पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तेजी से बदलते सियासी समीकरणों के बीच जहानाबाद के पूर्व सांसद डॉ. अरुण कुमार ने शनिवार को दोपहर 3 बजे नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में एक बार फिर वापसी की है। जदयू प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक समारोह के दौरान अरुण कुमार अपने कई समर्थकों के साथ औपचारिक रूप से पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
भूमिहार जाति से आने वाले अरुण कुमार को केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, प्रदेश जदयू अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, मंत्री विजय चौधरी, अशोक चौधरी सहित अन्य वरिष्ठ जदयू नेताओं की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। उनके बेटे ऋतुराज भी जदयू में शामिल हुए हैं।
अरूण कुमार ने एक दौर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर लालू-राबड़ी सरकार के खिलाफ संघर्ष किया था। हालांकि बाद में उनकी राहें जुदा हो गई और वे अलग अलग दलों में रहे। अरुण कुमार अपने राजनीतिक करियर में दो बार सांसद रह चुके हैं। पहली बार 1999 में उन्होंने जदयू के टिकट पर ही जहानाबाद से जीत दर्ज की थी।
2014 के लोकसभा चुनाव में जहानाबाद से समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और सांसद बने। अरुण सिंह के बेटे ऋतुराज के जहानाबाद के घोसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की संभावना है। ऋतुराज सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं और पूर्व में पटना स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव भी लड़ चुके हैं।
दरअसल, अरुण कुमार के जदयू में शामिल होने का कार्यक्रम पहले सितंबर में ही बन गया था, लेकिन भाजपा के ‘बिहार बंद’ की वजह से उस समय यह कार्यक्रम टाल दिया गया था। अरुण कुमार की वापसी इसलिए भी खास है क्योंकि पहले पार्टी के भीतर उनकी एंट्री को लेकर थोड़ी खींचतान की खबरें थीं।
मगर, आज ललन सिंह की मौजूदगी में उनका शामिल होना यह साफ करता है कि अब सारे मतभेद दूर हो गए हैं और जदयू ने आगामी चुनावों को देखते हुए एक बड़ी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।
अरुण कुमार के साथ उनके पुत्र ऋतुराज कुमार को जदयू में शामिल किए जाने का फैसला जहानाबाद के एक और पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा के राजद में शामिल होने के बाद लिया गया। राजद की ओर से मिली इस राजनीतिक चुनौती का सामना करने के लिए, जदयू ने तुरंत अरुण कुमार को पार्टी में लिया।
भूमिहार समाज से आने वाले अरुण कुमार की मगध क्षेत्र में काफी अच्छी राजनीतिक पकड़ है। अरुण कुमार की जदयू में वापसी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक सोची-समझी रणनीति वाला कदम माना जा रहा है। यह इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि तेजस्वी यादव राजद को ‘ए टू जेड’ यानी हर जाति की पार्टी बनाने की कोशिश में लगे हैं।
ऐसे में, अरुण कुमार की एंट्री से जदयू को राजद की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के लिए मगध क्षेत्र में एक मजबूत आधार मिल गया है।