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बिहार: नीतीश के लिए बजी खतरे की घंटी, उपचुनावों के नतीजे बना सकते हैं नये सियासी समीकरण

By एस पी सिन्हा | Updated: December 10, 2022 15:54 IST

बिहार के कुढ़नी में हुए उपचुनाव को अगर जदयू के नजरिये से देखें तो नीतीश कुमार के पीएम उम्मीदवारी को झटका लग सकता है। वहीं अगर महागठबंधन के कथित वोट शेयर के दावों की बात करें तो कुढ़नी नतीजे से उसकी भी हवा निकल गई है।

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ठळक मुद्देबिहार उपचुनाव के परिणाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भारी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा हैनीतीश मैजिक के फेल होते ही राजद खेमे ने उनका इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया हैबिहार उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि यहां पर वोट बैंक का ट्रेंड तेजी से बदल रहा है

पटना: नीतीश कुमार बड़े बहुमत के साथ बिहार में महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं। सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष एकता को मजबूद करने की कोशिश में है। लेकिन उपचुनाव में जो परिणाम आए हैं, उसके बाद अब ऐसे हालत बन रहे हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले ही बिहार में कोई और नया सियासी समीकरण बन सकता है। राजद के पूर्व विधायक ने इसकी शुरूआत करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफा मांग कर इसकी शुरूआत कर दी है।

बिहार उपचुनाव के परिणामों को देखें तो ये कहना गलत नहीं होगा कि अब बिहार की सियासत में वोट बैंक का ट्रेंड तेजी से बदल रहा है। किसी जाति व धर्म विशेष को अपना समझकर आंख मूंद लेना बड़े सियासी दलों को नुकसान पहुंचा रहा है। कुढ़नी उपचुनाव के नतीजे कई मायनों में महत्वपूर्ण है। खासकर जदयू की नजरिये से देखें तो नीतीश कुमार के पीएम उम्मीदवारी को झटका लग सकता है। वहीं अगर महागठबंधन के कथित वोट शेयर के दावों की बात करें तो कुढ़नी में उसकी हवा निकल गई।

नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की जो मुहिम नीतीश कुमार ने शुरू की थी, उस पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है। कुढ़नी में नीतीश कुमार को जनता का समर्थन नहीं मिला जो महागठबंधन को उम्मीद था। यूं कहे तो उप चुनाव के नतीजों से संकेत मिला कि नीतीश कुमार के फैसले पर जनता ने मुहर नहीं लगाई। उपचुनाव के नतीजों के बाद से भाजपा नेता आत्मविश्वास से लबरेज हैं और अभी से ही 2024 और 2025 को फतह करने के दावे भी कर रहे हैं।

बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले संभवत: यह अंतिम चुनाव था। दोनों गठबंधन अब लोकसभा चुनाव में ही आमने-सामने नजर आएंगे। लिहाजा चुनाव के नतीजों के मायने में अलग है। शायद यही कारण था कि दोनों गंठबंधन के नेताओं ने कुढ़नी में पूरी ताकत झोंक रखी थी। मजबूत दिख रहा महागठबंधन को हराने के लिए बीजेपी कुढ़नी में प्रयोग भी किया, जो सफल रहा। हालांकि कुढ़नी उपचुनाव को जीतने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत झोंक दी थी।

वहीं महागठबंधन में राजद की बात करें तो अल्पसंख्यक वोटों का बिखराव अब बड़ी समस्या बनी हुई है। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने जहां भी दस्तक दी है, उसका नुकसान महागठबंधन को भुगतना पड़ा है। एआईएमआईएम अच्छे खासे तादाद में अल्पसंख्यक वोटरों को अपनी ओर शिफ्ट करने में सफल रही है। कुढ़नी में भी तीन हजार से अधिक वोट एआईएमआईएम उम्मीदवार को मिले। इन वोटों में अधिकतर महागठबंधन के ही हिस्से में जाती रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि महागठबंधन को ओवैसी की एंट्री का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

कुढ़नी उपचुनाव की बात करें तो यहां एआईएमआईएम उम्मीदवार और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के उम्मीदवार ने भी महागठबंधन की हार में बड़ी भूमिका निभाई। वीआईपी को करीब 10 हजार वोट मिले, जबकि जदयू उम्मीदवार कांटे की टक्कर में महज 3632 वोटों से हारे। महागठबंधन को वोटों के बिखराव का सीधा फायदा एनडीए को मिलता है। अमूमन माना जाता है कि सत्ताधारी दल के पास अगर बहुमत हो तो उपचुनाव को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं।

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