लाइव न्यूज़ :

एआईएमआईएम, आईएसएफ वोटकटवा पार्टी बनकर आईं, अल्पसंख्यकों ने पश्चिम बंगाल में ममता का दिया साथ

By भाषा | Updated: May 3, 2021 12:36 IST

Open in App

नयी दिल्ली, तीन मई एआईएमआईएम और अब्बास सिद्दीकी की आईएसएफ जैसी पार्टियां जिन्हें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के अल्पसंख्यक जनाधार को नुकसान पहुंचाने में सक्षम माना जा रहा था, वे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपना असर छोड़ने में नाकाम रहीं जहां अल्पसंख्यकों ने भाजपा के खिलाफ इस लड़ाई को जीतने के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा चुकी ममता बनर्जी के साथ जाना चुना।

रुझानों और नतीजों के मुताबिक, वामपंथी दलों और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) 26 सीटों पर लड़ रही थी और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा।

असदउद्दीन ओवैसी नीत पार्टी ने राज्य की सात सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसके हाथ भी एक भी सीट नहीं आई और उसका वोट शेयर महज 0.02 प्रतिशत रहा।

मुस्लिमों के बीच अच्छी खासी पैठ रखने वाले दलों का अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने केरल में 15 सीटें जीती लेकिन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के साथ उसके गठबंधन को सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के हाथों हार झेलनी पड़ी।

एक और पार्टी जिसके बारे में माना जाता है कि मुस्लिमों के बीच उसका जनाधार काफी मजबूत है, बदरुद्दीन अजमल नीत ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का प्रदर्शन थोड़ा ठीक था। उसने असम में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से 16 पर जीत हासिल की। लेकिन कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के साथ उसका गठबंधन भाजपा को सत्ता में वापस आने से रोक नहीं पाया।

पश्चिम बंगाल में सिद्दीकी नीत आईएसएफ और ओवैसी की एआईएमआईएम का निराशाजनक प्रदर्शन फिलहाल चर्चा का विषय बना हुआ है।

बंगाल के कुल मतदाताओं में करीब 30 प्रतिशत मतदाता अल्पसंख्यक हैं जो राज्य की करीब 100 सीटों पर निर्णायक कारक हैं।

विश्लेषकों के मुताबिक टीएमसी के अल्पसंख्यक गढ़ों में सेंध लगाने में नाकाम रही भाजपा को उम्मीद थी कि आईएसएफ मुस्लिम मतों को काटने में सफल रहेगी जिससे उन्हें फायदा हो सकता है।

आजादी के बाद से, राज्य के अल्पसंख्यकों ने हिंदू महासभा और जनसंघ जैसे संगठनों को बाहर रखने के लिए कांग्रेस के पक्ष में ही वोट डाले हैं।

हालांकि, 1960 के दशक के अंत में, वे धीरे-धीरे वामपंथी दलों की तरफ झुकने लगे जिन्होंने अल्पसंख्यकों के बीच अपना जनाधार मजबूत करने के लिए ‘ऑपरेशन बरगा” का सहारा लिया। यह भूमि सुधार से जुड़ा आंदोलन था जिसने बटाई पर काम करने वाले लाखों लोगों को फायदा पहुंचाया था।

वाम मोर्चे के लिए चीजें तब से खराब होने लगी जब 2008 में आई सच्चर कमिटी की रिपोर्ट ने अल्पसंख्यकों की स्थिति की एक निराशाजनक तस्वीर सामने रखी थी। इसके अलावा, नंदीग्राम और सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चले आंदोलन ने ममता बनर्जी नीत टीएमसी को उनके नये “उद्धारक” के तौर पर पेश किया।

2011 में वाम मोर्चे को सत्ता से बाहर करने के बाद से ममता बनर्जी की पार्टी की अल्पसंख्यक मतों की एकमात्र लाभार्थी रही है क्योंकि मुस्लिम समुदाय सामूहिक रूप से टीएमसी के लिए वोट करता है लेकिन पिछले छह वर्षों में सांप्रदायिक दंगों को रोक पाने में उसकी विफलता समुदाय के कुछ वर्गों को रास नहीं आ रही है।

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक समुदाय ने फिर भी सामूहिक रूप से टीएमसी को इसलिए वोट दिया ताकि भाजपा को राज्य में सत्ता से बाहर रखा जा सके।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in App

संबंधित खबरें

भारतगोवा के नाइट क्लब में सिलेंडर विस्फोट में रसोई कर्मचारियों और पर्यटकों समेत 23 लोगों की मौत

क्रिकेटसबसे आगे विराट कोहली, 20 बार प्लेयर ऑफ़ द सीरीज पुरस्कार, देखिए लिस्ट में किसे पीछे छोड़ा

ज़रा हटकेShocking Video: तंदूरी रोटी बनाते समय थूक रहा था अहमद, वीडियो वायरल होने पर अरेस्ट

क्राइम अलर्ट4 महिला सहित 9 अरेस्ट, घर में सेक्स रैकेट, 24400 की नकदी, आपतिजनक सामग्री ओर तीन मोटर साइकिल बरामद

क्रिकेटYashasvi Jaiswal maiden century: टेस्ट, टी20 और वनडे में शतक लगाने वाले छठे भारतीय, 111 गेंद में 100 रन

भारत अधिक खबरें

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की

भारतसिरसा जिलाः गांवों और शहरों में पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल, जानिए खासियत