अभिजीत बनर्जी: JNU में पढ़ें, तिहाड़ में भी रहे, गरीबी उन्मूलन के लिए मिला नोबेल प्राइज, पढ़ें उनके संघर्ष का सफर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 15, 2019 12:55 PM2019-10-15T12:55:07+5:302019-10-15T12:55:07+5:30

अभिजीत बनर्जी को अपनी पत्नी डुफ्लो के साथ नोबेल प्राइज मिला है।  नोबेल पुरस्कार के इतिहास में केवल पांच अन्य विवाहित दंपतियों को यह प्राप्त हुआ है।

Abhijit Banerjee, Esther Duflo Winning the Nobel Prize Together is Couple Goals | अभिजीत बनर्जी: JNU में पढ़ें, तिहाड़ में भी रहे, गरीबी उन्मूलन के लिए मिला नोबेल प्राइज, पढ़ें उनके संघर्ष का सफर

अभिजीत बनर्जी की मां भी अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रही हैं.

Highlightsडुफ्लो ने स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन, पर्यावरण और शासन व्यवस्था जैसे विषयों पर काम किया है। अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो की नयी किताब इस सप्ताह बाज़ार में आएगी।

भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और अमेरिका के अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को संयुक्त रूप से 2019 के लिये अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की सोमवार को घोषणा की गयी। अभिजीत बनर्जी को यह पुरस्कार वैश्विक स्तर पर गरीबी उन्मूलन क्षेत्र में किए गए शोध कार्यों के लिए मिला है। बनर्जी लोकसभा चुनाव 2019 में काफी चर्चित रहे हैं। उन्होंने ही कांग्रेस के 'न्याय योजना' की आधार रखी थी, जिसे सत्ता में आने पर कांग्रेस ने लागू करने का वादा किया था।

कोलकाता में जन्मे

अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिलने पर कोलकाता में जश्न का माहौल है। उनकी एक सहपाठी और एक स्कूल शिक्षक ने कहा कि बनर्जी स्कूल में अध्ययन के समय अंतर्मुखी और विनम्र थे तथा वह बचपन से ही उत्कृष्ट विद्यार्थी थे। बनर्जी ने साउथ प्वाइंट स्कूल में अपनी पढ़ाई की है।

जेएनयू में पढ़े

बनर्जी, 58 वर्ष, ने भारत में कलकत्ता विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। इसके बाद 1988 में उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। वर्तमान में वह मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के फोर्ड फाउंडेशन अंतरराष्ट्रीय प्रोफेसर हैं।

तिहाड़ जेल भी गए बनर्जी

1983 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने छात्रों के दाखिले के लिए प्रवेश नीति में सुधार किया था। काफी छात्रों ने विश्वविद्यालय के इस फैसले का विरोध किया था। विरोध प्रदर्शन में अभिजीत भी शामिल थे। तब करीब 300 छात्रों को 10 दिन के लिए दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल की हवा खानी पड़ी थी। अभिजीत भी जेल जाने वाले छात्रों में शामिल थे। अभिजीत के बारे में कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वह किसी छात्र संगठन के सदस्य नहीं बने लेकिन अपनी बात रखने से कभी पीछे नहीं हटते थे। 

मोदी सरकार के आर्थिक नीतियों के आलोचक

अभिजीत बनर्जी नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों से कभी सहमत नहीं रहे। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का उन्होंने विरोध किया था। नोबेल पुरस्कार के लिए नाम के एलान के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के सवाल पर अभिजीत ने कहा था, “मेरे विचार से अर्थव्यवस्था बहुत खराब कर रही है। यह बयान भविष्य में क्या होगा, उस बारे में नहीं है, बल्कि जो हो रहा है उसके बारे में है। मैं इसके बारे में एक राय रखने का हकदार हूं।”

भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में औसत खपत के अनुमान बताने वाले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “हम जो तथ्य देख रहे हैं, उसके मुताबिक 2014-15 और 2017-18 के बीच आंकड़े थोड़े कम हुए हैं।” उन्होंने कहा, “ऐसा कई, कई, कई, कई, कई सालों में पहली बार हुआ है, तो यह एक बहुत ही बड़ी चेतावनी का संकेत है।” उन्होंने कहा कि भारत में एक बहस चल रही है कि कौन सा आंकड़ा सही है और सरकार का खासतौर से यह मानना है कि वो सभी आंकड़े गलत हैं, जो असुविधाजनक हैं। उन्होंने कहा, “लेकिन मुझे लगता है कि सरकार भी अब यह मानने लगी है कि कुछ समस्या है। अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से धीमी हो रही है। कितनी तेजी से, यह हमें नहीं पता है, आंकड़ों को लेकर विवाद हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह तेज है।”

