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पुण्यतिथिः जानिए कौन थीं अहिल्याबाई होल्कर, जो बनीं मालवा की महारानी 

By रामदीप मिश्रा | Updated: August 13, 2018 07:41 IST

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांम में हुआ था। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे थे। अहिल्याबाई के पिता ने इन्हें पुत्र की तरह पाला और शिक्षित भी किया।

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नई दिल्ली, 13 अगस्तः महारानी अहिल्याबाई होल्कर का नाम आज भी याद किया जाता है। वह एक महान शासक और मालवा की रानी थीं। उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज का परिचय थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ाई में भाग लिया। ऐसी महान योद्धा की आज पुण्यतिथि है। उनका निधन 13 अगस्त, 1995 में हो गया था। 

12 साल की उम्र में हुआ था विवाह

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांम में हुआ था। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे थे। अहिल्याबाई के पिता ने इन्हें पुत्र की तरह पाला और शिक्षित भी किया। 12 साल की आयु में इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। साल 1745 में अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक बेटी को जन्म दिया। पुत्र का नाम मालेराव और बेटी का नाम मुक्ताबाई रखा। महारानी अपने आदर्श और कुशलता के कारण सबकी प्रिय थीं।

मालवा सामराज्य पर किया शासन

बताया जाता है कि 1754 में कुंभेर की लड़ाई में अहिल्याबाई के पति खांडेराव की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने खुद को संभालते हुए शासन की सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर ले ली। कुछ समय के बाद मल्हार राव का भी निधन हो गया, जिसके बाद अहिल्याबाई को सामराज्य की गद्दी सौंपने की बात सामने आ गई। उन्हें गद्दी पर बैठाने के लिए सभी के मंजूरी मिल ली गई। साल 1766 में अहिल्याबाई ने सामराज्य की गद्दी संभाली और मालवा का शासन अपने हाथ में लिया।

दुश्मनों से लेती थीं सीधी टक्कर

कहा जाता है कि अहिल्याबाई एक अच्छी योद्धा थीं और दुश्मनों से सीधी टक्कर ले लेती थीं। वह हाथी पर सवार होकर युद्धभूमि में अपनी सेना को नेतृत्व भी प्रदान करती थीं। इसके अलावा अहिल्याबाई के बारे में दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने भारत भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर, घाट, कुंओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया क्योंकि वे अपने निजी जीवन में धार्मिक प्रवृति की महिला थीं इसलिए उनके द्वारा धार्मिक क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण कार्य किये गए।

इस वजह से हुआ निधन

बताया जाता है कि अहिल्याबाई के शासनकाल में चलने वाले सिक्कों पर 'शिवलिंग और नंदी' अंकित रहते थे। उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण और अन्य सुविधाओं के लिए जमकर पैसा खर्च किया, जिसकी वजह से राजकोष की स्थिति डगमगा गई थी। इसके बाद उन्हें राज्य की चिंता सताने लगी। साथ ही साथ प्रियजनों के वियोग के शोक भार को अहिल्याबाई संभाल नहीं सकीं और 13 अगस्त 1795 को उनका निधन हो गया था।देश-दुनिया की ताज़ा खबरों के लिए यहाँ क्लिक करे. यूट्यूब चैनल यहाँ सब्सक्राइब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट!

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