पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे जिस प्रकार से आए हैं, उससे अब एक बात साफ हो गई है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पलटी नहीं मार पायेंगे। दरअसल, पिछले कार्यकाल में नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ अपनी सरकार बनाई थी, लेकिन 2 साल पूरा होते होते वे महागठबंधन के साथ चले गए थे। उसके ठीक डेढ़ साल बाद वे फिर से एनडीए के साथ आ गए थे और एनडीए में रहकर ही चुनाव मैदान में कूदे थे। अब बिहार का जनादेश इस तरह से आया है कि नीतीश कुमार चाहकर भी महागठबंधन के साथ नहीं जा सकेंगे।
इसका मतलब यह हुआ कि अब नीतीश कुमार पूरे 5 साल एनडीए के साथ रहकर काम करेंगे। विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उसे 89 सीटें मिली हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जदयू के खाते में 85 सीटें गई हैं। वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के खाते में 19 तो हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को 5 और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 4 सीटें हासिल हुई हैं।
कुल मिलाकर एनडीए को 202 सीटें मिली हैं। अब महागठबंधन की स्थिति देखें तो सबसे ज्यादा सीटें तेजस्वी यादव की पार्टी राजद को मिली हैं। राजद को 25 सीटों से संतोष करना पड़ा है। दूसरे नंबर पर कांग्रेस को 6, भाकपा-माले को 2, आईआईपी को 1, माकपा को 1 सीटें मिली हैं। कुल मिलाकर महागठबंधन को 35 सीटें मिली हैं।
अगर नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ आते हैं जदयू की 85 और महागठबंधन की 35 सीटें मिलाकर 120 होती हैं। फिर भी सरकार बनने की कोई गुंजाइश नहीं रहने वाली। इसमें ओवैसी की पार्टी भी महागठबंधन में शामिल हो जाती है या उनकी पार्टी को तोड़कर सरकार बनाने की नौबत आती है तो आंकड़ा 125 तक जाता है।
हालांकि नीतीश कुमार यह कभी नहीं चाहेंगे कि 202 विधायकों के प्रचंड समर्थन वाली सरकार छोड़कर जोड़ तोड़ करके महागठबंधन के साथ सरकार बनाई जाए। इससे सरकार की स्थिरता को हमेशा खतरा बना रहेगा, जो नीतीश कुमार को बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा।