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Bihar: बोधगया मंदिर अधिनियम रद्द करने की मांग को लेकर बौद्ध अनुयायियों ने दिया मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना

By एस पी सिन्हा | Updated: May 6, 2025 16:05 IST

बताया जा रहा है कि बोधगया के महाबोधि मंदिर के लिए बनाई गई कमेटी में दूसरे धर्म के भी लोग शामिल हैं। ऐसे में बौद्ध धर्म के लोगों की मांग है कि उनकी कमेटी में दूसरे धर्म के लोग शामिल नहीं होंगे। प्रदर्शन कर रहे बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि 1949 में जो नियम बना है उसको निरस्त किया जाए। 

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पटना:बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास एक अणे मार्ग के बाहर मंगलवार को जमकर हंगामा हुआ। सुबह-सुबह पहले बीपीएससी अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया। जिसके बाद प्रशासन ने अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज कर उन्हें खदेड़ा। 

वहीं इसके थोड़ी ही देर बाद ही बौद्ध अनुयायियों का जत्था मुख्यमंत्री आवास पर पहुंच गया। सभी बौद्ध अनुयायी गया के महाबोधि मंदिर से पहुंचे थे। सभी बौद्ध अनुयायी अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास के बाहर बैठ गए। इसके बाद प्रशासन ने इन्हें समझा बुझाकर वहां से हटाया।

बताया जा रहा है कि बोधगया के महाबोधि मंदिर के लिए बनाई गई कमेटी में दूसरे धर्म के भी लोग शामिल हैं। ऐसे में बौद्ध धर्म के लोगों की मांग है कि उनकी कमेटी में दूसरे धर्म के लोग शामिल नहीं होंगे। प्रदर्शन कर रहे बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि 1949 में जो नियम बना है उसको निरस्त किया जाए। 

वहीं, जिस धर्म का मंदिर है उन्हीं लोगों को पूरा प्रतिनिधित्व दिया जाए। बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मामले में तत्काल निर्णय लें। प्रदर्शन कर रहे लोग अधिकारियों से बातचीत की। पुलिस प्रदर्शन कर रहे बौद्ध अनुयायियों को समझाया। 

दरअसल, बोधगया स्थित ऐतिहासिक महाबोधि मंदिर को लेकर बौद्ध भिक्षुओं का आंदोलन लगातार जोर पकड़ रहा है। करीब 100 बौद्ध भिक्षु फरवरी माह से ही महाबोधि मंदिर परिसर में प्रदर्शन कर रहे हैं। बौद्ध भिक्षुओं की मांग है कि मंदिर का संपूर्ण नियंत्रण बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। 

उल्लेखनीय है कि यह विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें दशकों पुरानी हैं और इसका केंद्र है बोधगया मंदिर अधिनियम(बीजीटीए),1949। इस कानून के तहत मंदिर का संचालन एक समिति करती है, जिसमें हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। 

समिति के पदेन अध्यक्ष स्थानीय जिलाधिकारी होते हैं जो यदि गैर-हिंदू हों, तो राज्य सरकार किसी हिंदू को अध्यक्ष नामित करती है। बौद्ध समुदाय इसी प्रावधान को भेदभावपूर्ण बताते हुए बीजीटीए को निरस्त करने की मांग कर रहा है। 

बता दें कि बोधगया बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में एक माना जाता है। माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। लुम्बिनी, सारनाथ और कुशीनगर इसके अन्य तीन पवित्र स्थल हैं। 

1990 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बीजीटीए की जगह बोधगया महाविहार विधेयक लाने की कोशिश की थी, जिसमें मंदिर का नियंत्रण पूरी तरह बौद्धों को सौंपे जाने की बात थी। लेकिन यह विधेयक अमल में नहीं आ सका। 

जानकारों का कहना है कि सम्राट अशोक ने 260 ईसा पूर्व में इस मंदिर का निर्माण कराया था। बौद्ध धर्म के पतन और बख्तियार खिलजी के हमले के बाद मंदिर वीरान हो गया था। बाद में 1590 में एक हिंदू भिक्षु ने बोधगया मठ की स्थापना की और मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी ली। 

ब्रिटिश काल में श्रीलंका और जापान के बौद्धों ने इसे पुनः प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू किया था। 1949 में बिहार सरकार ने बीजीटीए लागू कर मंदिर प्रशासन की वर्तमान संरचना तय की थी। यह मुद्दा अब कानूनी पेच में भी उलझा है। 

मंदिर पर बौद्धों का दावा ‘उपासना स्थल कानून, 1991’ की परिधि में आता है। जो 15 अगस्त 1947 के बाद पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप में बदलाव पर रोक लगाता है। इस कानून को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, लेकिन बौद्धों की ओर से बीजीटीए को लेकर दाखिल याचिका पर अब तक सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है।

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