भवानीपुर सीट: धुरंधर प्रतिद्वंद्वियों के नहीं होने के कारण ममता बनर्जी की राह है आसान

By भाषा | Updated: September 13, 2021 16:26 IST2021-09-13T16:26:40+5:302021-09-13T16:26:40+5:30

Bhawanipur seat: Mamta Banerjee's path is easy due to absence of fierce rivals | भवानीपुर सीट: धुरंधर प्रतिद्वंद्वियों के नहीं होने के कारण ममता बनर्जी की राह है आसान

भवानीपुर सीट: धुरंधर प्रतिद्वंद्वियों के नहीं होने के कारण ममता बनर्जी की राह है आसान

कोलकाता, 13 सितंबर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की जीत से नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ एक सशक्त चेहरे के रूप में उभरने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब भवानीपुर सीट पर होने वाले उपचुनाव में उतर रही हैं जहां प्रतिद्वंद्वियों से उन्हें किसी कड़े मुकाबले की उम्मीद नहीं है।

इस साल राज्य विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से चुनाव लड़ने वाली बनर्जी को प्रचार के दौरान पैर में चोट लग गई थी और उन्होंने खुद को ‘‘घायल शेरनी’’ बताया था। हालांकि इस सीट पर उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।

भवानीपुर सीट पर इस बार बनर्जी के खिलाफ भाजपा की प्रियंका टिबरेवाल और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के श्रीजीब विश्वास उम्मीदवार होंगे। टिबरेवाल ने एंटाली से विधानसभा चुनाव लड़ा था और हार गई थी। विश्वास अभी राजनीति में नौसिखिए है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा के लिए भवानीपुर की लड़ाई सीट जीतने के बजाय अपना 35 फीसदी मत प्रतिशत बचाए रखना है।

बनर्जी के लिए यह मौका न केवल नंदीग्राम में हुई अपनी हार का बदला लेने का है बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में उनकी बड़ी महत्वाकांक्षा से भी जुड़ा है।

कांग्रेस ने शुरुआती हिचकिचाहट के बाद बनर्जी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने और प्रचार से दूर रहने का फैसला किया।

बनर्जी ने 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में दो बार भवानीपुर सीट से जीत दर्ज की थीं लेकिन इस साल के विधानसभा चुनाव में उन्होंने नंदीग्राम सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया था।

मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने के लिए संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप बनर्जी को पांच नवंबर तक राज्य विधानसभा में एक सीट जीतना आवश्यक है। संविधान किसी राज्य विधायिका या संसद के गैर-सदस्य को केवल छह महीने के लिए चुने बिना मंत्री पद पर बने रहने की अनुमति देता है।

नंदीग्राम में बनर्जी की हार के बाद, राज्य के कैबिनेट मंत्री और भवानीपुर से तृणमूल कांग्रेस विधायक सोवनदेव चट्टोपाध्याय ने अपनी सीट खाली कर दी थी ताकि इस सीट से मुख्यमंत्री चुनाव लड़ सके।

राज्य के वरिष्ठ मंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हमारे लिए जीत कोई मुद्दा नहीं है। ममता बनर्जी इस सीट से जीतेंगी, यह पहले से तय है, यह बात विपक्षी दल भी जानते हैं। हमारा लक्ष्य रिकॉर्ड अंतर से जीत सुनिश्चित करना है। लोगों ने नंदीग्राम में रची गई साजिश का बदला लेने के लिए रिकॉर्ड अंतर से बनर्जी को इस सीट पर जिताने का फैसला किया है।’’

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘ज्यादातर वरिष्ठ नेता ममता बनर्जी के खिलाफ, और वह भी भवानीपुर से उपचुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा मत प्रतिशत बरकरार रहे या उसमें वृद्धि हो।’’

वैसे टिबरेवाल अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखती हैं और उन्होंने चुनाव के बाद की हिंसा को एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने का फैसला किया है।

टिबरेवाल ने कहा, ‘‘ममता बनर्जी यह चुनाव मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए लड़ रही हैं। मेरा काम निर्वाचन क्षेत्र के लोगों तक पहुंचना और उन्हें विधानसभा चुनावों के बाद विपक्षी कार्यकर्ताओं पर उनकी पार्टी द्वारा किए गए अत्याचारों, यातनाओं और हिंसा के बारे में सूचित करना होगा। मुझे विश्वास है कि भवानीपुर के लोग मुझे वोट देंगे और उन्हें हरा देंगे।’’

वाम मोर्चा के उम्मीदवार श्रीजीब विश्वास ने कहा कि बनर्जी के नेतृत्व में विकास की कथित कमी उपचुनाव में एक प्रमुख मुद्दा होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी लड़ाई तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों के खिलाफ है। हम इस बात पर जोर देंगे कि पिछले 10 वर्षों में राज्य में कोई विकास नहीं हुआ है।’’

भवानीपुर सीट पर 30 सितंबर को उपचुनाव होगा।

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