Bihar Assembly Election 2025 Result: बिहार 150 से अधिक सीटें जीत कर राज्य में क्रांतिकारी परिवर्तन की घोषणा करने वाले जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर को तो मुंह छिपाने लायक जनता ने नहीं छोडा। चुनाव में हुई भयानक हार के बाद पीके अब कोपभवन में चले गए हैं। वह मीडियाकर्मियों से मिलने से भी कन्नी कटा रहे हैं। इस बीच अब उनकी पार्टी यह कह कर लाज बचाने की कोशिश कर रही है कि हमारे समर्थकों ने जंगल राज की वापसी के भय से आखिरी वक्त में एनडीए की ओर जाना मुनासिब समझा।
चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर जिस तरह से जीत के दावे के साथ यह भी दावा कर रहे थे, उनके दावे हवा साबित हुए और खुद हवा में उड़ गए। वह पूरी तरह फेल साबित हुए। जनसुराज के एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाए।
इस बीच विधानसभा चुनाव से पहले जदयू को लेकर प्रशांत किशोर ने जो दावा किया था, उसकी चर्चा तेज हो गई है। साथ ही सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या प्रशांत किशोर अब राजनीति से संन्यास ले लेंगे? दरअसल, एक इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया था कि जदयू इस बार 25 सीटों पर सिमट जाएगी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह राजनीति से हमेशा के लिए संन्यास ले लेंगे। जबकि जदयू ने इस बार 85 सीटों पर बड़ी जीत पाई। इसके साथ ही एनडीए की सरकार फिर आ गई है।
ऐसे में अब प्रशांत किशोर के दावे की याद दिलाई जा रही है। इसके साथ ही जदयू को 25 से ज्यादा सीट आने के बाद पटना में एक पोस्टर भी लगाया गया है। उस पोस्टर में प्रशांत किशोर की बड़ी सी तस्वीर है। लेकिन उस तस्वीर में प्रशांत किशोर के चेहरे पर मायूसी है।
इसके साथ ही पोस्टर में लिखा है कि ‘जदयू को 25 सीट से ज्यादा होने के कारण प्रशांत किशोर ने राजनीति से लिया संन्यास’! इस तरह से इस पोस्टर के सामने आने के बाद चर्चा का बाजार गर्म हो गया है। लेकिन, प्रशांत किशोर की तरफ से क्या कुछ रिएक्शन आते हैं, यह देखना होगा।
उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने प्रशांत किशोर की सारी हेकड़ी निकाल दी। चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने बदलाव यात्रा में पूरी ताकत झोंक दी थी। बिहार की जनता को लुभाने के लिए एक के बाद एक बड़े दावे और वादे किए लेकिन चुनाव में पीके के सारे दावे हवा हवाई साबित हो गए। दरअसल, इस चुनाव ने नई राजनीतिक पार्टी जनसुराज की ताकत और सीमाएं दोनों उजागर कर दी हैं।
राज्य-स्तर पर पार्टी को 3.44 फीसदी वोट शेयर मिला, जो पहली बार चुनाव मैदान में उतरी किसी भी नई पार्टी के लिए उल्लेखनीय माना जा रहा है। हालांकि, सीट-दर-सीट विश्लेषण जारी होने के बाद पार्टी का प्रदर्शन उम्मीदों से काफी कमजोर नजर रहा। चुनाव में 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली जनसुराज पार्टी को 68 सीटों पर नोटा से भी कम वोट मिले। इसका अर्थ है कि लगभग 28.6 फीसदी सीटों पर मतदाताओं ने जनसुराज पार्टी के उम्मीदवारों को चुनने की बजाय किसी को नहीं वाला विकल्प अधिक पसंद किया।
जानकारों का मानना है कि यह परिणाम उस अंतर को दिखाता है, जहां राज्य-स्तर पर पहचान बढ़ने के बावजूद स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ बेहद कमजोर रही। एकाधिक सीटों पर मतदाताओं ने अपने क्षेत्र के जनसुराज उम्मीदवारों को खारिज करते हुए सीधे नोटा पर भरोसा जताया। उदाहरण के तौर पर देखें तो अलीनगर में जनसुराज उम्मीदवार को 2275 वोट, नोटा को 4751 मत मिले।
वहीं अमरपुर सीट पर जनसुराज को 4789, नोटा को 6017, अररिया सीट पर जनसुराज को 2434, नोटा को 3610, अतरी सीट पर जनसुराज उम्मीदवार को 3177 वहीं नोटा को 3516 मत, औरंगाबाद में जसुपा को 2755, नोटा को 3352, कोचाधामन सीट पर जन्सुराज को 1976, नोटा को 2039 मत मिले। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कई क्षेत्रों में जनसुराज उम्मीदवारों को बुनियादी समर्थन तक हासिल नहीं हो सका।
वहीं, छोटे दलों की तुलना में जनसुराज का प्रदर्शन मिश्रित रहा। एआईएमआईएम के उम्मीदवार 14.3 फीसदी सीटों पर नोटा से पीछे रहे। वीआईपी सिर्फ 8.3 फीसदी सीटों पर नोटा से पिछड़ा। आजाद समाज पार्टी करीब आधी सीटों पर नोटा से कम वोट ला सकी। एसयूसीआई, समता पार्टी, बिहारी लोक चेतना पार्टी और एनसीपी (बिहार यूनिट) एक भी सीट पर नोटा को पछाड़ने में विफल रहीं।
इन परिणामों से यह भी स्पष्ट होता है कि कमजोर प्रदर्शन के बावजूद जनसुराज पार्टी कुछ छोटे दलों से बेहतर स्थिति में रही। राज्य-स्तर पर जनसुराज को 3.44 फीसदी वोट मिले, जिससे वह सातवें स्थान पर रही। उससे अधिक वोट केवल राजद, भाजपा, जदयू, कांग्रेस, लोजपा (रा) और निर्दलीयों को मिले।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राज्य-स्तरीय वोट प्रतिशत तभी प्रभावी माना जाता, यदि पार्टी सीट स्तर पर भी निर्णायक उपस्थिति दर्ज करा पाती। चुनाव परिणाम बताते हैं कि प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने राज्य-स्तर पर ध्यान तो खींचा, लेकिन स्थानीय स्तर पर विश्वास हासिल करने में अभी बड़ी चुनौतियां बाकी हैं।
नोटा से 68 सीटों पर पीछे रहना पार्टी के लिए गंभीर संकेत माना जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि जनसंपर्क और पदयात्रा के बावजूद जनसुराज का असर कई क्षेत्रों में वोटों में बदल नहीं सका।