नई दिल्ली:भारत सरकार ने सैन्य ड्रोन के भारतीय निर्माताओं को चीन में बने घटकों का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा कमजोरियों पर गंभीर चिंताओं के बाद यह निर्णय लिया गया।
रिपोर्ट में चार रक्षा और उद्योग अधिकरियों के हवाले से इस बात को कहा गया है। जानकारी के मुताबिक, देश के सुरक्षा नेता चिंतित थे कि ड्रोन के संचार कार्यों, मानव रहित हवाई वाहन के कैमरे, रेडियो ट्रांसमिशन और ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर में चीन निर्मित भागों द्वारा खुफिया जानकारी एकत्र करने से समझौता किया जा सकता है।
चीन निर्मित हिस्सों को प्रतिबंधित करने का निर्णय भारत और चीन, दो परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच सैन्य तनाव के बीच आया है, खासकर मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ भारतीय सेना और बीजिंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच झड़पों के बाद।
क्यों लिया गया फैसला?
रॉयटर्स की रिपोर्ट आगे बताती है कि देश में ड्रोन टेंडरों पर चर्चा के लिए फरवरी और मार्च में दो बैठकें बुलाई गईं। वहां, भारतीय सैन्य अधिकारियों ने संभावित बोलीदाताओं को बताया कि रॉयटर्स द्वारा समीक्षा की गई।
जिसके अनुसार, "भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों के उपकरण या उप-घटक सुरक्षा कारणों से स्वीकार्य नहीं होंगे।" इसका तात्पर्य अनिवार्य रूप से चीन निर्मित उपकरण और उपघटक से है।
एक भारतीय रक्षा अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि देश को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उच्च लागत स्वीकार करने के लिए तैयार रहना होगा।
उन्होंने कहा, "अगर आज मैं चीन से उपकरण नहीं खरीदूं और कहूं कि मैं इसे भारत में बनाना चाहता हूं तो लागत 50% बढ़ जाएगी।" उन्होंने कहा, "एक राष्ट्र के रूप में हमें यहां पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में मदद करने के लिए तैयार रहने की जरूरत है।"
मालूम हो कि 2019 में, पेंटागन ने चीन में बने ड्रोन और घटकों की खरीद और उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया। अब इसी सूची में भारत भी शामिल हो गया है।
वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी 2023 में वादा किया था कि रक्षा अनुसंधान और विकास के लिए इस वित्तीय वर्ष के बजट का एक-चौथाई हिस्सा निजी उद्योग के लिए होगा। ऐसे में ड्रोन में इस्तेमाल होने वाले सामान भारत में ही बनाए जा सकते हैं जिससे चीन से इसे खरीदने की जरूरत न पड़े।