बेंगलुरु सिविक बॉडी ने आवारा कुत्तों में चावल के दाने के आकार के माइक्रोचिप प्रत्यारोपण का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया
By अनुभा जैन | Updated: September 22, 2024 14:54 IST2024-09-22T14:53:48+5:302024-09-22T14:54:36+5:30
बीबीएमपी के स्वास्थ्य और पशुपालन विशेष आयुक्त सुरलकर विकास किशोर के नेतृत्व में इस पहल का उद्देश्य उन्नत तकनीक का उपयोग करके सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों की आबादी को बेहतर तरीके से ट्रैक करना और उनका प्रबंधन करना है।

बेंगलुरु सिविक बॉडी ने आवारा कुत्तों में चावल के दाने के आकार के माइक्रोचिप प्रत्यारोपण का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया
बेंगलुरु: आवारा कुत्तों से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए, बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने बिज आरबिट संगठन के सहयोग से इन कुत्तों पर चावल के दाने के आकार के माइक्रोचिप लगाने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसे आवारा कुत्तों की आबादी के बेहतर प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
इस परियोजना के हिस्से के रूप में, आवारा कुत्तों को माइक्रोचिप लगाई जा रही है जो कुत्ते के टीकाकरण के इतिहास, नसबंदी सर्जरी की तारीख, कुत्ते के लोकेशन आदि जानकारी संग्रहीत करती है। स्थायी पहचान विधि के रूप में माइक्रोचिप्स को इन जानवरों की त्वचा के नीचे एक दर्द रहित इंजेक्शन के माध्यम से जीवन भर के लिए डाला जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि महत्वपूर्ण जानकारी हमेशा सुलभ रहे।
बीबीएमपी के स्वास्थ्य और पशुपालन विशेष आयुक्त सुरलकर विकास किशोर के नेतृत्व में इस पहल का उद्देश्य उन्नत तकनीक का उपयोग करके सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों की आबादी को बेहतर तरीके से ट्रैक करना और उनका प्रबंधन करना है। बीबीएमपी के स्वास्थ्य और पशुपालन विभाग के विशेष आयुक्त सुरलकर विकास किशोर ने बताया कि माइक्रोचिप तकनीक को सफलतापूर्वक अपनाया गया है और इसमें एकीकृत कुत्ता टीकाकरण कार्यक्रम भी शामिल होगा। इस पहल को सटीक डेटा के साथ आवारा कुत्तों के प्रभावी प्रबंधन के रूप में देखा जा रहा है। माइक्रोचिप तकनीक इस कमी को दूर कर सकती है और कुत्तों में टीकाकरण के बारे में सटीक जानकारी दे सकती है।
पारंपरिक विधि में जहां टीका लगाए गए आवारा कुत्तों के शरीर पर पेंट के निशान लगाये जाते हैं, जो केवल एक सप्ताह तक टिकते हैं, वहीं माइक्रोचिप विधि स्थायी समाधान प्रदान करेगी। नागरिक निकाय का मानना है कि इस अभ्यास से हर साल एक ही कुत्ते को कई बार टीका लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
जबकि कार्यकर्ताओं या एक्टिविस्ट्स का तर्क है कि यह पैसे की बर्बादी होगी। एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स ने बताया है कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड गली के कुत्तों के टीकाकरण या पशु जन्म नियंत्रण उपायों के लिए अपने मानक संचालन प्रक्रियाओं में माइक्रोचिप्स को शामिल नहीं करता है। उनका तर्क है कि यह प्रक्रिया आक्रामक है और अगर सही तरीके से नहीं की गई तो रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचा सकती है या संक्रमण का कारण बन सकती है।