Nagpur news: दीक्षाभूमि के आधारस्तंभ सदानंद फुलझेले नहीं रहे, कल अंतिम यात्रा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 15, 2020 06:49 PM2020-03-15T18:49:27+5:302020-03-15T18:49:27+5:30
14 अक्तूबर 1956 को नागपुर की पवित्र दीक्षाभूमि पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म की ऐतिहासिक दीक्षा ली. इस धम्मदीक्षा समारोह की संपूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी सदानंद फुलझेले ने सफलतापूर्वक निभाई थी. उस वक्त वे नागपुर के उपमहापौर थे.
नागपुरः आंबेडकरी आंदोलन के वरिष्ठ नेता एवं परमपूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक समिति दीक्षाभूमि नागपुर के सचिव सदानंद फुलझेले का रविवार को सुबह डॉ. आंबेडकर मार्ग धरमपेठ स्थित निवास में निधन हो गया. वे 92 वर्ष के थे. वे अपने पीछे तीन पुत्र अशोक, एड. आनंद और डॉ. सुधीर और पुत्री निमा ओरके समेत बड़ा परिवार छोड़ गए है.
14 अक्तूबर 1956 को नागपुर की पवित्र दीक्षाभूमि पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म की ऐतिहासिक दीक्षा ली. इस धम्मदीक्षा समारोह की संपूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी सदानंद फुलझेले ने सफलतापूर्वक निभाई थी. उस वक्त वे नागपुर के उपमहापौर थे.
इस प्रथम ऐतिहासिक समारोह से लेकर स्मारक समिति के कार्यवाह के तौर पर दीक्षाभूमि की संपूर्ण जिम्मेदारी उन्होंने जीवन के अंत तक पूरी क्षमता ने निभाई. इसलिए दीक्षाभूमि के लिए वे सही मायने में आधारस्तंभ माने जा रहे थे.
एक नवंबर 1928 को धरमपेठ के एक श्रीमंत, सुशिक्षित और प्रतिष्ठित परिवार में उनका जन्म हुआ. पिता श्रीमंत मालगुजार थे. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आंदोलन के साथ उनका परिवार काफी करीब रहा. साल 1942 में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन का गठन किया गया.
नागपुर में इसके अधिवेशन में उन्होंने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को करीब से देखा. साल 1946 में न्यू इंग्लिश हाईस्कूल सीताबर्डी, नागपुर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद प्रथम मॉरिस कॉलेज और बाद में नेशनल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. किया. महाविद्यालयीन शिक्षा के दौरान ही समता सैनिक दल व शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के अलावा सामाजिक आंदोलन तथा राजनीति में वे सक्रिय रहे.
साल 1952 में रामदास फुलझेले. विठ्ठल थूल और धरमपेठ स्थित आंबेडकरनगर के कार्यकर्ताओं की मदद से उन्होंने रामदासपेठ वॉर्ड से नागपुर महापालिका का चुनाव जीता. साल 1956 में वे उपमहापौर बन गए. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण होने के बाद 7 दिसंबर को 1956 को शोकाकुल जनसमूह ने बाबासाहब का भव्य स्मारक दीक्षाभूमि पर बनाने का निर्णय लिया.
इसके लिए परमपूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक समिति का गठन किया गया. इसमें फुलझेले भी सदस्य के तौर पर शामिल थे. इसके बाद दीक्षाभूमि की जमीन स्मारक समिति के लिए हासिल करने के लिए हुए आंदोलन में फुलझेले सक्रिय रहे. जून 1963 में दादासाहब गायकवाड को परमपूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक समिति के अध्यक्ष और सदानंद फुलझेले को सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया. तब से फुलझेले संपूर्ण स्मारक समिति के कार्य का जिम्मा संभाल रहे थे.
दीक्षाभूमि पर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा पार्थिव सदानंद फुलझेले की अंतिम यात्रा सोमवार 16 मार्च को दोपहर तीन बजे उनके निवासस्थान आंबेडकरनगर, धरमपेठ से निकलेगी. पवित्र दीक्षाभूमि पर उनका पार्थिव अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा. इसके बाद सायं पांच बजे अंबाझरी श्मशानभूमि पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. रविवार को सुबह उनके निधन की खबर मिलते ही शहर के विविध क्षेत्र के मान्यवरों ने उनके निवास स्थान पहुंचकर अंतिम दर्शन किए.