ऋषि दर्डा/ हरीश गुप्ताः जबर्दस्त आत्मविश्वास के साथ राजनीति करने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वास्त हैं. उनका मानना है कि भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बराबर का कोई नेता ही नहीं है. इसलिए आम चुनाव में सवाल है कि नरेंद्र मोदी विरुद्ध ‘कौन’. इसकी सीधी वजह बीते लगभग दस साल में मोदी सरकार के काम का देश की जनता को लाभ मिलना है. नई दिल्ली में ठंड के मौसम की एक सर्द शाम में अपने निवास पर राजनीति के हर सवाल का एक घंटे तक पूरी गर्मजोशी के साथ केंद्रीय गृह मंत्री ने जवाब दिया. हमेशा की तरह हल्के-फुल्के रंग के कपड़े पर आकर्षक जैकेट पहनने वाले भाजपा नेता ने लोकसभा चुनाव को लेकर हर तरह के सवालों के जवाब दिए.
प्रस्तुत हैं केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह से लोकमत समूह के संयुक्त प्रबंध संचालक और संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा और नेशनल एडिटर हरीश गुप्ता की बातचीत का दूसरा भाग:
सवाल: आपकी पार्टी के वरिष्ठ-कनिष्ठ नेता पूरे विश्वास से दावा कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में न केवल अच्छा प्रदर्शन करेगी, बल्कि 370 से अधिक सीटें जीतेगी और वोट की संख्या भी बढ़ेगी. इस आत्मविश्वास की क्या कहानी है?
जवाब : नरेंद्र मोदीजी ने अपनी कार्यकाल के 10 साल में जिस तरह काम किया है, वो देश की जनता के हृदय में है. आजतक किसी सरकार के 10 साल की कार्य अवधि में 20 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के बाहर नहीं आए हैं. हमने तीन करोड़ लोगों को घर दिए हैं. अगले पांच साल में और तीन करोड़ लोगों को घर देंगे. इसका अर्थ यह होगा कि आने वाले समय में हर एक व्यक्ति के पास घर होगा. हर व्यक्ति के घर में पांच किलो अनाज पहुंच रहा है. गरीब के घर में नलों से पानी पहुंच रहा है. सरकार उसके इलाज का पांच लाख रुपए तक खर्च उठा रही है. हमने घर में रसोई गैस पहुंचा दी है. हर घर में शौचालय की व्यवस्था हो गई.
सवाल : कई राज्यों में भाजपा ने नए और युवा चेहरों को अवसर दिया है. इसका वरिष्ठ नेताओं पर प्रभाव तो नहीं पड़ेगा?
जवाब : जैसे आपने कहा, वैसे वह युवा नेता हैं. हम भी आए थे तब ‘सीनियर लीडर्स’ हुआ करते थे. इसके पीछे कोई कारण नहीं है. आवश्यकता और प्रतिभा के साथ नए नेताओं पर भी विचार किया जाता है. वे अच्छे परिणाम भी देते हैं.
सवाल : विपक्ष जातिगत जनगणना कर रहा है और दूसरी समस्या पर चुनाव लड़ना चाहता है. आप क्या कहेंगे ?
जवाब : मैं तो यही कहूंगा कि देश के 80 करोड़ गरीब लोग कल्पना भी नहीं कर रहे थे कि उनके घर में इतना सब हो जाएगा. विपक्ष जाति की बात करता है. हम विकास की बात करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने तीन व्याख्याएं की हैं. मैं तो केवल एक ही व्याख्या करता हूं, जो हमें चुनाव जिता देगी, वह है लाभार्थियों की जाति. इससे अधिक कुछ भी नहीं.
सवाल : विपक्षी दलों में पहली बार एक पदासीन मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी हुई है.
जवाब : तकनीकी रूप से पदासीन मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी नहीं हुई है. उन्होंने इस्तीफा दिया था. मैं आपको बताता हूं कि लोगों को ऐसा मौका ही नहीं आने देना चाहिए. पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए. कईं लोगों ने पहले भी दिया है, मगर सब ने इतना हो-हल्ला नहीं किया.
सवाल : उस हिसाब से और किसी भी मुख्यमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए?
जवाब : मैं किसी नाम में पड़ना नहीं चाहता. सार्वजनिक जीवन की नैतिकता होती है. मुझ पर भी ‘एन्काउंटर’ का मुकादमा किया था. मुझे भी गिरफ्तार किया था. मैंने इस्तीफा दे दिया था. पूरी सुनवाई हुई. मैं सुप्रीम कोर्ट से बरी होकर आया. राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से झूठा मामला दर्ज किया गया था.
