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बिहार विधानसभा चुनावः पासी समुदाय की हिस्सेदारी 0.98 फीसदी?, वोट बैंक पर तेजस्वी यादव की नजर, ताड़ी को लेकर सियासत तेज

By एस पी सिन्हा | Updated: March 8, 2025 18:04 IST

ताड़ी को लेकर विवाद के केंद्र में पासी समाज है, जो परंपरागत रूप से ताड़ी निकालने का कार्य करता आ रहा है।

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ठळक मुद्देचिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रा) भी शामिल हो शामिल हो गई है। पासी समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 0.98 फीसदी है। महागठबंधन बिहार में दलित वोट बैंक को पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है।

Bihar Assembly Elections:बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के द्वारा यह ऐलान किए जाने पर कि उनकी सरकार बनी तो  ताड़ी (ताड़ के पेड़ से प्राप्त पेय) पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा। ऐसे में इसको लेकर सियासत गर्मा गई है। दरअसल, तेजस्वी यादव की इस मांग को महागठबंधन के साथ-साथ एनडीए के कुछ नेताओं का भी समर्थन मिल रहा है। जिसमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रा) भी शामिल हो शामिल हो गई है। बता दें कि ताड़ी को लेकर विवाद के केंद्र में पासी समाज है, जो परंपरागत रूप से ताड़ी निकालने का कार्य करता आ रहा है।

बताया जाता है बिहार की 2023 की जातीय जनगणना के अनुसार अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी लगभग 20 फीसदी है, जिसमें पासी समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 0.98 फीसदी है। हालांकि संख्या में कम होने के बावजूद भी बिहार की जातिगत राजनीति में दलित वोट बैंक की अहमियत बढ़ जाती है। ऐसे में महागठबंधन बिहार में दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है।

इस बीच एनडीए के अधिकतर सहयोगी दल जदयू को छोड़कर ताड़ी पर लगे  प्रतिबंध को हटाने की मांग अपने अपने तरीके से समर्थन कर रहे हैं। लोजपा(रा) प्रमुख एवं केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान ने ताड़ी और नीरा को शराब की श्रेणी में रखने का विरोध किया है। उनका कहना है कि यह एक प्राकृतिक पेय है और इसे शराब की श्रेणी में रखना गलत है क्योंकि इससे बड़ी संख्या में लोग अपनी आजीविका चलाकर अपने परिवार की भरण पोषण करते हैं। सूत्रों के अनुसार कुछ भाजपा नेताओं का मानना है कि शराबबंदी के कारण महिलाओं का समर्थन एनडीए को मिला है।

लेकिन इससे दलित समुदाय का एक बड़ा वर्ग उनसे छिटक भी गया है। वहीं भाजपा के अनुसार, ताड़ी पर बैन हटाने की राजद ये मांग राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए कर रही है। उधर, जदयू का मानना है कि शराबबंदी के कारण बिहार में महिलाओं का जीवन काफी हद तक बेहतर हुआ है। 2022 में जब पासी समाज ने अपनी समस्याएं उठाईं, तो मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उनकी आजीविका बचाने के लिए नीरा केंद्र खोले जाएं। बिहार की राजनीति में पासी समाज को साधने के लिए सभी पोलिटिकल पार्टियां उनको लुभाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं।

कांग्रेस नेता भी बिहार में पासी और दलित समाज के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के प्रयास किया है। राहुल गांधी ने फरवरी में पटना में स्वतंत्रता सेनानी और पासी समुदाय के बड़े नेता रहें जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती शामिल हुए थे। इसबीच राजद और जदयू दोनों ही पार्टियां  पासी समाज को अपने पाले में करने के लिए सक्रिय नजर आ राही हैं।

राजद के पास उदय नारायण चौधरी, संतोष निराला और मुनेश्वर चौधरी जैसे पासी नेता हैं, जबकि जदयू ने अशोक चौधरी को मंत्री और पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया है ताकि समाज में एक गहरा असर पड़े। वहीं, भाजपा के पास पासी समुदाय का कोई बड़ा चेहरा फिलहाल नहीं है।

पहले गया से तीन बार सांसद रहे ईश्वर चौधरी और उनके भाई कृष्ण चौधरी एक ज़माने में  भाजपा के पासी वोट बैंक के बड़ा चेहरा हुआ करते थे। हालांकि,1990 के बाद राजद और जदयू ने इस वोट बैंक को अपने पलड़े में करने  में सफल रहीं।

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