पटनाःबस कुछ दिन के बाद बिहार विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बजने वाली है। इस बार भी मुख्य मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच होने वाला है। 243 सीट पर नवंबर 2025 में चुनाव होने की संभवना है। सियासत के जानकारों की मानने लालू यादव की नई रणनीति युवा और महिला मतदाताओं को लुभाने, एनडीए के वोट-बैंक में सेंध लगाने और तेजस्वी की छवि को एक प्रगतिशील नेता के रूप में स्थापित करने की है। ‘माई-बहिन मान योजना’ और 100 फीसदी डोमिसाइल नीति के वादे, साथ ही झामुमो और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) जैसे नए सहयोगियों को जोड़ना इसी रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, परिवार के भीतर मतभेद, महागठबंधन में अंदरूनी कलह और कानूनी चुनौतियां लालू की राह में मुश्किलें खड़ी कर रही हैं।
इसके बावजूद, वे लगातार तेजस्वी को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बता रहे हैं क्योंकि इस पद के लिए अभी तक कोई दूसरा दमदार चेहरा सामने नहीं आया है। इस बीच चर्चा है कि सीट बंटवारे का फार्मूला लालू यादव ने तय कर लिया है। लालू यादव ने अपने तय फॉर्मूले को अपने सहयोगियों के साथ साझा भी किया है, लेकिन कांग्रेस सहित तमाम सहयोगी दल इस सीट शेयरिंग के फार्मूले से नाराज हैं।
सूत्रों की मानें तो राजद ने अपने खाते में 136 सीटें रखी हैं। कांग्रेस को 52 सीटें दी गई हैं, जबकि तीनों वाम दलों (भाकपा, माकपा, भाकपा-माले) को मिलाकर 34 सीटें दी गई हैं। वहीं, वीआईपी पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी को 20 सीटें देने का प्रस्ताव है। चर्चा है कि कांग्रेस नेताओं को जैसे ही इस फार्मूले की जानकारी मिली उन्हें तुरंत आलाकमान को बताया।
जिसके बाद कांग्रेस नेताओं के सुर बदल गए और कहने लगे कि बिहार का मुख्यमंत्री कौन होगा ये जनता तय करेगी। तेजस्वी यादव के सीट शेयरिंग फॉर्मूला से महागठबंधन में भारी नाराजगी है। सियासत के जानकारों की मानें तो तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद इसी फार्मूले को लागू करना चाह रही है लेकिन अन्य सहयोगी दल इस फार्मूले को मानने के लिए तैयार नहीं है।
ऐसे में राजद का यह दांव सहयोगियों के लिए गले की फांस बन रही है। महागठबंधन के सहयोगी दल इस फार्मूले से सहमत नहीं है। संभावना जताई जाने लगी है कि महागठबंधन में खींचतान देखने को मिल सकता है। एक ओर जहां कांग्रेस 60 से 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है तो वहीं दूसरी ओर वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी उपमुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।
कांग्रेस ना ही 52 सीट पर मानने को तैयार है और ना ही सहनी 20 सीटों पर मानेंगे। सहनी से 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग की थी। यहीं नहीं सबसे बड़ा सवाल यह है कि हाल ही में भारी मन से महागठबंधन में जुड़े पशुपति पारस और झामुमो को आखिर कितनी सीटें मिलेंगी? वहीं राजद का फार्मूला फिलहाल किसी सहयोगी को रास नहीं आ रहा। ऐसे में महागठबंधन में जारी अंदरुनी कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।