सवाल : महाराष्ट्र की भाजपा सरकार में एकनाथ शिंदे के साथ अजित पवार भी शामिल हो गए. राज्य की सत्ताधारी पार्टी में कुछ नेताओं पर मुकदमे चल रहे. ऐसे में अजित पवार का आपके साथ उन्हें ‘क्लीन चिट’ देने जैसा है क्या?
जवाब : एक तो पहले हमने किसी को ‘क्लीन चिट’ नहीं दी है. ‘क्लीन चिट’ हम दे ही नहीं सकते. उनके मामले जांच और कानून प्रक्रिया में विचारधीन हैं. जो अपनी जगह जारी है. जिनकी जांच होनी है, उनकी जांच होगी. उसके परिणाम अपने हिसाब से आएंगे.
सवाल : क्या आपको नहीं लगता है कि सरकार में शामिल होने वाले दागी नेताओं को लेकर नकारात्मक वातावरण बनने से भाजपा के परिणामों पर कोई असर पड़ेगा?
जवाब : जहां तक महाराष्ट्र की राजनीति का सवाल है, यह पूरा चुनाव केंद्र का चुनाव है. यहां केंद्र के मुद्दों का महाराष्ट्र की राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा, महाराष्ट्र का केंद्र पर नहीं. ये पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी विरुद्ध ‘कौन’, महाराष्ट्र में होगा तो शरद पवारजी होंगे या कोई और होगा, यह तो समय ही बताएगा.
सवाल : पिछली बार लोकसभा चुनाव में शिवसेना के साथ आपके गठबंधन ने 48 में से 42 सीटें जीती थी. जिनमें से 18 शिवसेना, 23 भाजपा और एक निर्दलीय सांसद एनडीए में शामिल हुईं. इस बार आपका क्या अनुमान है?
जवाब : आप देख लीजिएगा ऋषिजी हम लोग 42 सीटों से भी आगे जाएंगे. हम पहले से बेहतर करेंगे.
सवाल : लेकिन ‘ग्राउंड’ से जो ‘रिपोर्ट’ आर ही है वह कुछ अलग बता रही है?जवाब : छत्तीसगढ़ में भी आप के पास ऐसी ही रिपोर्ट आई थी. सवाल : छत्तीसगढ़ में आपने क्या किया, यहां भी छत्तीसगढ़ मॉडल होगा क्या?
जवाब : महाराष्ट्र में भी वातावरण बहुत ही अच्छा है. हम चुनाव जीतेंगे. हम विधानसभा चुनाव में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करेंगे और सरकार बनाएंगे.
सवाल : इस बार चुनाव में कई विधायकों या पदासीन मंत्रियों को संसदीय चुनाव का टिकट दिया जाएगा? क्या रणनीति है?
जवाब : दरअसल जो लोकसभा के लिए चुनकर आ सकता है, उसे चुनाव लड़ाया जा सकता है. इसके लिए विधायक, सांसद या मंत्री का कोई बंधन नहीं है. चुनाव में उतरने के पहले पार्टी के समक्ष विचार के दौरान कई बातें सामने आती हैं. ‘ऑन ग्राउंड रिपोर्ट’ में जो सबसे अधिक पसंदीदा प्रत्याशी पाया जाएगा, उस पर विचार होगा. इसलिए हर बार एक नई संभावना तो अवश्य ही बनी रहती ही है.
सवाल : इसका मतलब लोकसभा चुनाव में कई नए चेहरे देखने को मिलेंगे?
जवाब : यह अभी तो तय नहीं हुआ है. जब पार्लियामेंटरी बोर्ड बैठेगा तब देखेंगे.
सवाल : देश के कुछ राज्य अभी-भी आपके लिए चिंता का विषय हैं. दक्षिण के राज्यों में 130 सीटों में से पिछली बार 28 सीटें ही आपको मिली थीं. केरल, तमिलनाडु, ओडिशा सहित पश्चिम बंगाल के बारे में क्या कहना है?
जवाब : इस बार हम अच्छा करेंगे. हमारी सीटें ज्यादा सीटें आएंगी. वोट शेयर भी बढ़ेगा. और पश्चिम बंगाल में तो हम 18 से बहुत आगे बढ़कर 25 सीट तक जीत सकते हैं.
सवाल : आपने बिहार में नीतीश कुमारजी को वापस ले लिया?
जवाब : वो तो हमारे पास से ही वहां गए थे. जनमत तो हमारे साथ ही था.
सवाल : एक बार उधर जाना, फिर इधर जाना, विश्वसनीयता का प्रश्न उठता है?
जवाब : किसकी? हम तो कहीं नहीं गए.