जानिए क्यों मिला नोबेल प्राइज

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस के बयान के मुताबिक, ‘‘इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं का शोध वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता को बेहतर बनाता है। मात्र दो दशक में उनके नये प्रयोग आधारित दृष्टिकोण ने विकास अर्थशास्त्र को पूरी तरह बदल दिया है। विकास अर्थशास्त्र वर्तमान में शोध का एक प्रमुख क्षेत्र है।’’ स्कूलों में उनके उपचारात्मक शिक्षण के प्रभावी कार्यक्रमों से 50 लाख से अधिक भारतीय बच्चे लाभांवित हुए हैं। यह उनके विभिन्न अध्ययनों में से एक का प्रत्यक्ष प्रमाण है। दूसरा उदाहरण निवारक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भारी सब्सिडी दिए जाने का है जिसे कई देशों में लागू किया गया है।

बयान में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के लिए सर्वश्रेष्ठ तरीकों को लेकर भरोसेमंद जवाब हासिल करने के लिए इन्होंने एक नए दृष्टिकोण को पेश किया है। उनके शोध परिणामों और उसके आधार पर शोध करने वाले शोधार्थियों के शोधों ने गरीबी से लड़ने की हमारी योग्यताओं को उल्लेखनीय तौर पर बेहतर बनाया है। 

मां भी रहीं हैं अर्थशास्त्र की प्रोफेसर

बनर्जी को पुरस्कार के लिए चुने जाने की घोषणा के बाद उनकी मां निर्मला बनर्जी ने कोलकाता में कहा कि यह उनके लिए गौरव का क्षण है। वह अपने बेटे की उपलब्धि पर बहुत खुश हैं। वह इस बात से भी खुश हैं कि इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की संयुक्त विजेता उनकी पुत्रवधू एस्थर डुफ्लो हैं। निर्मला बनर्जी स्वयं सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेस में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रही हैं और उनके पति दीपक बनर्जी तत्कालीन प्रेसीडेंसी कॉलेज (अब विश्वविद्यालय) में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर थे। 

नोबेल पुरस्कार पाने वाले छठे दंपत्ति

बनर्जी को अपनी पत्नी डुफ्लो के साथ नोबेल प्राइज मिला है।  नोबेल पुरस्कार के इतिहास में केवल पांच अन्य विवाहित दंपतियों को यह प्राप्त हुआ है।  डुफ्लो का जन्म 1972 में हुआ। वह जे-पाल की सह-संस्थापक और सह-निदेशक हैं। अभिजीत बनर्जी एमआईटी में अपनी पत्नी डुफ्लो के पीएचडी सुपरवाइजर भी रहे हैं। डुफ्लो ने 1990 में जोशुआ एंगरिस्ट के साथ पीएचडी की थी। दोनों की शादी 2015 में हुई थी और उन्होंने साथ मिलकर ‘गुड इकोनॉमिक्स इन हार्ड टाइम्स’ लिखी जो इसी हफ्ते बाजार में आने वाली है। डुफ्लो ने बनर्जी के साथ मिलकर ‘गरीबी अर्थशास्त्र : वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के तरीकों पर एक तार्किक पुनर्विचार’ शोधपत्र लिखा। इसके लिए उन्हें 2011 में फाइनेंशियल टाइम्स एंड गोल्डमैन सैश बिजनेस बुक ऑफ द इयर पुरस्कार मिला। इस शोधपत्र को 17 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 

डुफ्लो ने स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन, पर्यावरण और शासन व्यवस्था जैसे विषयों पर काम किया है। उन्होंने अपनी पहली डिग्री पेरिस के इकोल नॉर्मल सुपिरियर से अर्थशास्त्र और इतिहास में हासिल की। बाद में 1999 में एमआईटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डुफ्लो को कई अकादमिक पुरस्कार मिले हैं। इनमें 2015 का प्रिंसेस ऑफ ऑस्ट्रियास अवार्ड फॉर सोशल साइंसेस, 2015 का ही ए.एसके सोशल साइंस अवार्ड, 2014 का इंफोसिस पुरस्कार, 2011 का डेविड एन. करशॉ अवार्ड, 2010 का जॉन बेट्स क्लार्क मेडल और 2009 की मैक ऑर्थर ‘जीनियस ग्रांट’ फेलोशिप शामिल है।

बनर्जी व डुफ्लो की पुस्तक इस सप्ताह आएगी बाजार में

अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो की नयी किताब इस सप्ताह बाज़ार में आएगी। इस किताब में वैश्विक अर्थव्यवस्था से संबंधित विषयों पर चर्चा की गई है। पुस्तक के प्रकाशक ‘जगरनॉट बुक्स’ ने सोमवार को बताया कि किताब का नाम ‘ गुड इकोनॉमिक्स फॉर हार्ड टाइम्स - बेटर आंसर्स टू बिगेस्ट प्रॉब्लम्स’ 19 अक्टूबर को बाजार में आएगी। प्रकाशक के मुताबिक, यह पुस्तक रोज़गार, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और जलवायु परिवर्तन जैसे वर्तमान समय के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करती है। यह किताब वर्तमान समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियों के समाधान तलाशने में मदद करती है।

Web Title: Abhijit Banerjee, Esther Duflo Winning the Nobel Prize Together is Couple Goals

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