडीए में वापसी कर ली।
इस बार नीतीश कुमार ने हर मंच से अपनी गलती स्वीकार की और फिर कभी राजद के साथ नहीं जाने का वचन दिया। इसका नतीजा यह रहा कि लोकसभा और फिर विधानसभा में एनडीए को प्रचंड जीत हासिल हुई। अब एकबार फिर से नीतीश कुमार सत्ता में बने रहने का रिकॉर्ड बना दिया है।
नीतीश कुमार ने रच दिया इतिहास, देश के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्रियों में हुए शामिल
बिहार में 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ नीतीश कुमार ने साबित किया है कि वे सिर्फ राजनेता नहीं, बल्कि बिहार की आधुनिक राजनीतिक दिशा के प्रमुख निर्माता हैं, जिनकी भूमिका आने वाले वर्षों में भी निर्णायक रहेगी। इस तरह राज्य की राजनीति में सुशासन और स्थिर नेतृत्व का चेहरा माने जाने वाले नीतीश कुमार ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है।
यह उपलब्धि उन्हें देश के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्रियों में शामिल करती है। उनका राजनीतिक सफर न केवल अनुभव और परिपक्वता का प्रतीक है, बल्कि बिहार के सामाजिक और प्रशासनिक ढांचे में गहरे परिवर्तन का दास्तावेज भी है।
1951 में पटना जिले के बख्तियारपुर में जन्मे नीतीश कुमार ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब एनआईटी पटना) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के बाद उनका रुझान राजनीति की ओर बढ़ा और 1970 के दशक में वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ गए।
इस आंदोलन ने उनके भीतर सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना को मजबूत आधार दिया। 1985 में वे पहली बार सांसद बने और इसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। नीतीश ने केंद्र में रेल मंत्री, कृषि मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री जैसी अहम जिम्मेदारियां संभालीं थी।
रेल मंत्रालय के कार्यकाल में उन्होंने यात्री सुविधाओं में सुधार और ट्रेन संचालन में नई पारदर्शिता लाने के लिए याद किया जाता है। किंतु उनका सबसे बड़ा प्रभाव बिहार की राजनीति में दिखाई देता है। 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने राज्य में कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली और शिक्षा को सुधारने का व्यापक अभियान चलाया। उनके फैसलों ने बिहार की छवि बदलने में अहम भूमिका निभाई।
महिला सशक्तिकरण नीतीश की नीतियों की सबसे बड़ी पहचान बनी, खासकर पंचायतों में 50 फीसदी आरक्षण और ‘कन्या उत्थान योजना’ के जरिए। सात निश्चय जैसी योजनाओं ने ग्रामीण विकास को नई दिशा दी। शराबबंदी, हालांकि विवादों में रही, लेकिन इसे उन्होंने सामाजिक सुधार का हिस्सा कहा। गठबंधन राजनीति को समझने और साधने की कला नीतीश की सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने समय-समय पर राजनीतिक समीकरण बदले, पर हर बार शासन में बनाए रहे, यह उनकी स्वीकार्यता और रणनीतिक कौशल का प्रमाण है।