सवाल : पिछले कई दशक से दक्षिण के राज्यों में भाजपा की स्थिति कमजोर रही है. क्या एक रणनीति के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी इस बार दक्षिण से भी चुनाव लड़ सकते हैं?
जवाब : ऐसा तय तो नहीं है. मगर लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी और ‘एनडीए’ के लिए बहुत अच्छा माहौल है.
सवाल : कुछ लोगों का मानना है कि मोदीजी दक्षिण से चुनाव लड़ते हैं तो आप दक्षिण का किला भेद सकते हैं?
जवाब : मगर ऐसे फैसले नहीं होते पार्टी में. हमें दक्षिण में हमारा संगठन बढ़ाना है. हमारे लगातार प्रयास जारी हैं.
सवाल : भाजपा हमेशा राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ बोलती हैं. मगर भाजपा में भी अनेक नेता और उनके परिणाम विधायक, सांसद और पार्टी के पदाधिकारी हैं. उनको लेकर क्या कहेंगे? उदाहरण के लिए कर्नाटक में येदियुरप्पा को लिया जा सकता है.
जवाब : राजनीति में परिवार को लेकर हमारा मानना पार्टी की कमान एक ही परिवार के हाथ में रहना. यदि परिवार के कई लोग पार्टी में कार्यरत रहते हैं तो उससे हमें कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि वे अलग-अलग पदों पर होते हैं. कई लोगों के नियंत्रण में कार्य करते हैं. उनके नियंत्रण में पार्टी नहीं होती है. येदियुरप्पाजी को ही लीजिए तो उनसे पहले कौन थे प्रदेशाध्यक्ष - नलीन कुमार, उनका येदियुरप्पाजी से दूर तक संबंध नहीं. उससे पहले मुख्यमंत्री थे बोम्मई- उनका भी येदियुरप्पाजी से कोई लेना-देना नहीं था. और येदियुरप्पाजी पार्लियामेंटरी बोर्ड के सदस्य हैं, यह कोई बड़ी बात नहीं है. और ये तीनों लोग 2014 से पहले से ही राजनीति में हैं. बोम्मई मुख्यमंत्री थे तब वो स्वतंत्र रूप से सरकार चलाते थे. तब आप लोग नहीं छापते थे कि येदियुरप्पाजी और बोम्मईजी के बीच मतभेद हैं.
सवाल : जिन राज्यों में विपक्ष की सत्ता है वहां सरकारी एजेंसियां ज्यादा ‘एक्टिव’ है, इस तरह की एक धारणा है, उस पर क्या कहेंगे?
जवाब : जब ‘यूपीए’ की सरकार थी, तब हमने पचासों पीआईएल की थीं, क्योंकि हमारे पास भ्रष्टाचार के मामले मौजूद थे. उस दौरान अदालतों ने आदेश दिया था और एफआईआर हुई थी. कांग्रेस पर तो हमसे से भी ज्यादा एफआईआर हैं. इसकी जानकारी तो संसद से भी हासिल की जा सकती है. अगर हमारा कोई भ्रष्टाचार का मामला है तो वह आज तक अदालत में क्यों नहीं साबित हो सका है. देश में लोकतंत्र है... मुकदमा करना चाहिए...मगर, हार जाएंगे. इस बारे में संसद में भी चर्चा की गई है. आखिर विपक्ष का काम क्या है? ऐसे मामलों में सुषमा स्वराजजी और अरुण जेटलीजी तो हल्ला बोल देते थे. मगर ये लोग संसद में चर्चा नहीं कर सकते, क्योंकि असल बात यह है कि कुछ है ही नहीं.
सवाल : कुछ राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की रणनीति सफल हुई है. क्या उससे भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर प्रभाव पड़ेगा?
जवाब : मैं ऐसा नहीं मानता. सत्ता में आने के बाद जो समय गुजरा है, उसमें लोगों ने गारंटी के परिणाम देखे हैं. गारंटी योजनाएं इतनी ‘फुल फ्लेज’ थीं कि पूरी ही नहीं हो पायीं. युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं पा रहा है. हर तहसील में होने वाले छोटे-छोटे काम के भुगतान नहीं रहे हैं, वे रुक गए हैं. महिलाओं को दो हजार रुपए मिल रहे हैं, लेकिन उनके घर में ‘लीकेज’ का ‘रिपेयर’ नहीं हो रहा है. उनका बजट बुरी तरह से बिगड़ गया है. न सूखे का पैसा पहुंचा है, न बाढ़ का पैसा पहुंचा है. सारा बिखर गया है. कर्नाटक की जनता के मन में काफी गुस्सा है.