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बिहार का इस संस्कृत कॉलेज में बिना पढ़ाई किए बांटी जाती हैं शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां 

By एस पी सिन्हा | Updated: September 4, 2019 16:06 IST

बिहारः भागलपुर स्थित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय में बिना पढ़ाई-लिखाई के डिग्रियां बांटे जाने का गोरखधंधा सामने आया है।

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ठळक मुद्देभागलपुर के राजकीय संस्कृत महाविद्यालय में शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां बांटी जा रही हैं. पूर्व बिहार, सीमांचल और कोसी का यह एकमात्र बड़ा संस्कृत कॉलेज है.   

बिहार में बिना पढ़ाई किए शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां बांटे जाने का मामला सामने आया है. यह सब धंधा भागलपुर स्थित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय के द्वारा किया गया है. यहां बिना पढ़ाए ही शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां बांटी जा रही हैं. पूर्व बिहार, सीमांचल और कोसी का यह एकमात्र बड़ा संस्कृत कॉलेज है.   

प्राप्त जानकारी के अनुसार उपशास्त्री, शास्त्री और आचार्य के छात्र क्लास में नहीं आते. तीनों संकायों को क्रमश: इंटर, स्नातक व एमए का दर्जा है. यहां नामांकित 150 छात्रों में एक्का-दुक्का हीं पढ़ाई करने आते हैं. बताया जाता है कि यह कॉलेज 63 साल पुराना है. यह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध है. 

जानकारों की अगर मानें तो यहां परीक्षा में नकल की लगभग छूट रहती है. अभी हाल हीं में खुद प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रशेखर प्रसाद सिंह ने इसकी जांच की थी और प्राचार्य को फटकार भी लगाई थी. साथ ही छात्रों की उपस्थिति बेहतर करने का निर्देश दिया था. उन्होंने पाया था कि लाइब्रेरी में रखे दुर्लभ वेद, उपनिषद सहित कई पुस्तकों पर सालों से धूल जमी थी. इनके पन्ने नहीं पलटे गए थे. 

प्रतिकुलपति ने कहा कि छात्रों की उपस्थिति को लेकर राजभवन ने कड़े निर्देश दिए हैं. विश्वविद्यालय स्तर से कॉलेज के प्राचार्यों को पत्र निर्गत किया गया है. स्थानीय स्तर पर प्राचार्यों की जवाबदेही है कि वह नामांकित छात्रों को क्लास तक लाएं. 

वहीं, इस संबंध में पूछे जानेपर प्राचार्य प्रो. प्रभाष चंद्र मिश्रा ने बताया कि सालों से कॉलेज जैसे-तैसे चल रहा था. सुधार की कोशिश चल रही है. यहां उपशास्त्र, शास्त्री व आचार्य विषय में हर सत्र में 60-60 सीटें होती हैं. मुश्किल से एक चौथाई सीटों पर भी दाखिला नहीं हो पाता. दस स्थायी शिक्षकों के पद हैं, मगर मात्र दो शिक्षक ही कार्यरत हैं. तीन अतिथि शिक्षक बहाल किए गए हैं. सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रीति पारेश्वरी मोहंती के अनुसार संस्कृत में नामांकन लेने वाले छात्र भी पढ़ाई को लेकर उदासीन हैं. इसी वजह से वह कक्षाओं में नहीं आते.

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