पटना: मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार के सियासी गलियारों में आयोजित किए जाने वाले भोज पर सभी की निगाहें टिकी होती हैं। उसमें भी राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के आवास पर आयोजित होने वाली दही-चूड़ा का भोज पर जमकर सियासत होती रही है। इसी कड़ी में 14 जनवरी को लालू यादव के आवास पर मकर संक्रांति का भोज आयोजित किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसमें सिर्फ पार्टी के बड़े नेताओं को आमंत्रित किया गया है।
चूड़ा-दही भोज के लिए 10 सर्कुलर राबड़ी आवास पर तैयारी भी लगातार जारी है। भोज के लिए आवश्यक सामान लाया जा रहा है। मकर संक्रांति के दिन राबड़ी आवास पर भोज का आयोजन किया जाएगा। बता दें कि बिहार में दही-चूड़ा भोज की शुरुआत लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 1994-95 में की थी। तब वे बिहार के मुख्यमंत्री थे। लालू यादव ने आम लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए दही-चूड़ा भोज का आयोजन शुरू किया था। इसकी खूब चर्चा हुई।
बिहार के हर हिस्से से हजारों लोग लालू यादव के भोज में शामिल होने आते रहे। यहां तक कि इस दौरान कई प्रकार के सियासी समीकरण भी बने। वैसे नेता जिन्हें लालू अपने साथ जोड़ना चाहते उन्हें इस भोज के बहाने जरुर बुलाया जाता। धीरे धीरे दही-चूड़ा भोज राजद की परंपरा बन गई। यहां तक कि चारा घोटाला में लालू यादव के जेल जाने के बाद भी राजद ने यह परंपरा कायम रखी।
वहीं, वर्ष 2016 में मकर संक्रांति पर जब लालू यादव ने दही-चूड़ा भोज दिया गया था तो सियासी तौर पर उसकी जमकर चर्चा हुई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर वर्ष 2015 में लालू यादव की पार्टी ने बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ा और गठबंधन ने बहुमत से साझा सरकार बनाई। लालू यादव और राबड़ी देवी के बाद उनके दोनों बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप यादव की उसी दौरान सियासी एंट्री हुई।
वहीं 2017 में राबड़ी आवास पर हुए दही-चूड़ा भोज में लालू यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के माथे पर दही का टीका लगाया था। उस वक्त वह तस्वीर काफी चर्चा में आई थी। हालांकि वर्ष 2021 में 26 साल के बाद लालू परिवार के यहां दही-चूड़ा खिलाने की परम्परा तब टूटी जब देश में कोरोना महामारी आया।
वहीं 2023 में एक बार फिर से तेजस्वी यादव ने दही-चूड़ा भोज की तैयारी की। लेकिन, राजद के वरिष्ठ नेता शरद यादव के निधन के बाद भोज को अंतिम समय में स्थगित करना पड़ा। जिसके बाद 2024 में एक बार फिर लालू यादव ने भोज का आयोजन किया। इसके बाद बिहार की सियासत बदल गई और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू यादव का साथ छोड़ एनडीए के साथ हो गए।
ऐसे में इस बार के भोज पर भी सभी की निगाहें टिकी हुई हैं, खासकर इस बात के लिए की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसमें शिरकत करते हैं या नहीं? अगर नीतीश कुमार जाते हैं तो उसके सियासी मायने निकाले जाएंगे और अगर नहीं जाते हैं तो स्थिति सामान्य रहने की बात सामने आएगी।