पटनाः एनडीए गठबंधन की अहम सहयोगी जदयू तकरीबन 10-15 सीटिंग विधायकों का टिकट काट सकती है। इनमें से कुछ पार्टी के बड़े और कद्दावर नेता भी हो सकते हैं। सुपौल को मौजूदा विधायक बिजेंद्र प्रसाद यादव, सुल्तानगंज के विधायक ललित नारायण मंडल, बहादुरपुर के विधायक मदन सहनी, बेलहर से मनोज यादव, परिहार से जितेंद्र कुमार राय और रानीगंज से अच्मित ऋषिदेव ऐसे विधायक हैं, जिनका स्वास्थ्य और उम्र टिकट कटने का कारण बन सकता है। वहीं, कुछ नेताओं का पार्टी लाइन से अलग रुख अख्तियार करना टिकट कटने की वजह बन सकता है।
उल्लेखनीय है कि जदयू ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें 43 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में लोजपा के एकमात्र विधायक जदयू में शामिल हो गए थे, जिससे विधायकों की संख्या 44 हो गई थी। इस बार पार्टी 100 से 110 सीटों पर दावेदारी ठोक रही है।
पार्टी नेता इस बार के बिहार चुनाव में उन उम्मीदवारों का टिकट काटने जा रहे हैं, जिनका 2020 के चुनाव में या तो जमानत जप्त हो गया था या फिर वह तीसरे और चौथे नंबर पर रहे थे। आंकड़े बता रहे हैं कि इस लिहाज से कम से कम 35-40 पूर्व विधायक और उम्मीदवार का इस बार पत्ता कटना साफ हो गया है।
जदयू इस बार उन विधायकों को भी हटा सकती है, जिनकी उम्र 70 वर्ष से अधिक है या जिनके खिलाफ स्थानीय स्तर पर विरोध है। इस लिहाज से बिजेंद्र प्रसाद यादव, जो अब तकरीबन 80 साल के होने वाले हैं, उनका पत्ता साफ होने वाला है। उनकी उम्र और स्वास्थ्य कारणों से पार्टी नए चेहरे पर दांव खेल सकती है।
हालांकि ये भी चर्चा है कि उनके बेटे या बहू को जदयू टिकट दे सकती है। इसी तरह बेगूसराय के चेरिया बरियारपुर सीट से एक बार जीत चुकी पूर्व मंत्री मंजू देवी का भी पत्ता इस बार कट सकता है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी इस सीट पर किसी युवा नेता को उतारने की योजना बना रही है।
इसके साथ ही जदयू उन विधायकों पर भी नजर रख रही है, जो 2020 में कम अंतर से जीते थे या जिन पर पार्टी लाइन से अलग हटकर चलने का आरोप है। इस लिहाज से खगड़िया के परबत्ता से विधायक डॉ संजीव कुमार का टिकट कटना लगभग तय हो गया है। वैसे भी उनका झुकाव राजद की ओर देखा जा रहा है।
ऐसे में संभव है कि संजीव कुमार जल्द ही राजद का दामन थाम सकते हैं। बता दें कि जदयू के भीतर टिकट बंटवारे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अहम भूमिका होती है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार अपनी आखिरी सियासत की राजनीतिक पारी खेल रहे हैं। ऐसे में वह इस बार ऐसा कोई रिस्क नहीं लेंगे जिससे 2020 वाली स्थिति पैदा हो जाए।
ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत बनाए रखने के लिए पुराने विधायकों को टिकट न देकर नया चेहरा उतारने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं तो अचरज नहीं होनी चाहिए।